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________________ स देशः प्रभया तेषाम् V. 15.9a श्लाघनीयश्च III. 13. 18a सर्वतो वृतः IV. 43.41b 32 " " "" स देशो दृश्यतां सौम्य VII. 102.4C , दैवतगणान्सर्वान् VII. 27.320 " दैवतबलं सर्वम् VII. 27.41a ," सदैव तेनोपविवेश वीर्यवान् VI. 127.63d प्रियदर्शन: I. 1. 16d "" बिभृयाद्भृत्यान् II. 75.38c सदैवमनुवर्तते II. 23.16b सदैव शाखामृगसेवितान्तम् IV. 1. 130b स दैवं पर्युपासते VII. 5o.sd सदैवोष्णं विनिःश्वस्य II. 13.16c सदोचितावुत्तमचन्दनस्य III. 63.8b सद्भिराचरितं मार्गम् VII. 26.37c सङ्गिराचरितः पुरा II. 30.30b सद्भिः सह समागतः IV. 17.45d स दिष्टान्तमीयुषः II. 65.28d सद्य एव वयः प्राप्तिम् VII. 4 31c सद्यस्त्वं निशितैर्बाणै: IV. 34.17C सद्यः कर्ता विनश्यति I. 2. 18b 12.18d " 33 शंसन्ति संभ्रमम् III. 69.22d शतसहस्रधा II. 64.22d शरीरे विननाश शोकः II. 44.31c 22 सौम्य परित्यज्य III. 49.6a सद्यो गर्हेच्च मां भवान् IV. 14.13b सद्योनिपतितानन्दम् II. 65.28a सद्यो निरयगामिनः VII. 82.11d निष्प्रभतां गतः I. 55.gd IV. 15.3d सद्योपलब्धिर्गर्भस्य VII. 4.3ra सद्यो भवति मेदिनी II. 35.14d "" ور " 23 22 " मां विधवां कृताम् IV. 23.9b सद्योऽस्माभिर्हतो युधि III. 20.13d " Jain Education International ११८१ सोsहं त्वत्प्रतीक्षोऽस्मि I. 73.16a सद्वितीयं महाबल: IV. 10.1gd सद्वृत्तं देवसंकाशम् I. 13.23c सद्वृत्तो निरनुक्रोशः V. 26.11c सद्रव्यं च शिरो नित्यम् VII. 18.33a समं प्राणहारिणम् VI. 56.24b सघनाः ससुहृज्जनाः I. 77.14d सधनुर्धन्विनां श्रेष्ठः III. 28.26a VI. 58.36c 76.38a " "" 29 सधनुर्निर्ययौ द्रुतम् VI. 53.6d सधनुष्काः कवचिनः VI. 57.23c सधनुस्त्वं हि लोकांस्त्रीन् VII. 1. 18c सधनुः परिपालयन् I. 18.32b सधर्मचारिणी मे त्वम् III. 10.21e धर्म परिमार्ग II. 99.34d धातुरिव पर्वतः VI. 69.84d सर्यो वै परिस्पन्दन् II. 14.120 सधूम इव पावक: IV. 31.29d सधूमकलुषोदय: VI. 10.15 सधूमज्वालमण्डलम् VII. 21.42b सधूमपरिवृत्तोर्मि: VI. 102.33c धूममग्निं मुखतो यथा हर: IV. 16.38d सधूममिव कालाग्निम् VI. 108.8a "" तीक्ष्णाग्रम् VI. 102.4ga सधूम विस्फुलिङ्गश्व VI. 90.52c सधूमशोणितोद्वारी III. 27.18 सधूमः कोपपावक: VII. 22.21d परिवृत्तोर्मिः VI. 21.29c सधूम इव पावकाः III. 26.30b सधूमाश्च शराः सर्वे III. 24.5a सधूमां मुखतो ज्वालाम् VI. 76.SIC सधूमांश्चैव पर्वतान् II. 69.13d सध्वजं सशरासनम् VI. 52.29d सध्वजः प्रत्यदृश्यत VI. 87. &d "" For Private & Personal Use Only "" www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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