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________________ भावी वृत्तियाँ का भारी ऋण लद चुका है। इन योजनाओं की जाँच हम स्थानाभाव से यहाँ नहीं कर सकेंगे। हमारी वर्त. मान लोकनीतिक सरकार लोकनीतिक समाजवाद (डेमॉक्रेटिक सोशलिज्म) की स्थापना में लगी है। कछ लोग इसकी सफलता में शंका प्रकट करते हैं। कुछ लोग ऐसी विचारधारा प्रकट करते हैं कि बिना सर्वतन्त्र स्वतन्त्रवाद (टोटैलिटेरियनिज्म) के सच्चा समाजवाद स्थापित नहीं हो सकता। चाहे जो हो, स्थानाभाव से इन बातों पर हम यहाँ विचार नहीं उपस्थित करेंगे। हितकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) की कल्पना की गयी है और उसके लिए समाज के समाजवादी ढाँचे का आदर्श सामने रखा गया है। ऐसे समाज की कल्पना की गयी है जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय की व्यवस्था हो और राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाएँ न्याययुक्त व्यवस्था से ग्रथित एवं गठित हों। हितकारी या कल्याणकारी राज्य सिद्धान्तत: 'सर्वोदय' ( सबका उदय अर्थात् सबकी समृद्धि) का उद्देश्य सम्मुख रखता है । अभी कुछ काल पहले तक प्रजा के प्रति राज्य के प्रमुख कर्त्तव्य थे-देश का शासन, देश एवं इसकी समद्र-सीमाओं की बाह्य आक्रमणों से रक्षा करना, नियम एवं व्यवस्था की रक्षा करना तथा आरम्भिक एवं उच्च शिक्षा की व्यवस्था करना। हमारे संविधान के निर्माताओं एवं नेताओं की अभिकांक्षा रही है हितकारी राज्य की स्थापना करना, अभियोजित आर्थिक व्यवस्था के आधार पर देश में समाजवादी ढाँचे की सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था उपस्थित करना । आज बहुत-से महत्वपूर्ण व्यवसाय राज्य के लिए सुरक्षित हैं और सरकार ने कतिपय वस्तुओं के निर्माण, उनके मूल्य निर्धारण आदि पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया है। इसने राज्य व्यापार निगम (स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन) स्थापित कर डाला है। बड़ी-बड़ी योजनाओं को चलाने के लिए राज्य ने बड़े-बड़े कर लगाने की व्यवस्था कर डाली है। इनकम टैक्स (१६२२ का कानन जो पुन: १६६१ में सुधारा गया और जिसमें समय पड़ने पर बड़े-बड़े परिवर्तन होते रहते हैं) के अतिरिक्त हमारी लोकनीतिक सरकार ने एक-के-उपरान्त चार कानून पारित कर डाले हैं, यथा-इस्टेट ड्यूटी ऐक्ट (१६५३), वेल्थ टैक्स (१९५७), एक्स्पेण्डीचर टैक्स (१९५७) एवं गिफ्ट टैक्स (१६५८)। इन टैक्सों के विवेचन में जाने की आवश्यकता नहीं है । इन टैक्सों के कारण आज की सरकार को 'नयी निरंकशवादी' सरकार कहा जाता है। हितकारी या कल्याणकारी राज्य के नाम पर हमारे नेताओं द्वारा सम्पूर्ण शक्ति नौकरशाही शासन के रूप में परिणत की जा रही है। स्थानाभाव से हम इस विषय पर अधिक नहीं लिखेंगे। योजनाओं पर अपार सम्पत्ति व्यय की जा रही है, जिसके कारण महँगाई बढ़ती जा रही है और बेकारी की समस्या द्रुत वेग से देश के सिर पर चढ़ी आ रही है। सर डबल्यू बेवरिज महोदय ने अपनी पुस्तक 'पिलर आव सेक्योरिटी' (१९४४) में उन पांच राक्षसों के नाम लिये हैं जिनसे मानवता को युद्ध करना है, यथा-कमी, रोग, अज्ञान, गन्दगी एवं बेकारी। यह अन्तिम ‘ऐसा है जिससे हमें सबसे पहले लड़ना है। हमारे संविधान की धारा ४१ में काम करने, शिक्षा पाने का अधिकार है एवं बेकारी की दशा में, वार्धक्य में, बीमारी में तथा कुछ अन्य बातों में हमें राज्य-सहायता का भी अधिकार प्राप्त है। सबको पूर्ण ६. 'सर्वोदय' का आदर्श निम्नलिखित विख्यात श्लोक से भिन्न नहीं है : 'सर्वेऽत्र सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तु विरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ॥ जिसका केर्थ यों है : 'यहाँ (इस लोक में) सभी सुखी हों, सभी रोगों से मुक्त हों । सभी समृद्धि को देखें (प्राप्त होवें) और कोई दुख न पाये ॥' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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