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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास ने एक अभिलेख में अपने राज्य को जम्बूद्वीप नाम से पुकारा है। आज भी धार्मिक कृत्यों में संकल्प के समय बहुतसे प्रान्तों (यथा महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश आदि) में 'जम्बूद्वीपे भारतवर्षे बौद्धावतारे....' या जम्बू द्वीपे भारतखंडे, आर्यावर्ते...' बोला जाता है। इसी से अपने देश को हमें भारतवर्ष कहना चाहिए जो अत्यन्त प्राचीन है। ऐसा कहा जा सकता है कि हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के पीछे अतीत युगों में एक भौगोलिक पृष्ठभूमि रही है। भारतीय संविधान की प्रथम धारा में 'भारत' शब्द आया है। किन्तु विदेशियों एवं हमारे कुछ लेखकों ने 'हिन्दू' एवं 'इण्डियन' शब्दों का प्रयोग किया है और हमारे देश को हिन्दुस्तान (हिन्दुस्थान) या इण्डिया कहा है। आज अधिक प्रचलित नाम हैं भारत, भारतवर्ष, इण्डिया एवं हिन्दुस्तान। संस्कृति' एवं 'सभ्यता' नामक शब्दों का प्रयोग बहुत विद्वानों द्वारा समानार्थक रूप में हुआ है, किन्तु कुछ लोग इन्हें एक-दूसरे से पृथक् मानते हैं। विद्वानों ने संस्कृति (कल्चर) एवं सभ्यता (सिविलिज़ेशन)की कई परिभाषाएं की हैं, किन्तु हम उनके चक्कर में नहीं पड़ेंगे। पाटक निम्नलिखित विद्वानों की पुस्तकें पढ़ सकते हैं-डा. टीलर (प्रिमिटिव कल्चर, भाग १, पृ० १ मरे, लण्डन, १८७१), मैथ्यू आर्नाल्ड (कल्चर एण्ड एनार्की, १८६६), प्रो० पी० ए० सोरोकिन (सोशल एण्ड कल्चरल डायनौमिक्स, १६५७) प्रो० इडगर्टन ('डॉमिनेण्ट आइडियाज़ इन दि फार्मेशन आव इण्डियन कल्चर', अमेरिकन, ओरिएण्टल, सोसाइटी, जिल्द ६२, १६४२, पृ० १५१-१५६), प्रो० ट्वायन्बी ('सिविलिज़ेशन ऑन ट्रायल', १६४८), 'रीकंसीडरेशंस', जिल्द १२, पृ० ७६-७७), आर्चीबाल्ड (रेशनलिज्म इन थ्योरी एण्ड प्रैक्टिस, लण्डन, १६५४, पृ० ६२) । यदि दोनों शब्दों में कोई अन्तर किया जाय तो संस्कृति' को 'सभ्यता' अर्थात् 'कल्चर' को 'सिविलिजेशन' से अच्छा मानना, चाहिए। सभ्यता (सिविलिज़ेशन) का प्रयोग बधा सामाजिक विकास के अति उच्च स्तर के लिए होता है और आदिम अवस्था के समाजों के लिए 'कल्चर शब्द का प्रयोग होता है, यथा--प्रिमिटिव कल्चर। लोग 'प्रिमिटिव कल्चर' का प्रयोग करते हैं, किन्तु 'प्रिमिटिव सिविलिज़ेशन' का नहीं । मानव इतिहास के गत ६००० वर्षों में कतिपय संस्कृतियाँ एवं सभ्यताएं उठीं एवं गिरी। स्पेंग्लर ने, जो सैनिक अथवा फौजी व्यक्ति रहे हैं और जिन्होंने अबौद्धिकता का प्रदर्शन किया है, धर्म, नैतिकता एवं राजनीतिशास्त्र को तिलाञ्जलि दे दी है और बड़ी निर्दयता के साथ तीस सभ्यताओं एवं संस्कृतियों की, जाँच की है और मत प्रकाशित किया है कि उनमें अधिकांश (७ या ८ को छोड़ कर सभी) ने एक समान दंग अपनाया है, यथा-- उन्होंने जन्म लिया, वे बढ़ीं, अवनति को प्राप्त हुई और मर गयीं और एक बार समाप्त हुई तो पुनः उठ न सकीं। प्रो० टवायन्बी ने, जो ईसाई हैं, फौजी नहीं हैं, अपने ग्रन्थ 'स्टडी आव हिस्ट्री' में स्पेंग्लर के प्रतिकुल निष्कर्ष निकाले हैं, यथा-संस्कृति एवं समाजों में बचपन, विवृद्धि (परिपक्वता), वार्धक्य एवं नाश के स्तर पाये जाते हैं। उन्होंने अपने ग्रन्थ 'स्टडी आव हिस्ट्री' के खण्ड ६, पृ० ७५८ में १६ सभ्यताओं की सूची दी है , जिसमें उनकी अभिव्यक्ति एवं अधःपतन तथा उनके विकास-क्रम को वर्षों में रख दिया गया है। उन्होंने 'इण्डिक' सभ्यता ३. डा० जी० एस० घुर्ये का ग्रन्थ 'कल्चर एण्ड सोसाइटी' (बम्बई यूनिवर्सिटी प्रकाशन, १६४७) एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें उन्होंने 'कल्चर' एवं 'सिविलिज़ेशन' पर महत्त्वपूर्ण विचार प्रकट किये हैं और इमर्सन, ऑर्नाल्ड, मोले, ह्वाइटहेड, रसेल, लास्की, वेल्स आदि के दृष्टिकोणों की व्याख्या की गयी है। और देखिए प्रो० नॉशॉप कृत 'मीटिंग आव ईस्ट एण्ड वेस्ट' (१६४६) एवं प्रो० सोरोकिन कृत 'सोशल फिलॉसॉफीज़ इन ऐन एज आव क्राइसिस' (लण्डन, १६५२)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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