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________________ अध्याय ३६ हिन्दू संस्कृति एवं सभ्यता को मौलिक एवं मुख्य विशेषताएँ अब हम इस परिच्छेद में धर्मशास्त्र के इतिहास के गत पृष्ठों में विखरे सूत्रों को एकत्र कर हिन्दू (भारतीय) संस्कृति एवं सभ्यता की मौलिक एवं प्रमुख विशिष्टताओं पर प्रकाश डालेंगे। भारत की महान् नदी सिन्धु के पश्चिम एवं पूर्व के निवासियों एवं भूमि क्षेत्र को फारस के सम्राट् दारा (५२२-४८६ ई० पू०) एवं जे वर्सेज (४८६-४६५ ई० पू०) ' ने हिन्दू ('हिदु' के रूप में) के नाम से पुकारा है और यूनानियों ने इसी क्षेत्र के लोगों को 'इण्डोई' कहा, जिससे 'इण्डियन' शब्द बन गया है। अपने इतिहास (लोयेब ग्रन्थमाला) में हेरोडोटस ने कहा है कि भारतीयों के उपरान्त (ग्रन्थ ५, वाक्य-समूह ३, खण्ड-३, पृ० ५) संसार में श्रेसियों का राष्ट्र सबसे बड़ा था और भारतीय लोग फारस साम्राज्य के बीसवें प्रान्त के निवासी थे और कर के रूप में ३६० टैलेण्ट दिया करते थे। केवल ऋग्वेद में 'सिन्ध' शब्द एकवचन एवं बहवचन दोनों में दो सौ से अधिक बार प्रयुक्त हुआ है। एकवचन में 'सिन्धु' की अपेक्षा 'सिन्धवः' (बहुवचन) एवं सप्त सिन्धून्' बहुधा आया है। इन्द्र को कई बार ऐसा कहा गया है कि उसने सात सिन्धुओं को बहने के लिए छोड़ दिया है (ऋ० ११३२।१२, २।१२।१२, ४।२८।१, ८१६६।१, १०॥४३॥३)। इन वचनों में सिन्धु नदी एवं उसकी सहायक नदियों (या सम्भवतः इसके सात मुखों) की ओर संकेत किया गया है। ऋग्वेद के बहुत-से वचन, जहाँ एक वचन का प्रयोग हुआ है, केवल सिन्धु नदी की ओर इंगित करते हैं (ऋ० २।१५।६, ४।३०।१२, ५।४।६ आदि)। ऋ० (२।१५।६) में उल्लिखित है कि इन्द्र ने सिन्धु को उत्तर में बहने दिया। यह बात हिमालय से निकल कर बहने वाली नदी के प्रथम अंश की ओर संकेत करती है, जहाँ सिन्धु उत्तरवाहिनी है। पाणिनि ने 'सिन्धु' शब्द का प्रयोग देश के अर्थ में किया है (४१३१६३, जहाँ 'सैन्धव' का अर्थ है वह व्यक्ति या जिसके पूर्व पुरुष लोग सिन्धु देश में रहते हों)। आर्यावर्त की घटती-बढ़ती सीमाओं के विषय में देखिए इस महाग्रन्थ का मल खण्ड २, १० ११-१६, तथा खण्ड ५. पृ० १५२५ या गत अध्याय ३४। खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख में भी 'भारतवर्ष' शब्द आया है। अशोक १. देखिए डा० डी० सी० सरकार द्वारा सम्पादित 'सेलेक्ट इंस्क्रिप्शंस' (संख्या ४, पृ० १० एवं संख्या ५, ५० १२) जिसमें दारय-उश (डेरियुस या दारा) के अभिलेख 'नक्श-ए-रुस्तम' एवं क्षयार्श (जर्सेज) के अभिलेख 'पसिपोलिस' का उल्लेख है। हमारे देश के कुछ भू-भागों में आज भी संस्कृत 'स' का 'ह' में परिवर्तन हो जाया प्राचीन पारसी शास्त्र वेण्डिडाड (सैक्रेडबुक आव दि ईस्ट, खण्ड-४, १०२) ने सोलह भू-खण्डों (क्षेत्रों) का उल्लेख किया है, जिनमें ६ नामों का पता चल गया है, १५ वे का नाम है हप्त हिन्दु (सप्त सिन्ध)। २. देखिए एपोफिया इण्डिका, जिल्द २०,पृ.० ७१-८६ । हाथीगुम्फा अभिलेख की तिथि के विषय में विद्वानों में गहरा मतभेव रहा है। डा० जायसवाल के अनुसार इसकी तिथि ई० पू० दूसरी शती का प्रथम अर्ध है। किन्त डा० एन० एन० घोष ने इसे ई० पू० प्रथम शती का अन्तिम चरण माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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