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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास अनुशासनपर्व के प्रथम अध्याय में गौतमी, उसके पुत्र की सर्प-दंश से मृत्यु, आखेटक से गौतमी का वार्तालाप तथा काल की बातें वर्णित हैं, जो कर्म सिद्धान्त पर प्रकाश डालती हैं। गौतमी को चित्त-संयम प्राप्त था। उसके पुत्र को एक सर्प ने काट लिया और वह मर गया। एक शिकारी (आखेटक) ने उस सर्प को बाँधकर गौतमी के समक्ष रख दिया और कहा कि मैं उस सर्प को मार डालंगा, क्योंकि उसने एक अबोध बच्चे को काट लिया है। इस पर गौतमी ने उसे मना किया और समझाया कि सर्प को मार डालने से बच्चा लौट कर नहीं आ सकता। तब काल वहाँ आया और उसने व्याख्या उपस्थित की-'जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी के खण्ड से जो चाहता है उसे बनाता है उसी प्रकार मनुष्य अपने द्वारा किये गये कर्मों का फल पाता है। बच्चे की मृत्यु के मूल में हैं उसके पूर्व जीवन के कर्मों के प्रतिफल।' इस बात को गौतमीने माना और कहा कि उसका पूत्र अपने अतीत जीवन के कर्मों के कारण मरा और उसकी मृत्यु से उसे जो शोक प्राप्त हुआ है वह स्वयं उसके (गौतमी के) पूर्व जीवन के कर्मों का प्रतिफल है ।१९ और देखिए इस विषय में विराटपर्व ( २०।१४ ), अनुशासनपर्व (७।२२ पद्मपुराण २१८११४७-'यथा धेनु सहस्रेषु वत्सो विन्दति मातरम् । एवमात्यकृतं कर्म कर्तारमनु गच्छति ॥), आश्वमेधिक पर्व (१८११), शान्तिपर्व (३१६।२५ एवं ३५=चित्रशाला सं० ३२६।२५, ३५)। ___कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त से हिन्दू समाज पूर्णतया प्रभावित हो उठा। संस्कृत के महान् कवियों ने भी इस विषय में संकेत किये हैं। रघुवंश (११।२२) में आया है कि जब राम वामन के आश्रम में पहुँचे तो (कालिदास ने टिप्पणी की है) वे मन से अस्थिर हो गये, वामन के रूप में अपने कर्मों का स्मरण नहीं कर सके। शाकुन्तल (अंक ५) में कवि ने टिप्पणी की है.-'जब कोई व्यक्ति सुन्दर दृश्य देख कर, मधुर वचन सुन कर, आनन्दों से घिरे रहने पर भी अस्थिर (दु:खी) हो जाता है, तो वास्तव में बात यह है कि अचिन्त्य रूप से उसके मन में अतीत जीवनों के प्यार एवं मित्रता के चित्र खिच आते हैं।' सातवें अंक में जब शकुन्तला एवं दुष्यन्त का पूनर्मिलन हो जाता है तो शकुन्तला अपने पति के पूर्वत्याग (या तिरस्कार) की ओर संकेत करती हुई कहती है--'अवश्य ही उस समय मेरे (पूर्व जीवन के) दुष्कृत्यों में सुकृत्यों को बाधित किया और वे स्वयं प्रतिफलित हुए। और देखिए रघुवंश (१४।६२ एवं ६६) एवं मेघदूत (३०)। - कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर स्वभावतः बहुत-से प्रश्न उठ खड़े होते हैं। एक प्रश्न को योगसूत्र (२०१३) के भाष्यकार व्यास ने विवेचित किया है। योगसूत्र (२१३) में पाँच क्लेशों (अविद्या आदि) का उल्लेख है और ऐसा आया है (२।१३) कि ये क्लेश जन्म, जीवन (लम्बा या छोटा), अनुभूति-प्रकार के द्वारा कर्मों के विपाक की ओर ले जाते हैं अर्थात् कर्मों का फल उपस्थित करते हैं। योगसूत्र (४७) के अनुसार कर्म के चार प्रकार हैं, यथा-१. कृष्ण (दुष्ट लोगों में पाये जाने वाले),२. शुक्लकृष्ण (जो बाह्य साधनों से किये जाते हैं और उनसे किसी की हानि या किसी का लाभ होता है), ३. शुक्ल (ऐसे लोगों के कर्म जो तप करते हैं, स्वाध्याय में लीन रहते हैं तथा ध्यान करते हैं, और इस प्रकार के बाह्य कारणों या साधनों से नहीं सम्पन्न होते और इनसे किसी की हानि या हिंसा नहीं होती), ४. अशुक्लाकृष्ण (न तो शुक्ल और न कृष्ण, जो संन्यासियों में पाये जाते हैं, जिनके क्लेश दूर हो गये रहते हैं, और जिनके शरीर अब अन्तिम रहते हैं अर्थात् इसके उपरान्त वे जन्म नहीं लेते) । इन १६. यथा मृत्पिण्डतः कर्ता कुरुते यद्यदिच्छति । एवमात्मकृतं कर्म मानवः प्रतिपद्यते । नैव कालो न भुजगो न मृत्युरिह कारणम् । स्वकर्मभिरयं बालः कालेन निधनं गतः । मया च तत्कृतं कर्म येनार्य में मृतः सुतः । यातु कालस्तथा मृत्युर्मुञ्चार्जुनक पन्नगम् । अनुशासनपर्व (१।७४, ७८-७६)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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