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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास वर्ष के सात प्रमुख पर्वत हैं--महेन्द्र, मलय, सह्य, शक्तिमत्, ऋक्षपर्वत, विन्ध्य एवं पारियात्र। पुराणों का कथन है कि जम्बूद्वीप में भारत सर्वश्रेष्ठ वर्ष है (ब्रह्म० १६।२३-२४, विष्णपु० ३।३।२२, ब्रह्माण्डपु० २।१६।१७)। कछ पुराणों में भारत के विषय में सुन्दर प्रशस्तियाँ हैं (ब्रह्म० २७१२।६ एवं ६६-७६, विष्णुप० २।३।२३-२६)। कुछ पुराणों में भारतवर्ष के भागों के नाम आये हैं, यथा--इन्द्रद्वीप, कशेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमत्, गद्वीप. सहय, गाधर्व, वारुण, और नवाँ १००० योजन उत्तर से दक्षिण तक लम्बा है. जिसके पूर्व में किरात लोग, पश्चिम में यवन लोग तथा मध्य में चार वर्गों के लोग रहते हैं । यह द्रष्टव्य है कि यद्यपि भारतवर्ष जम्बूद्वीप का एक भ.ग मात्र है किन्तु नव भ.गों में कुछ इन्द्रद्वीप एवं नागढीम के नाम से विख्यात है। एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मत्स्य० (११४।१०), वायु० (४५।८१), वामन० (१३।११) एवं ब्रह्माण्ड० (२। १६।११) ने वें द्वीप को कुमार कहा है या गंगा के स्रोत-स्थल से कुमारिकी तक विस्तृत माना है। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि भारतवर्ष का ६वाँ भ ग आज का भारतवर्ष है और अन्य आठ भाग, ऐसा लगता. है, वे देश तथा द्वीप हैं जो आज के भारत के दक्षिण-पूर्व में पड़ते हैं। यह सम्भव है कि प्रारम्भिक ग्रन्थों ने भारतवर्ष को आज के भारत की सीमा तक ही सीमित समझा, किन्तु जब भारतीय संस्कृति दक्षिणपूर्व एशिया में फैल गयी तो भारतवर्ष के अन्तर्गत सम्पूर्ण भारत एवं सुदुर भारत भी सम्मिलित हो गया। शवर (भाष्य, जैमिनी १०।१।३५) ने व्यक्त किया है कि हिमवत् से कुमारी अंतरीप तक भद्र लोगों की भाषा एक-सी है (प्रसिद्धश्च स्थाल्यां चरुशब्द: आ हिमवत: आ च कुमारीभयः प्रयुज्यमानोदृष्टः) । और देखिए वही भाष्य (जै० १०।११४२) जहाँ वैसे ही शब्द प्रयुक्त हैं। हिमाच्छादित पर्वतों का ज्ञान ऋग्वेद के ऋषियों को भी था (१०३१२११४, यस्यमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहु) । 'यस्य' का संकेत हिरण्यगर्भ की ओर है । अथर्ववेद (५।४।२ एवं ८) ने हिमवत् को एकवचन में प्रयुक्त किया है । पर्वत (बहुवचन में) कई बार आये हैं (ऋ० ११३७१७, २५६।४)। महाभारत, शबर, पुराणों एवं बृहत्संहिता से प्रकट है कि प्राचीन भारत के लोगों ने अपनी संस्कृति को भारतवर्ष से समन्वित माना, अर्थात उन्होंने देश एवं संस्कृति को न कि जाति एवं संस्कृति को एक माना। ब्रह्मपुराण एवं मार्कण्डेयपुराण ने भारत को आज के भारत के रूप में ही चित्रित किया है, क्योंकि इसकी सीमा के विषय में ऐसा आया है कि उत्तर में हिमालय है और तीन ओर समुद्र है । और देखिए इस महाग्रन्थ का मूल खण्ड २, पृ० ११-१६ एवं १७१८ ।४२ दिवं मर्त्य इव हस्ताभ्यां नोदापुः पञ्चमानवाः॥' देखिए शतपथब्राह्मण (१३३५।४।११-१३), जहाँ ऐसा आया है कि भरत दौष्पन्ति शकुन्तला से उत्पन्न हुए थे, वहीं उनके विषय में चार गाथाएँ आयो हैं। जिनमें तीन तो ज्यों-को-त्यों ऐतरेयब्राह्मण वाली हैं, और ऐसा आया है कि उन्होंने वही महत्ता एवं कीर्ति कमायो जो भरतों को उसके कालों में प्राप्त हुई थी। अथर्ववेद ने बहुधा 'हिमवत्' की चर्चा की है (यथा ॥२॥८, १६॥ ३६३१ में) और ऐसा कहा गया है कि कुष्ठ ओषधि (पौधा) उत्तर में पाया जाता है और वह हिमवत् से पूर्व की ओर ले जाया जाता है , और ऐसा आया है (अथर्व० ६।२४।१ एवं ३) कि सभी नदियाँ हिमवत् से निकलती हैं और सिन्धु में मिलती हैं । महाभाप्य (पाणिनि २।४।६६) ने टिप्पणी दी है कि भरत लोग पूर्व को छोड़ कर किन्हीं अन्य देशों में नहीं पाये जाते । ४२. दक्षिणापरतो यस्य पूर्वे चैव महोदधिः । हिमवानुत्तरेणास्य कार्मुकस्य यथा गुणः । तदेतद्भारतं वर्ष सर्वबीजं द्विजोत्तमाः । ब्रह्मपु० २७।६५-६६, मार्कण्डेयपुराण (५४१५६) । Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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