________________
योग एवं धर्मशास्त्र
२७५ सभी योगों में पतञ्जलि की ही प्रणाली प्रचलित है, किन्तु प्रत्येक में योग के किसी विशिष्ट स्वरूप का ही निदर्शन है। वास्तव में योग की केवल दो प्रमुख प्रणालियाँ हैं, एक वह जो योगसूत्र द्वारा प्रतिपादित है और जिसका भाष्य व्यास ने किया है और दूसरी प्रणाली वह है जो गोरक्षशतक तथा स्वात्मारामयोगी की हठयोगप्रदीपिका में (जिस पर ब्रह्मानन्द द्वारा ज्योत्स्ना नामक टीका है) में वर्णित है। संक्षेप में दोनों योगप्रणालियों में यह अन्तर है कि जहाँ पातञ्जल योग चित्तानुशासन पर ही सारा प्रयास लगाता है, वहाँ हठयोग का प्रमुख सम्बन्ध है शरीर, उसके स्वास्थ्य, शुद्धता एवं रोगरहितता से। इस तथ्य का उद्घाटन इसी से हो जाता है कि जहाँ पतञ्जलि ने आसन की परिभाषा किसी ऐसी शरीरावस्थिति से की है जो 'स्थिरसुख' (स्थिर एवं सरल अथवा सुखकर) हो, वहाँ हठयोग-सम्बन्धी ग्रन्थ बहुत-से आसनों का उल्लेख करते हैं, यथा-मयूरासन, कुक्कुटासन, सिद्धासन आदि, जिनसे रोगों का निवारण होता है (१।३१) और इस प्रकार कुल ८४ आसन हैं। इतना ही नहीं, हठयोग ने कुछ क्रियाओं का भी उल्लेख किया है, यथा-नेति (नासा-मार्ग निर्मल करना), धौति (आमाशय स्वच्छ करना), वस्ति (यौगिक एनिमा)एवं नौलि (पेट की नलिका हिलाना), जिनके विषय में पतञ्जलि मौन हैं।४८ यदि उचित निर्देशन एवं धर्य के साथ हठयोग
४७. स्वात्माराम योगी कृत हठयोगप्रदीपिका का अंग्रेजी अनुवाद श्री श्रीनिवास आयंगर द्वारा हुआ है (थियोसॉफिकल पब्लिशिंग हाउस, मद्रास, तीसरा संस्करण, १६४६)। प्रन्थ का नाम हठप्रदीपिका है, जैसा कि 'हठप्रदीपिका धत्ते स्वात्मारामः कृपाकरः' (१३३) से प्रकट होता है। प्रत्येक 'उपदेश' के अन्तिम तथा ब्रह्मानन्द कृत 'हठप्रदीपिका-ज्योत्स्ना' के प्रथम श्लोक से भी यही बात झलकती है। टीका के अनुसार 'ह' एवं '' का अर्थ क्रम से सूर्य एवं चन्द्र है और वे क्रम से दक्षिण एवं वाम नासिका-श्वास के द्योतक हैं। शिवसंहिता का अनुवाद रायबहादुर श्रीचन्द्र विद्यार्णव द्वारा (पाणिनि ऑफिस, दूसरा संस्करण, १६२३) तथा घेरण्डसंहिता का अनुवाद श्रीचन्द्र वसु द्वारा हआ है (बम्बई, १८६६)।
४८. हठयोग को ६ क्रियाएँ ये हैं-धौतिर्बस्तिस्तथा नेतिस्त्राटक नौलिकं तथा। कपालभातिश्चतानि षट् कर्माणि प्रचक्षते॥ह० यो० प्र० (२।२२)। योगमीमांसा नामक जर्नल के खण्ड २, पृ० १७०-१७७ में धौति, खड १, पृ० १०१-१०४ में बस्ति, खण्ड १, पृ० २५-२६ एवं खण्ड ४, पृ० ३२०-२४ में नौलि का तथा श्री कुवलयानन्द कृत 'प्राणायाम' नामक पुस्तिका (भाग १, पृ० ७६-१००) में कपालभाति का वर्णन है। नेति में मासिका को स्वच्छ किया जाता है। त्राटक में जब तक आंसू न गिरने लगें तब तक किसी अति सूक्ष्म लक्ष्य (पदार्थ) पर आंखों को बिना पलक गिराये रखा जाता है (निरीक्षेनिश्चलवृशा सूक्ष्मलक्ष्यं समाहितः। अश्रुसम्पातपर्यन्तमाचार्यस्त्राटकं स्मृतम् ॥ह० यो० प्र० (२॥३१)। त्राटक के कई प्रकार हैं, यथा-नक्षत्रत्राटक, सूर्यत्राटक, आवर्शत्राटक, भूमध्यत्रा०, नासाग्रत्रा० । जिसके नेत्र दुर्बल हों, उसे त्राटक नहीं करना चाहिए, केवल प्रवीण व्यक्ति के निर्देशन में ही ऐसा करना चाहिए। एकाग्रता एवं ध्यान के लिए त्राटक एक आरम्भिक आवश्यकता है। जो लोग हठयोग के विषय में अभिरुचि रखते हैं, उन्हें थेयोस बर्नार्ड का ग्रन्थ 'हठयोग, दि रिपोर्ट आव ए परसनल एक्स्पीरिएंस (कोलम्बिया यूनिवसिटी प्रेस, न्यूयार्क, द्वितीय संस्करण, १६४५) पढ़ना चाहिए। थेयोज बर्नार्ड महोदय ने सम्पूर्ण भारत की यात्रा की, अपने गुरु की आज्ञा से उन्हीं के साथ रांची में निवास करते रहे और उनकी आज्ञा से तिम्बत भी गये। उनके प्रन्थ में ३६ चित्र हैं, जिनमें २८ आसनों के चित्र हैं, ७, २६-२७ महामद्रा, बजोलिमुसा एवं पाशिणीमद्रा के चित्र हैं, ३२वें एवं ३३वें चित्र में उड्डीयान-बन्ध के प्रथम एवं द्वितीय स्वरूप हैं, ३४ मै ३६ बजे चित्र बोली-यममा, नौली-भामा एवं बौरी-पक्षिा के चित्र हैं। हठयोगप्रदीपिका (३॥६-७) में वस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org