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________________ २६० धर्मशास्त्र का इतिहास याज्ञवल्क्य, याज्ञ० स्मति के प्रणयन के बहुत काल उपरान्त, सम्भवत: ८वीं शती में या और चलकर जब कि तान्त्रिक क्रियाएँ एवं ग्रन्थ प्रकाश में आ चके थे लिखा गया होगा। एक अन्य बात भी विचारणीय है। याज्ञवल्क्यस्मृति एवं योग-याज्ञवल्क्य (दीवानजी द्वारा सम्पादित) में दस यमों एवं दस नियमों का उल्लेख है, किन्तु दोनों ग्रन्थ नामोल्लेख में एक दूसरे से मेल नहीं खाते, जैसा कि पादटिप्पणी से पता चल जायगा । २३ विभिन्न ग्रन्थों में यमों एवं नियमों की संख्या में अन्तर पाया जाता है, किन्तु यदि याज्ञः स्मृ० एवं योगयाज्ञ० के लेखक एक ही हैं तो इन दस नामों में कोई अन्तर नहीं पाया जाना चाहिए था। अत: याज्ञ० स्मृ० एवं योग-याश० के ग्रन्थकार अलग-अलग हैं । हमें इसके लिए कोई प्रमाण नहीं प्राप्त होता कि योग-याज्ञवल्क्य ८वीं या ६वीं शती के पूर्व हुए थे। श्री दीवानजी द्वारा 'बृहद्योगि-याज्ञवल्क्य एवं योग-याज्ञवल्क्य के विषय में एक निबन्ध प्रस्तुत किया गया है (ए० बी० ओ० आर० आई०. जिल्द ३४.११५३. प०१-२६; भमिका-योग-याज्ञ०, जे०बी०बी० आर० ए० एम्०, जिल्द ३८ एवं ३६, पृ० १०३-१०६) और स्वामी कुवलयानन्द ने उस निबन्ध का उत्तर दिया है (ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द ३७, १६५७, पृ० २५७-२८६; योगमीमांसा , जिल्द ७, सं० २, पृथक् रूप से प्रकाशित १६५८)। विषयान्तर हो जाने के भय से अन्य मत-मतान्तर यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं। श्री दीवानजी तथा स्वामी कुवलयानन्द के मतों में गहरा मतभेद है। श्वेताश्वतरोपनिषद् के भाष्य में, जो शंकराचार्य का कहा जाता है२४, साढ़े चार श्लोक योगि-याज्ञः से उद्धत हैं, जिनमें कोई भी बृहद्योगि-याज्ञ० या योग-याज्ञ० में नहीं पाया जाता । श्वेताश्वतरोपनिषद् (२१६) की व्याख्या में भाष्य ने योग पर २६ श्लोक उद्धृत किये हैं, किन्तु वहाँ न तो किसी ग्रन्थ का और न किसी ग्रन्थकार का नामोल्लेख हुआ है। श्री दीवानजी के संस्करण में एक भी श्लोक पूर्णरूपेण उद्धृत नहीं है, उन्होंने ५ या ६ श्लोक योग-याज्ञ० से उद्ध त किये हैं तथा बृ० उप० (८।३२) का एक श्लोक भाष्य में उद्धत है । यह ज्ञातव्य है कि अपरार्क एवं स्मृतिचन्द्रिका ने कुल मिलाकर लगभग १०० श्लोक योगी (या योग)-याज्ञवल्क्य से उद्ध त किये हैं जो केवल बहद्योगि-याज्ञवल्क्य में पाये जाते हैं, किन्तु योग-याज्ञवल्क्य में नहीं । कृत्यकल्पतरु (केवल मोक्षकाण्ड ही) ने लगभग ७० श्लोक योगि-याज्ञ० से लिये हैं जो बृहद्योगि-याज्ञ० के अध्याय २, ८, ६ २३. ब्रह्मचर्य दया शान्तिर्दानं सत्यमकल्कता । अहिंसा स्तेयमाधुर्ये दमश्चेति यमाः स्मृताः ॥ स्नानं मौनोपवासेज्यास्वाध्यायोपस्थनिग्रहाः। नियमा गुरुशुश्रूषा शौचाक्रोधप्रमादताः ॥ याज्ञ० ३।३१२-३१३; मिलाइए अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्य दयार्जवम् । क्षमा धृतिमिताहारः शौचं त्वेते यमा दश ॥ तपः सन्तोष आस्तिक्यं दानमीश्वरपूजनम् । सिद्धान्तश्रवणं चैव ह्रीमतिश्च जपो व्रतम् । एते तु नियमाः प्रोक्तास्तांश्च सर्वान् पृथक् पृथक् ॥ योगयाज्ञ० (११५०-५१)। दोनों में विशिष्ट अन्तर यों है याज्ञ० स्मृ० में 'शौच' नियम है जब कि वही योगयाज्ञ० में यम है। अन्य अन्तर अपने आप स्पष्ट हैं। २४. यह भाष्य शंकराचार्य का है ; इस विषय में गहरा सन्देह है। ब्रह्मसूत्र के विशद भाष्य में शंकराचार्य किसी पुराण से नाम लेकर कोई उद्धरण नहीं देते, प्रत्युत 'इति पुराणे' कहकर कुछ श्लोकों का उदाहरण देते हैं। किन्तु श्वेताश्वतरोपनिषद् के भाष्य में, केवल ७६ मुद्रित पृष्ठों में ३० श्लोक ब्रह्मपुराण से, ३० श्लोक विष्णुपुराण से, लगभग १२ श्लोक लिंगपुराण से तथा लगभग ६ श्लोक शिवधर्मोत्तरपुराण से उद्धत किये गये हैं। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org,
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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