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________________ धर्मशास्त्र एवं सांख्य २३५ को, जो परमर्षि कहे गये हैं, सांख्य का प्रवर्तक माना गया है। अध्याय २६४ (श्लोक २६-४६) में सांख्य के २५ तत्त्वों का उल्लेख है, यथा प्रकृति या अव्यक्त, महत्, अहंकार, अहंकार से उत्पन्न पञ्चतत्त्व (इन आठों को प्रकृतियाँ कहा गया है) एवं १६ विकार (श्लोक २६) । इन्हें क्षेत्र कहा जाता है, आत्मा को २५वाँ तत्त्व कहा गया है और उसे क्षेत्रज्ञ एवं पुरुष की संज्ञा मिली है (श्लोक ३७, 'अव्यक्ते पुरे शेते पुरुषश्चेति कथ्यते')। ईश्वर या ब्रह्म के विषय में इस अध्याय में कुछ नहीं आया है । शान्तिपर्व के अध्याय २११-२१२ (जिनमें कुल १०० श्लोक हैं) में मिथिला के राजा जनक (जो यहाँ 'जनदेव' कहे गये हैं) द्वारा पञ्चशिख से ज्ञान ग्रहण करने का उल्लेख है। पञ्चशिख सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण करते हुए मिथिला पहुँचे थे। पञ्चशिख को आसुरि का प्रथम एवं सर्वश्रेष्ट शिष्य कहा गया है और ऐसा उल्लेख हुआ है कि उन्होंने पञ्चस्रोतों पर२० एक सहस्र वर्षों तक सत्र का सम्पादन किया था । वे कपिला नाम्नी ब्राह्मणी से उत्पन्न हुए थे और इसी से उन्हें कापिलेय (श्लोक १३-१५) कहा गया है। जनक के दरबार में एक सहस्र आचार्य रहते थे जो विभिन्न सम्प्रदायों के दृष्टिकोणों को उपस्थित करते थे । श्लोक में आया है कि पञ्चशिख ने परमर्षि कपिल एवं प्रजापति के समान प्रकट होकर लोगों को आश्चर्य में डाल दिया और अपने तर्कों से सैकड़ों आचार्यों को भ्रमित कर दिया (श्लोक १७)। आगे चलकर जनक ने उन आचार्यों को छोड़ दिया और पंचशिख का अनुसरण किया (श्लोक १८) । जाति या कृत्यों एवं सभी कुछ के विषय में उन्होंने जनक के मन में वितृष्णा उत्पन्न कर दी और उनके समक्ष सांख्य द्वारा उद्घोषित परममोक्ष की व्याख्या उपस्थित की। अध्याय २१२ में पञ्चशिख ने पाँच तत्त्वों, पाँच ज्ञानेन्द्रियों, पाँच कर्मेन्द्रियों, मन (श्लोक ७-२२) तथा सात्त्विक, राजस एवं तामस भावों के लिंगों (श्लोक २५-२८) की उद्घोषणा की है तथा वर्णन किया है कि किस प्रकार आत्मा को खोजने वाला व्यक्ति आनन्द एवं क्लेश के बन्धनों से मुक्त होता है और जरा तथा मत्यु के भय के ऊपर उठकर अमरत्व को प्राप्त करता है। ये दोनों अध्याय स्पष्ट रूप से तारतम्य के साथ सिद्धान्त उपस्थित नहीं करते और ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जो २५ तत्त्वों की संगति में बैठ नहीं पाते। अध्याय २१२ (श्लोक १२) में 'एकाक्षर ब्रह्म को कतिपय रूपों का धारणकर्ता' कहा गया है। उदाहरणार्थ, 'पुरुषावस्थमव्यक्तम्' का क्या अर्थ है, कहना कठिन है। इन शब्दों से यही अर्थ निकाला जा सकता है कि पञ्चशिख ने उस अव्यक्त (अर्थात् प्रधान) के बारे में (जनक को) ज्ञान दिया, जो पुरुष पर निर्भर है (अर्थात् जो पुरुष के संयोग से क्रियाशील होता है) और वह पुरुष परम सत्य है। इसमें पुन: कहा गया है कि पञ्चशिख इष्टियों एवं सत्रों के सम्पादन से उत्पन्न ज्ञान में पूर्ण हो गये, तपों द्वारा उन्होंने ईश्वर का साक्षात्कार पाया, क्षेत्र तथा क्षेत्र के बीच के अन्तर का परिज्ञान किया तथा ओम के प्रतीक के रूप में ब्रह्म की अनुभूति प्राप्त की। अतः शान्तिपर्व के इन अध्यायों में पञ्चशिख का जो सिद्धान्त प्रकट हुआ है, २०. पञ्चस्रोत सम्भवतः 'पञ्चनद' (पंजाब को पाँच नदियाँ) हैं। इस संस्करण में शान्तिपर्व ने अध्याय २११ में एक श्लोक छोड़ दिया है-'पञ्चस्रोतसि निष्णातः पञ्चरात्रविशारदः। पञ्चज्ञः पञ्चकृत् पञ्चगुणः पञ्चशिखः स्मृतः॥ यहाँ पञ्चशिख को पञ्चरात्र (वैष्णव) के सिद्धान्तों में निष्णात माना गया है, वे कापिलेय कहे गये हैं अतः सम्भवतः उनकी माता का नाम कपिला था। २१. तं समासीनमागम्य मण्डलं कापिलं महत् । पुरुषावस्थमव्यक्तं परमार्थं न्यबोधयत् ॥ इष्टिसत्रेण संसिद्धो भूयश्च तपसा मुनिः । क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोयक्तिं बुबुधे देवदर्शन ॥ यत्तदेकाक्षरं ब्रह्म नानारूपं प्रदृश्यते। शान्ति० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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