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________________ २३२ धर्मशास्त्र का इतिहास मन्त्र का आशय लेते हैं (देखिए शांकरभाष्य, वे० स० ११४१८)। इस मन्त्र का अर्थ यह है-'एक अजा (अजन्मा) है जो लाल, श्वेत एवं कृष्ण रंग से परिपूर्ण है, किन्तु जो एक-दूसरे से मिलती-जुलती बहुत-सी सन्तानें उत्पन्न करती है। एक अज (बिना जन्म वाला) है, जो उसके आश्रय में रहता है (अर्थात् उसे प्यार करता है), उसके पार्श्व में सोता है। एक अन्य भी है, जो उसे, आनन्द पाने के उपरान्त, छोड़ देता है।' इसी प्रकार, सांख्यवादियों का कथन है कि सांख्य सिद्धान्त के प्रवर्तक कपिल श्वेताश्वतरोपनिषद् (२) में उल्लिखित हैं--'यह वही है, जो आरम्भ में, कपिल मुनि का, जब वे उत्पन्न हुए, विचारों से लालन-पालन करता है, और जब वे उत्पन्न होते रहते हैं, उन्हें देखता है। यदि कोई श्वेताश्वतरोपनिषद् के बहुत-से वचनों पर ध्यान दे, यथा-३।४, ४।१२ एवं ६।१८ पर, तो उसे यही मानना पड़ेगा कि ऋषि कपिल (अर्थात् लोहित मुनि), हिरण्यगर्भ (सोने के शिशु) ही हैं, जिन्हें प्रथम सृष्टि (हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे, ऋ० १०।१२१११) कहा जाता है।४ वे० सू० (२।११) पर शंकराचार्य कहते हैं कि केवल 'कपिल' शब्द के आ जाने से ही यह नहीं समझ लेना चाहिए कि वे ही सांख्य के प्रवर्तक थे, क्योंकि एक अन्य कपिल भी थे जो वासुदेव कहे जाते थे, जिन्होंने अपनी क्रुद्ध दृष्टि से सगर के पुत्रों को भस्म कर दिया था ।'५ शंकराचार्य इतना मानने को सन्नद्ध हैं कि सांख्य एव योग दोनों उन बातों में वैदिक सीमा के अन्तर्गत आ जाते हैं, जो वेद के विरोध में नहीं पड़तीं। पञ्च तत्वों (महाभूतानि) का उल्लेख ऐत. उप० (३३), प्रश्न० (४४) में तथा इनकी पाँच विशेषताओं (गुणों) का उल्लेख कठोपनिषद् (३।१५) में हुआ है । के विषय में ( सांख्य-विरोधी के मत के अनुसार ) बताता है । 'अजा' एवं 'अज' का साधारण अर्थ है 'बकरी' एवं 'बकरा' । इन शब्दों का यह भी अर्थ है जिसने जन्म नहीं ग्रहण किया है, अर्थात् 'अजन्मा' अतः 'अजा' प्रकृति के लिए तथा 'अज' पुरुष के लिए है, ये दोनों सांख्य के अनुसार नित्य हैं। 'लोहित' (लाल) 'रज' के लिए, 'शक्ल' (श्वेत) 'सत्त्वगुण' (जो 'प्रकाशक' है) के लिए तथा 'कृष्ण' (काला) 'तम' के लिए प्रयुक्त हुआ है। प्रकृति से बहुत से पदार्थ उद्भूत होते हैं। मन्त्र का दूसरा अर्धांश उस आत्मा की ओर संकेत करता है जो अंधकार से ढंका हुआ है अतः वह बन्धन में रहता है, किन्तु वह व्यक्ति जो गुणों एवं पुरुष के अन्तर को समझ लेता है प्रकृति को छोड़ देता है, अर्थात् मोक्ष पा लेता है। इस श्लोक में एक प्रकृति (यहाँ पर 'अजा' अर्थात् बकरी के रूप में वर्णित) से बहुत से पुरुषों 'अजों' अर्थात् बकरों के सम्बन्धों का उल्लेख है। ये तीनों रंग वास्तव में, क्रम से तीन तत्त्वों, अर्थात् तेज, जल एवं अन्न (अर्थात् पृथिवी) के लिए प्रयुक्त हैं। देखिए छान्दोग्योपनिषद् (६।३।१)-'यदग्ने रोहितं रूपं तेजसस्तद्रूपं यच्छुक्लं तदपां यत्कृष्ण तदन्नस्य' । १४. या तु श्रुतिः कपिलस्य ज्ञानातिशयं प्रदर्शयन्ती प्रदर्शिता न तया श्रुतिविरुद्धमपि कापिलं मतं श्रद्धातुं शक्यं कपिलमिति श्रुतिसामान्यमानत्वात् । अन्यस्य च कपिलस्य सगरपुत्राणां प्रतप्तुर्वासुदेवनाम्नः स्मरणात् । भाष्य (वे० सू० २११११); येन त्वंशेन न विरुध्येते तेनेष्टमेव सांख्ययोगस्मृत्योः सावकाशत्वम् । शंकराचार्य (वे. सू० (२०१३)। १५. विष्णुपुराण (४।४।१२) में कपिल को भगवान् पुरुषोत्तम का एक अंश कहा गया है। कपिल ने सगर के उन ६० सहस्र पुत्रों को, जिन्होंने उनके पास चरते हुए अश्वमेध के घोड़े को उनके द्वारा चुराया गया समझ लिया था, भस्म कर दिया था (४।४।१६-२३)। वासुदेव कपिल के लिए देखिए वनपर्व (१०७।३१३३, चित्रशाला संस्करण) जहाँ आया है-'ततः बुद्धो महाराज कपिलो मुनिसत्तमः । वासुदेवेति यं प्राहुः कपिलं मुनिपुंगवम् ॥.. ददाह सुमहातेजा मन्दबुद्धीन् स सागरान् । यह कथा वनपर्व (४७७-१८) में भी आयी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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