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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास देनी चाहिए और १०१३३५५ में बाँटने की विधि का उल्लेख है । प्रमुख पुरोहित चार हैं , यथा-होता, अध्वर्यु, उद्गाता एवं ब्रह्मा और इन सभी चारों के तीन-तीन सहायक होते हैं, जो नीचे पाद-टिप्पणी में लिखित हैं ।४९ मान लीजिए १०० गायें बाँटनी हैं । चार दलों में प्रत्येक को ११४ अर्थात् २५ गायें मिलेंगी। होता को १२ तथा अन्य तीन सहायकों को क्रम से ६, ४ एवं ३ गाय मिलेंगी अर्थात् वे क्रम से प्रमख का ११२, ११३ एवं ११४ भाग पायगे। यही ढंग अन्य तीन दलों के लिए भी होगा। प्रथम दृष्टि में यही बात झलकती है कि सब को समान मिलना चाहिए, क्योंकि श्रुति का कथन है कि सबको समान मिलना चाहिए, किन्तु यहाँ ऐसी बात नहीं है, यहाँ ऐसी व्यवस्था की गयी है कि दक्षिणा कार्य की गुरुता के अनुसार दी जाये। निश्चित निष्कर्ष यह है कि दोनों दृष्टिकोण ग्राह्य नहीं हैं, वास्तव में दक्षिणा विभाजन अधिनः, तृतीयिनः एवं पादिनः के अर्थ के अनुसार होना चाहिए, जैसा कि श्रुति में प्रयुक्त है। मन० (८।२१०) ने उपर्युक्त विभाजन-प्रणाली का उल्लेख किया है और वैदिक यज्ञों में प्रय विधि को गह-निर्माण आदि जैसे कृत्य के लिए भी उपयुक्त ठहराया है।५० यद्यपि सूत्र (समं स्यादश्रुतित्वात्) केवल पर्वपक्ष है और गायों के विभाजन में मान्य नहीं हुआ है, किन्तु मध्यकालीन धर्मशास्त्र-लेखकों ने इस सिद्धान्त को माना है। देखिए स्मृतिचन्द्रिका (१, पृ० १५२, २, २८५, २, ४०४), कुल्लूक (मनु० ३।१, जहाँ ३६ वर्षों को तीनों वेदशाखाओं के अध्ययन के लिए बराबर-बराबर बांटा गया है), मदनरत्न (व्यवहार पृ० २०२), व्यवहारप्रकाश (पृ० ४४३ एवं ५४८)। ग्यारहवें अध्याय में तन्त्र का विवेचन है। तन्त्र में उन विषयों का समावेश होता है जहाँ एक कृत्य कई कृत्यों एवं कर्मों के उद्देश्य की पूर्ति करता है।५१ उदाहरणार्थ, तीन याग हैं, यथा-अग्नि के लिए आठ ___४६. होता मैत्रावरुणोऽच्छावाको ग्रावस्तुत्, अध्वर्यः प्रतिप्रस्थाता नेष्टोन्नेता, ब्रह्मा ब्राह्मणाच्छंसी आग्नीधः पोता, उद्गाता प्रस्तोता प्रतिहर्ता सुब्रह्मण्यः-इति । प्रमुख चार पुरोहितों के नाम समूहों के आरम्भ में हैं। प्रत्येक प्रमुख के उपरान्त तीन सहायकों के नाम आये हैं। प्रमुख पुरोहितों के तुरत पश्चात् आने वाले सहायकों को अधिनः कहा जाता है (अर्थात् वे प्रमुख पुरोहितों का आधा पाते हैं, ये चारों हैं-मैत्रावरुण, प्रतिप्रस्थाता, ब्राह्मणाच्छंसी एवं प्रस्तोता)। प्रत्येक दल में तीसरे स्थान वाले सहायक पुरोहित तृतीयिनः कहे जाते हैं (अर्थात् वे प्रमुख के अंश का तिहाई पाते हैं, और वे हैं, अच्छावाक, नेष्टा, आग्नीधः एवं प्रतिहर्ता)। प्रत्येक दल में अन्तिम सहायक पादिनः कहे जाते हैं और प्रमुख के अंश का चौथाई पाते हैं, और वे हैं-प्रावस्तुत्, उन्नेता, पोता एवं सुब्रह्मण्य । देखिए इस महाग्रन्थ का मूल खण्ड, २, पृ० ११८८-११८६, एवं खण्ड, ३, पृ० ४६६। ५०. सर्वेषामधिनो मुख्यास्तदर्धेनाधिनोऽपरे।... अनेन विधियोगेन कर्तव्यांशप्रकल्पना ॥ मनु० (८।२१०. २११); एतत्तत्तदंशपरिकल्पनविधानं तस्य द्वादशशतं दक्षिणेति ऋतुसम्बन्धमात्रेण विहितायां न तु ऋत्विग्विशेषसम्बन्धित्वेन विहितायाम् । अश्वं दद्यानिविदां शस्त्रे इति तत्प्रतिपादकश्रुतिविरोधापत्तेः । मदनरत्न (व्यवहार), पु० २०२-२०३ । मदनरत्न (पृ० २०४) ने और जोड़ा है : 'पशुबन्धादौ विषम-विभागो नोक्त इति तत्र साम्येन दक्षिणाविभागः।' यदि कुल ११२ गायें हों, तो चार वर्गों (होतृवर्ग, अध्वर्युवर्ग, उद्वातवर्ग एवं ब्रह्मवर्ग) में प्रत्येक वर्ग को २८ गायें मिलेंगी तब होतृवर्ग के अंश को २५ में विभाजित करना होगा और होता २५ भागों में १२ पायेगा और उसके सहायक क्रम से ६, ४ एवं ३ पायेंगे, अर्थात् इस वर्ग में २८ गायों में अंश लगभग क्रम से १३, ६, ५, ४ होंगे। ५१. यत्सकृत्कृतं बहूनामुपकरोति तत् तन्त्रमित्युच्यते यया बहूनां ब्राह्मणानां मध्ये कृतः प्रदीपः। यस्त्वावृत्त्योपकरोति स आवापः। यथा तेषामेव, ब्राह्मणानामनुलेपनम् । श्लोकमप्युबाहरन्ति-साधारणं भवेत्तन्वं परार्थे त्व Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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