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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास (७) क्या उम्बेक एवं भवभूति एक ही हैं ? ऐसा समझने के लिए हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है, किन्तु यह सम्भव है कि दोनों एक ही हों । ૪ (८) क्या उम्बेक कुमारिल के शिष्य थे ? हाँ । (६) क्या सुरेश्वर शंकराचार्य के शिष्य थे ? हाँ । उपरोक्त प्रश्नों एवं उत्तरों के आधार पर हम नीचे पू० मी० के लेखकों का कालक्रम उपस्थित कर रहे हैं, यथा - कुमारिल, प्रभाकर, मण्डन, उम्बेक, शालिकनाथ । ये लोग ६५० ई० एवं ७५० ई० के बीच हुए थे और उनमें कुमारिल सबसे पहले हुए थे, प्रभाकर ( जिन्होंने किरातार्जुनीय ( २१३० ) को दो बार उद्धृत किया है) एवं मण्डन दोनों समकालीन थे या मण्डन प्रभाकर से अवस्था में छोटे थे । वृहदारण्यकोपनिषद् एवं तैत्तिरीयोपनिषद् पर शंकर के भाष्य पर सुरेश्वर के वार्तिक के आरम्भिक एवं अन्तिम श्लोक इस विषय में कोई सन्देह नहीं छोड़ते कि सुरेश्वर शंकर के शिष्य थे । प्रस्तुत लेखक के लेख (जे० बी० बी० आर० ए० एस० पृ० २८६ - २६३ ) एवं प्रो० कुप्पुस्वामी के मण्डन एवं सुरेश्वर से सम्बन्धित लेख से ( ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द १८, पृ० १२१ - १५७ ) प्रकट होता है कि मण्डन एवं सुरेश्वर एक ही व्यक्ति नहीं हैं। अब हम नीचे पूर्वमीमांसा से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों एवं लेखकों की काल - तिथियों का उल्लेख करेंगे। इन तिथियों में बहुत-सी केवल अनुमान पर आधारित हैं। जैमिनिका पूर्वमीमांसासूत्र : ई० पू० ४०० से ई० पू० २०० । वृत्तिकार: शबर द्वारा उद्धृत वृत्तिकार के विषय में कई विरोधी मत हैं । शास्त्रदीपिका में पार्थसारथी ने लिखा है कि वे उपवर्ष हैं। शबर ने वृत्तिकार को बड़ी श्रद्धा से उल्लिखित किया है, किन्तु कई स्थानों पर उन्होंने उनसे अपना मतभेद भी प्रकट किया है। दोनों मीमांसाओं पर लिखी गयी कृतकोटी नामक एक बृहद् टीका पञ्चहृदय द्वारा बोधायन द्वारा लिखी कही गयी है । यह अवलोकनीय है कि पू० मी० सू० पर लिखे गये किसी आरम्भिक ग्रन्थ द्वारा बोधायन का नाम नहीं लिया गया है और न शंकर ने ही उनका नाम लिया है, यद्यपि उन्होंने उपवर्ष का नाम दो बार लिया है । यद्यपि रामानुजाचार्य ने ब्रह्मसूत्र पर लिखे गये, श्रीभाष्य के आरम्भिक शब्दों द्वारा ब्रह्मसूत्र पर बोधायन द्वारा प्रणीत एक विशाल टीका का उल्लेख किया है, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं लिखा है कि बोधायन ने पू० मी० सू० पर कोई टीका लिखी है। प्रस्तुत लेखक यह मानने को सर्वथा सन्नद्ध नहीं है कि शबर द्वारा इतनी बार उल्लिखित वृत्तिकार उपवर्ष ही हैं । शबर ने पू० मी० सू० (१1१1३-५ ) पर टीका करते हुए वृत्तिकार की विभिन्न व्याखाओं का उल्लेख विस्तार के साथ किया है और उसी बीच में उपवर्ष के मत का भी उद्घाटन किया है। शबर ने दोनों को, ऐसा प्रतीत होता है, अलग-अलग माना है । यह बात कि तन्त्रवार्तिक ने उपवर्ष एवं वृत्तिकार को एक ही माना है, सिद्ध नहीं है । स्वयं कुमारिल से हमें ज्ञात है कि शबर से पूर्व एवं पश्चात् पू० मी० सू० पर कई वृत्तियाँ लिखी गयी थीं । अतः यह सम्भव है कि कुमारिल ने उपवर्ष को वृत्तिकार समझ लिया हो ( २।३।१६), यद्यपि शबर- भाष्य के अन्य स्थलों पर उल्लिखित वृत्तिकार विभिन्न व्यक्ति हो सकते हैं । उपवर्ष : ई० पू० १०० एवं ई० पश्चात् १०० के बीच में । भवदास : श्लोकवार्तिक ( प्रतिज्ञासूत्र, श्लोक ६३ ) ने इनका नाम लिया है और न्यायरत्नाकर की व्याख्या के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि भवदास शबर से पूर्व हुए थे । इनका काल १०० ई० एवं २०० ई० के मध्य है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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