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________________ मीमांसा एवं धर्मशास्त्र ११३ सू० सम्प्रदाय की प्रसिद्धि कम हो गयी और कुमारिल का भट्ट सम्प्रदाय कई शतियों तक महत्त्वपूर्ण बना रहा। प्रस्तुत लेखक का मत है कि प्रभाकर कुमारिल के पश्चात् हुए हैं, किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किस व्यक्ति से अपने विलक्षण दृष्टिकोण ग्रहण किये अथवा ये दृष्टिकोण उनके अपने थे ( यह दूसरी बात अधिक ठीक लगती है) । पं० के० एस० रमास्वामी शास्त्री (तन्त्र रहस्य की भूमिका, १६५६ ) ने कहा है कि प्रभाकर सम्प्रदाय के विचार बादरि के हैं। इस विद्वान ने कोई विशिष्ट तर्क नहीं उपस्थित किया है और न कोई प्रमाण ही उपस्थित किया है कि बादरि के सिद्धान्त भर्तृ मित्र के मत से मिलते थे । भर्तृ मित्र ने T༠ मी० सू० की ऐसी व्याख्या की है जो ईश्वरवादी वही जाती है। मीमांसा के विषयों पर बादरि के मत केवल चार बार पू० मी० में • उद्धृत हैं ( यथा ३|१| ३ में कौन से विषय शेष हैं; ६।१।२७ में, वैदिक यज्ञ शूद्रों द्वारा भी सम्पादित हो सकते हैं; ८|३|६ में केवल शुद्ध यज्ञिय विषय; ६।३।३३ में, सामवेद के गायन की विधि के विषय में) । इन सभी स्थलों पर कहीं भी भर्तृ मित्र के ईश्वरवादी मत या प्रभाकर के सिद्धान्तों का कोई सम्बन्ध नहीं है । कुमारिल के पश्चात् मीमांसा के सिद्धान्तों पर या पू० मी० सू० के विषयों पर बहुत-सी टीकाएँ, टीकाओं पर टीकाएँ एवं सार-ग्रन्थ प्रणीत हुए । गत पचास-साठ वर्षों में आज के विद्यमान खण्डित या पूर्ण ग्रन्थों के, उनके आरम्भिक लेखकों के तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों के विषय में बहुत से कठिन एवं पेचीदे प्रश्न उठ खड़े हुए हैं और इन सभी बातों के विषय में बहुत-से निबन्ध लिखे गये हैं । प्रस्तुत लेखक ने उनमें अधिकांश IT अवलोकन कर लिया है, यदि उन सभी ग्रन्थों का उल्लेख तथा उन पर विवेचन उपस्थित किया जाय तो एक पृथक् ग्रन्थ लिखने की आवश्यकता पड़ जायेगी। हम ऐसा यहाँ नहीं कर सकते। सादृश्य स्थापन तथा सम्बन्धज्ञान के विषय में कुछ प्रश्नों का उत्तर यहाँ दिया जा रहा है । (१) क्या प्रभाकर कुमारिल के शिष्य थे ? इसका उत्तर यह है कि इस विषय में हमें कोई पुष्ट प्रमाण नहीं प्राप्त होता, केवल परम्परा का उल्लेख मात्र मिलता है, किन्तु प्रभाकर निश्चित रूप से कुमारिल के पश्चात् हुए थे 1 ( २ ) क्या शालिकनाथ प्रभाकर के साक्षात् शिष्य थे ? हाँ । ( ३ ) क्या मण्डन मिश्र कुमारिल के शिष्य थे ? स्पष्ट उत्तर के लिए हमारे पास कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है, किन्तु स्वयं मण्डन ने अपने भावनाविवेक में कुमारिल का एक श्लोक व्याख्या यितकिया है और तन्त्रवार्तिक से एक श्लोक उद्धृत किया है। विधिविवेक में भी, जिसे मण्डन ने भावनाविवेक के उपरान्त लिखा, उन्होंने तन्त्रवार्तिक से उद्धरण लिया है। इसी विधिविवेक में उन्होंने श्लोकवार्तिक को उद्धृत किया है। मण्डन ने प्रभाकर की बृहती से अपने विधिविवेक में उद्धरण दिया है । अतः मण्डन, यदि कुमारिल के शिष्य नहीं थे, तो उनके पश्चात् हुए थे या उनके समकालीन, किन्तु अवस्था में छोटे थे । (४) क्या मण्डन एवं उम्बेक एक ही हैं ? नहीं। उम्बेक ने मण्डन के भावनाविवेक पर एक टीका लिखी जिसमें पृ० १७ एवं ७६ पर उन्होंने इसके कई भाषान्तरों का उल्लेख किया है । यह सम्भव नहीं है कि स्वयं लेखक अपने ग्रन्थ पर विभिन्न भाषान्तरों का उल्लेख करेगा और उनकी व्याख्या उपस्थित करेगा। यदि दोनों एक होते तो ऐसी बात न होती । ( ५ ) क्या मण्डन एवं विश्वरूप एक ही हैं ? नहीं । (६) क्या विश्वरूप एवं सुरेश्वर एक ही हैं ? हाँ । जब विश्वरूप संन्यासी हो गये तो उन्होंने अपना नाम सुरेश्वर रख लिया । १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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