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________________ मीमांसा एवं धर्मशास्त्र उपस्थित पूर्वमीमासासूत्र एवं वेदान्तसूत्र (या ब्रह्मसूत्र) के प्रणेता तथा उनके पारस्परिक सम्बन्ध के विषय में कुछ अति कठिन एवं मत-मतान्तरपूर्ण प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। इन सभी प्रश्नों पर यहाँ विचार सम्भव नहीं है। प्रथम द्रष्टव्य बात यह है कि यद्यपि वेदान्तसूत्रों की संख्या पू० मी० सू० की संख्या का ११५ भाग मात्र है, तथापि वेदान्तसूत्र में व्यक्तिगत संकेत अधिक (अर्थात् ३२) हैं और पू० मी० सू० में अपेक्षाकृत कम (अर्थात् २७) । दूसरी बात यह है कि वेदान्तसूत्र में जैमिनि का नाम ११ बार और बादरायण का ६ बार आया है तथा पू० मी० स० ने दोनों का नाम केवल ५ बार लिया है। प्रश्न उठता है-- क्या जैमिनि एवं बादरायण समकालीन थे ? यदि नहीं, तो दोनों में क्या सम्बन्ध था ? विद्वान् लोग सामान्यत: यही स्वीकार करते हैं कि दोनों समकालीन नहीं थे। सामविधानब्राह्मण में एक प्राचीन परम्परा की ओर निर्देश है, जिसके अनुसार जैमिनि पाराशर्य व्यास के शिष्य कहे गये हैं। हमने इस खण्ड के अध्याय २२ में यह पढ़ लिया है कि किस प्रकार पुराणों ने यह घोषित किया है कि व्यास पाराशर्य ने, जो कृष्ण द्वैपायन भी कहे जाते हैं, एक वेद को चार में गठित किया और क्रम से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद को पैल, वैशम्पायन, जैमिनि एवं सुमन्तु को पढ़ाया। महाभारत में सुमन्तु, जैमिनि, वैशम्पायन एवं पैल को शुक (व्यास के पुत्र) के साथ व्यास का शिष्य कहा गया है (देखिए सभा० ४।११, शान्तिपर्व ३२८।२६-२७, ३५०।११-१२) । आश्वलायनगृह्यसूत्र (३।४।४) में तर्पण के सिलसिले में एक मनोरंजक कथन है, यथा--'सुमन्तु-जैमिनि-वैशम्यापन-पल-सत्र-भाष्य-भारत-महाभार कथन से यह प्रकट होता है कि ईसा की कई शतियों पूर्व से ही जैमिनि एक आदरणीय नाम था और वह सामवेद से सम्बन्धित था। विद्वानों ने पू० मी० सू० एवं वेदान्तसूत्र में आये हुए जैमिनि एवं बादरायण के नामों एवं संकेतों की जांच की है। प्रो० के० ए० नीलकण्ठ शास्त्री (इण्डि० एण्टी०, जिल्द ५०, पृ० १६७-१७४) ने एक चकित करने वाली स्थापना दी है कि जैमिनि नाम के तीन व्यक्ति थे। टी० आर० चिन्तामणि (जे० ओ० आर०, मद्रास, जिल्द ११, सप्लिमेण्ट, १० १४) ने शास्त्री से सहमति प्रकट की है। पू० मी० स० में जैमिनि का नाम पांच बार आया है (३।११४, ६।३।४, ८।३७, ६२।३६ एवं १२।१७।) सामान्य ज्ञान तो यही कहता है कि ये पांच बार आये हुए संकेत केवल एक ही व्यक्ति के विषय में है।' यदि पू० मी० सू० द्वारा इसके लेखक के अतिरिक्त दो अन्य जैमिनियों के नाम इन पाँच सत्रों में लिये गये होते तो स्पष्ट रूप से यह बात कही गयी होती। प्रो० शास्त्री का ऐसा कथन है कि ६।३।४ में उल्लिखित जैमिनि अन्य चार सूत्रों में उल्लिखित जैमिनि से भिन्न हैं, क्योंकि शबर ने उसमें जैमिनि के लिए 'आचार्य' उपाधि का प्रयोग नहीं किया है, जैसा कि उन्होंने १०. सोयं प्राजापत्यो विधिस्तमिमं प्रजापति हस्पतये बृहस्पतिर्नारदाय नारदो विष्वक्सेनाय विश्वक्सेनो व्यासाय पाराशर्याय व्यासः पाराशर्यो जमिनये जैमिमिः पौप्पिण्ड्याय पौष्पिण्ड्यः पाराशर्यायणाय पाराशर्यायणो बादरायणाय बादरायणस्ताण्डिशाट्यायनिम्यां ताडिशाट्यायनिनौ बहन्यः.....आदि । सामविधान ब्राह्मण (अन्त में)। न्या० र० ने श्लोकवा० (प्रतिज्ञा-सूत्र, श्लोक २३) पर पूर्वमीमांसा को गुरु. परम्परा को यों व्यक्त किया है-- ब्रह्मा-प्रजापति-इन्द्र-आदित्य-वसिष्ठ-पराशर-कृष्णद्वैपायन-जैमिनि। युक्ति. स्नेहप्रपूरणी (पृ० ८, चौखम्बा सीरीज) ने दो समान गुरुक्रम उपस्थित किये हैं, जो सामविधान ब्रा० से तथा एक दूसरे से थोड़ा-सा अन्तर रखते हैं। वसिष्ठ तक गुरुपरम्परा व्यावहारिक रूप से व्यर्थ-सी है। यह अवलोकनीय है कि सामविधान ब्राह्मण में जैमिनि को व्यास पाराशर्य का शिष्य कहा गया है, जब कि जैमिनि एवं बादरायण के बीच में दो अन्य नाम आ जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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