________________
६०
धर्मशास्त्र का इतिहास
उसे झूठे अभियोग के प्रतिफलों से छुटकारा पाने के लिए उस पौराणिक पद्य का पाठ करना चाहिए जो एक दाई द्वारा बच्चे से कहा गया था -- एक सिंह ने प्रजेनजित् को मारा, सिंह को जाम्बवंत ने मार डाला, मत रोओ, हे सुकुमारक, यह तुम्हारी स्यमन्तक मणि है।' (देखिए, हैं०, व्रत०, भाग १, पृ० ५२९-५३०; वहीं, काल, पृ० ६८१ ; हरिवंश ११३८ । ३६; विष्णु० ४।१३।४२; वायु० ९६।४२; १० ६।२७६ । १९; ब्रह्म० १६ ३६ ) । 'सुकुमारक' किसी लड़के का नाम हो सकता है या केवल प्यार का नाम हो सकता है। यह गाथा मौसल पर्व ( ३।२३) एवं कतिपय पुराणों में आयी है । देखिए वायु ( ९६ । २०-५२), अग्नि ( १७५।४०-४४), मत्स्य (अध्याय ४५), विष्णु (४।१३।३-१८), भागवत (१०, उत्तरार्ध), पद्म (५।१३।७८-८३, ६।२७६ ५६, ५-३७ ) एवं ब्रह्म (१६।१२- ४५) । सूर्य ने प्रसेन के भाईस जित् को देदीप्यमान स्यमन्तक मणि दी जो प्रतिदिन ८ भार सोना उत्पन्न करती थी ( मागवत १०।५६ । ११ ) ; कृष्ण ने इसे पाने का प्रयास किया, किन्तु नहीं पा सके। इस मणि से युक्त प्रसेन शिकार खेलने गया और सिंह द्वारा मार डाला गया, किन्तु मालुओं के नेता जाम्बवंत ने सिंह को मार डाला और स्यमन्तक ले ली और उसके साथ अपनी गुफा में चला गया । सत्राजित् एवं यादवों ने शंका की कि कृष्ण ने उस मणि को प्राप्त करने के लिए प्रसेन को मार डाला है । कृष्ण को यह अभियोग बहुत बुरा लगा और उन्होंने प्रसेन एवं सिंह के शवों को खोज निकाला और जब उन्होंने गुफा में दाई को उस प्रकार का सम्बोधन करते सुना तो उसमें प्रवेश किया। गुफा में कृष्ण एवं जाम्बवंत से मल्लयुद्ध हुआ । जब बहुत दिनों तक कृष्ण गुफा से बाहर नहीं निकले तो उनके अनुयायी यादव द्वारका चले आये और कृष्ण की मृत्यु का सन्देश घोषित कर दिया । २१ दिनों के उपरान्त जाम्बवंत ने हार स्वीकार कर ली ( भागवत में २८ दिन उल्लिखित हैं, १०।५८/२४) और कृष्ण से सन्धि कर ली तथा अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह कृष्ण से कर दिया तथा स्यमन्तक मणि दहेज में दे दी । द्वारका लौटने पर कृष्ण ने वह मणि प्रसेन के भाई सत्राजित् को दे दी और इस प्रकार झूठे अभियोग से उन्हें छुटकारा मिला। वायु ( ९६/५८ ) एवं मत्स्य (४५।३४) आदि पुराणों में आया है कि मिथ्यारोप से छुटकारा पाने वाले कृष्ण की यह गाथा जो सुनता है वह ऐसे मिथ्यारोप में नहीं फँसता । तिथितत्त्व ( पृ० ३२ ) में ऐसी व्यवस्था है कि माद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को जो व्यक्ति असावधानी से चन्द्र देख लेता है उसे दाई वाली गाथा का श्लोक पानी के ऊपर पढ़ कर उस पानी को पी लेना चाहिए और स्यमन्तक मणि की कहानी सुन लेनी चाहिए।
जब भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को गणेश पूजन होता है तो उसे शिवा तिथि कहा जाता है। जब गणेश का सम्मान माघ शुक्ल चतुर्थी को होता है तो उसे शान्ता तथा जब शुक्ल पक्ष की चतुर्थी मंगलवार को हो तो उसे सुखा कहा जाता है। देखिए हेमाद्रि ( व्रत, भाग १, पृ० ५१२-१३, पृ० ५१३५१४ एवं पृ० ५१५-५१९) ।
आजकल गणेश सबसे अधिक प्रचलित देव हैं और प्रत्येक महत्त्वपूर्ण कृत्य में उनका आवाहन सर्वप्रथम होता है, वे ज्ञान के देव हैं, साहित्य के अधिष्ठाता देव हैं, सफलता दायक हैं और विघ्नविनाशक हैं ।
गणेश-पूजन एवं गणेश-प्रतिमाओं के विषय में देखिए इस महाग्रन्थ का खण्ड दो । विशेष अध्ययन के लिए देखिए ब्रह्मवैवर्तका गणेशखण्ड (४६ अध्यायों में ), गणपत्यर्थर्वशीर्ष, अहल्याकामधेनु, कृत्यकल्पतरु ( व्रत, पृ० ८४-८७) आदि ।
भाद्रपद के शुक्लपक्ष की पंचमी को ऋषिपञ्चमीव्रत सम्पादित होता है । प्रथमतः यह सभी वर्णों के पुरुषों के लिए प्रतिपादित था, किन्तु अब यह अधिकांश में नारियों द्वारा किया जाता है। हेमाद्रि ( व्रत, भाग १, पृ० ५६८-५७२) ने ब्रह्माण्डपुराण को उद्धृत कर विशद विवरण उपस्थित किया है। व्यक्ति को नदी आदि में स्नान करने तथा कृत्य करने के उपरान्त अग्निहोत्रशाला में जाना चाहिए, सातों ऋषियों की प्रतिमाओं को पंचामृत में नहलाना चाहिए. उन पर चन्दन - लेप, कर्पूर लगाना चाहिए, पुष्पों, सुगन्धित पदार्थों, धूप, दीप, श्वेत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org