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धर्मशास्त्र का इतिहास
द्वादशी के दिन विष्णु पूजा होती है और निम्न बातें नहीं की जाती हैं, यथा दिन-शयन, दूसरे का भोजन, दोपहर के उपरान्त' पुनर्भोजन, मैथुन, मधु, काँसे के बरतन का प्रयोग, मांस एवं तैल का प्रयोग । और देखिए ब्रह्मपुराण ( हे०, काल, पृ० २०३ ) |
कुछ पुराणों (यथा ब्रह्मवैवर्त ) ने आठ प्रकार की द्वादशियों का उल्लेख किया है, यथा उन्मीलनी, वञ्जुली, त्रिस्पर्शा, पक्षर्वाधनी, जया, विजया, जयन्ती एवं पापनाशिनी । देखिए हे० ( काल, पृ० २६०-२६३), नि० सि० (४३), स्मृ० कौ० (२५० - २५४) आदि । अन्य विस्तार यहाँ छोड़ा जा रहा है। उद्यापन या पारण या पारणा के साथ एकादशी व्रत का अन्त होता है। 'पारण' शब्द की व्युत्पत्ति कुछ लोगों ने “पार कर्मसमाप्ती" धातु से की है, जिसका अर्थ है 'किसी कृत्य को समाप्त करना ।' कूर्म० के अनुसार एकादशी को व्रत एवं द्वादशी को पारण होना चाहिए। किन्तु त्रयोदशी को पारण नहीं होना चाहिए, क्योंकि वैसा करने से १२ द्वादशियों के पुण्य नष्ट हो जाते हैं । किन्तु ऐसी व्यवस्था होने पर भी कुछ विधियों में त्रयोदशी को पारण हो सकता है। यदि एक दिन पूर्व से एकादशी दशमी से संयुक्त हो और दूसरे दिन की द्वादशी से भी संयुक्त हो तो उपवास द्वादशी को होता है, किन्तु यदि उपवास के उपरान्त द्वादशी न हो तो त्रयोदशी के दिन पारण होता है । सामान्य नियम यह है कि सभी व्रतों में पारण प्रातःकाल होता है ।
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