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________________ धर्मशास्त्र पर पुराणों के प्रभाव का कारण ४३९ पुराणों ने लोगों के धार्मिक कृत्यों, व्यवहारों एवं आदर्शों में कतिपय महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कर दिये। सबसे अधिक पुराणों का विशिष्ट विचार एवं सार है थोड़े प्रयत्न से ही महान् पुण्यों एवं प्रतिफलों की प्राप्ति। विष्णुपुराण (६२) में आया है कि मुनियों ने व्यास से प्रश्न पूछा-'किस युग में थोड़ा-सा धर्म भी बड़े पुण्यों की उत्पत्ति करता है ?' व्यास गंगा में स्नान कर रहे थे, वे बाहर आकर बोले, 'शूद्र अच्छा है, कलि अच्छा है और वे पुनः नदी में डूब गये; पुनः बाहर निकल कर बोले, 'स्त्रियाँ अच्छी हैं और धन्य हैं; उनसे बढ़कर अन्य कौन धन्य है ?' जब वे स्नान और प्रातःक्रियाएँ सम्पादित कर चुके तो मुनियों ने उनसे कलि, शूद्रों एवं नारियों के अच्छे एवं धन्य होने का कारण पूछा। उन्होंने उत्तर दिया--"कोई भी व्यक्ति कलियुग में एक दिन में तपों, ब्रह्मचर्य एवं जप से उतना ही पुण्य कमा लेता है जितना कृतयुग (सत्ययुग) में १० वर्षों में, त्रेता में एक वर्ष में और द्वापर में एक मास में प्राप्त होता था। अतः मैंने कलि को उत्तम कहा। कलि में व्यक्ति केवल केशव के नाम के लगातार कथन से जो प्राप्त करता है वह कृतयुग में गम्भीर ध्यान से, वेता में यज्ञों से तथा द्वापर में पूजा से प्राप्त होता है। मैं कलि से इसीलिए प्रसन्न हूँ कि इसमें व्यक्ति अल्प प्रयास से ही धर्म की महत्ता प्राप्त कर लेता है। तीन उच्च वर्गों के लोग कठिन नियमों के पालन के उपरान्त वेदों का अध्ययन करते हैं, पुनः उन्हें यज्ञ करने पड़ते हैं जिनमें अर्थ की आवश्यकता पड़ती है। यदि वे अपने कर्तव्य उचित ढंग से नहीं करते तो वे पाप के भागी होते हैं, वे मनचाहा न तो खा सकते हैं और न पी सकते हैं प्रत्युत वे भोजन-सम्बन्धी कतिपय नियमों के पालन पर आधारित रहते हैं; द्विज लोग बहुत कष्ट के उपरान्त उच्च लोकों की प्राप्ति करते हैं; शूद्र तीन वर्गों की सेवा करके उत्तम लोकों की प्राप्ति करता है; उसे पाकयज्ञों (बिना मन्त्रों वाले) का अधिकार है, अतः वह द्विज की अपेक्षा अधिक धन्य है। उसे भोजन-सम्बन्धी कठोर नियमों का पालन नहीं करना होता और तभी मैंने उसे उत्तम या अच्छा कहा। नारी भी विचार, शब्द (वचन) एवं कर्म द्वारा अपने पति की सेवा करके बहुत कम कष्ट के साथ उन लोकों की प्राप्ति करती है जिन्हें उसका पति बहुत प्रयास एवं कष्ट करके प्राप्त करता है, इसी से मैंने तीसरी बार यह कहा कि स्त्रियाँ धन्य हैं। कलियुग में धर्म की प्राप्ति थोड़ा कष्ट उठाने से हो जाती है और लोग अपने आत्मा की विशेषताओं के जल से अपने पापों को धो लेते हैं, शूद्र लोग द्विजों की सेवा करके तथा स्त्रियाँ अपने पतियों की सेवा करके वही फल पाती हैं। इसी से मैंने इन तीनों को धन्य कहा।" यही बात ब्रह्मपुराण (२२९।६२-८०) में भी है। और देखिए विष्णुपु० (६।२।१५-३० एवं ३४-३६)। विष्णुपुराण का कथन है कि व्यक्ति को उस समाज में, जिसमें वह जन्म लेता है, अपना कर्त्तव्य करते रहना चाहिए, या जो कार्य उसने अपने हाथ में लिया है उसे करना चाहिए; जो व्यक्ति ऐसा करता है वह चाहे ब्राह्मण हो या शूद्र, उच्च लोकों की प्राप्ति करता है। यही बात गीता (१८१४५-४६) में भी है। वेदों, जैमिनिसूत्रों, वेदान्तसूत्रों के सदृश प्राचीन ग्रन्थों ने इस बात पर कभी भी विचार नहीं किया कि स्त्रियाँ एवं शूद्र किस प्रकार आध्यात्मिक जीवन एवं अन्तिम सुन्दर गति प्राप्त कर सकते हैं। वेदान्तसूत्र (१।३।३४-३८)ने शूद्र को वेद एवं उपनिषदों के अध्ययन से वंचित माना है। बुद्ध के उपदेश कुछ दूसरे थे। उनके अनुसार सभी लोग, चाहे जिस वर्ण या जाति के हों, दुःखों से छुटकारा पा सकते हैं। अतः शूद्रों का ध्यान बौद्ध धर्म की ओर अधिक गया। भगवद्गीता एवं पुराणों ने भारतीय समाज के दृष्टिकोण को परिवर्तित इनका कोई अर्थ है ? उत्तर है : 'विधिना त्येकवाक्यत्वात् स्तुत्यर्थेन विधीनां स्युः' (जै० ११२१७), अर्थात् ये प्रशंसात्मक या स्तुति रूप हैं और केवल विधियों की प्रशंसा के लिए उनके अंग हैं। २५. स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।... यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम् । स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धि बिन्दति मानवः॥ भगवद्गीता (१८१४५-४६)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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