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धर्मशास्त्र का इतिहास
कहा है कि यह सात पुराणों में आया है ) । अग्निपुराण के अध्याय २०६ में अगस्त्य को अर्घ्य देते समय ऋ० ( १।१७९/६ ) को श्लोक १३ के रूप में रखा गया है।
पुराणों ने न केवल वैदिक संहिताओं से ही कुछ कृत्यों के लिये मन्त्र लिये हैं, प्रत्युत उन्होंने बहुत-से उपनिषद् - वचनों को कुछ परिवर्तनों के साथ प्रयोग में लाने की व्यवस्था कर दी है। उदाहरणार्थ, कूर्म ( २|९| १२, १३ एवं १८) ने तै० उप० (२।४ : यतो वाचो निवर्तन्ते), श्वेताश्वतरोपनिषद् ( ३१८ : वेदाहमेतं पुरुषं ) आदि से लिया है। विष्णु पु० (६।५।६५) का पद्य है- 'द्वे विद्ये वेदितव्ये इति चाथर्वणी श्रुतिः', जिसमें मुण्डक उप० ( १|१|४) का उद्धरण है। वायु ( २०१५ एवं २०२८) क्रम से मुण्डकोपनिषद् ( २।२।४) एवं श्वेताश्वतरोपनिषद् ( ४/५ ) हैं । वायु ( १४ । १३) सर्वथा श्वेताश्वतर० ( ३।१६ ) है और यही वामन ( ४७/६४-६५ ) में है । वामन (४७/६७) ऋ० (१।१०।१) के समान ही है ।
इससे कुछ मनोरंजक प्रश्न उठ खड़े होते हैं । शूद्रों को वेदाध्ययन का अधिकार नहीं है। किन्तु वास्तव में, जैसा कि हमने ऊपर देख लिया है, पुराणों में बहुत से वैदिक मन्त्र हैं। भागवतपुराण ( ११४१२५) में आया है-'स्त्रियों, शूद्रों एवं केवल नामधारी ब्राह्मणों को वेद का अधिकार नहीं है; अतः मुनि (व्यास) ने कृपा करके उनके लिए. भारत का आख्यान प्रस्तुत किया ।"" देवीभागवत का कथन है--'स्त्रियों, शूद्रों एवं ब्राह्मणों (केवल नामधारी) को वेद का अध्ययन वर्जित है, पुराण उनके लाभ के लिए संग्रहीत किये गये हैं।' इन बातों से प्रकट होता है कि शूद्रों के लिए महाभारत - श्रवण वही महत्त्व रखता था जो ब्राह्मणों के लिए वेद और शूद्र भी महाभारत से आत्म-ज्ञान (मोक्ष) प्राप्त कर सकते थे ।
यद्यपि ब्राह्मणों ने पाँचवीं एवं उसके पश्चात् की शताब्दियों में शूद्रों को, जो हिन्दू जनता में सब से अधिक
१६. स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां त्रयो न श्रुतिगोचरा ।... • तस्माद् भारतमाख्यानं कृपया मुनिना कृतम् ॥ भागवत १।४।२५ । परिभाषाप्रकाश ( पृ० ३७) में उद्धृत, जिसमें ऐसा वक्तव्य है-- 'वेदकार्यकारित्वावगमाद् भारतस्य वेवकार्यात्मज्ञानकारित्वसिद्धिः ।' स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां न वेदश्रवणं मतम् । तेषामेव हितार्थाय पुराणानि कृतानि च ॥ देवीभागवत १।३।२१। शंकराचार्य ने वे० सू० (१।३।३८ ) में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है कि शूद्रों को वेदाध्ययन पर आवृत ब्रह्मविद्या का अधिकार नहीं है। किन्तु उन्होंने शूद्रों के लिए आत्मज्ञान का सर्वथा निषेध नहीं किया है। उन्होंने विदुर एवं धर्मव्याध के उदाहरण दिये हैं कि वे पूर्व जन्मों के सुकृत्यों के कारण ब्रह्मज्ञानी थे, वे ब्रह्मज्ञान के फल (मोक्ष, संसार से अन्तिम छुटकारा) को पायेंगे, शूद्रों को महाभारत एवं पुराणों के पढ़ने का अधिकार है, जैसा कि 'वह चारों वर्णों को सुनायें, इससे व्यक्त है, और इसी प्रकार वे ब्रह्म एवं मोक्ष का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं -- "येषां पुनः पूर्वकृत्तसंस्कारवशाद्विदुरधर्मव्याधप्रभृतीनां ज्ञानोत्पत्तिस्तेषां न शक्यते फलप्राप्तिः प्रतिषेद्धुं ज्ञानस्यैकान्तिकफलत्वात् । ‘श्रावयेच्चतुरो वर्णान्' इति चेतिहासपुराणाधिगमें चातुर्वर्ण्यस्याधिकारस्मरणात् । वेदपूर्वकस्तु नात्यधिकारः शूद्राणामिति स्थितम् ॥ भाष्य ( वे० सू० १।३।३८ ) । वे० सू० (३०४१३६) में शंकराचार्य ने वाचनवी नामक एक स्त्री की चर्चा की है जिसे ब्रह्मज्ञान था, 'रैक्व वाचक्नवी- प्रभृतीनामेवंभूतानामपि ब्रह्मवित्वत्युपलब्धः।' गार्गी वाचक्नवी ब्रह्मज्ञान की खोज करने के लिए प्रसिद्ध है (बृहदारण्यकोपनिषद् ३।६।१, ३८११ एवं १२) । महाभारत ( स्वर्गारोहणपर्व ५।५०-५१ ) में आया है कि वह धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष नामक पुरुषार्थी के विषय में जो कुछ कहता है वह अन्यत्र भी प्राप्त है, किन्तु वह जो कुछ इन विषयों पर नहीं कहता वह अन्यत्र नहीं है, महाभारत का श्रवण मोक्षार्थी ब्राह्मणों, राजाओं एवं गर्भवती नारियों द्वारा होना चाहिए।
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