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________________ पुराणों एवं उपपुराणों पर संक्षिप्त टिप्पणियां वराहपुराण (बी० आई० संस्करण)--इसमें २१७ अध्याय एवं ९६५४ श्लोक हैं, कुछ अध्याय पूर्णतया गद्य में हैं (यथा ८१-८३, ८६-८७ एवं भुवनकोश पर ७४) तथा कुछ गद्य एवं पद्य दोनों में हैं (यथा ८०, ८४, ८५, ८८ एवं ८९)। यह वैष्णव पुराण है और वराहावतार में विष्णु द्वारा पृथिवी से कहा गया माना गया है। यह द्रष्टव्य है कि इस पुराण में व्यास नहीं आये हैं, यद्यपि सूत कई अध्यायों (यथा १, २, ३९, ५०, १२७, १३७-१३८, १४८, १५१, १८१, २१३) के आरम्भ में आये हैं। इसमें व्रत, तीर्थ, दान, मूर्तियाँ एवं उनकी पूजा, आशौच, श्राद्ध, कर्मविपाक, नरक, जगत्सृष्टि, भूगोल, प्रायश्चित्त आदि धर्मशास्त्रीय सामान्य विषयों पर चर्चा की गयी है। कल्पतरु ने १५० श्लोक व्रत पर, ४० श्राद्ध पर, २५० तीर्थ पर, १७ नियतकाल पर, ५ दान पर एवं ४ गृहस्थकाण्ड पर उद्धृत किये हैं। एक विचित्रता यह है कि इसने लोहारगल एवं स्तुतस्वामी नामक ऐसे तीर्थों का उल्लेख किया है, जो अन्य पुराणों में नहीं पाये जाते। अपरार्क ने कई विषयों में इसे उद्धृत किया है। ब्रह्मपुराण ने वराहपुराण को कन्याराशि में प्राप्त सूर्य की स्थिति में पौर्णमासी के दिन पितरों के श्राद्ध के विषय में उद्धृत किया है। भविष्योत्तरपुराण (३२।१२) ने भी इसे उद्धृत किया है। वराह ने नन्दवर्धन नामक शक राजकुमार की चर्चा की है (१२२।३४) और एक शक राजा का उल्लेख किया है (१२२१५६)। देखिए ह० (ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द १८, पृ० ३२१-३३७) । वराहपुराण की तिथि के विषय में निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन है। यद्यपि यह आरम्भिक पुराणों में नहीं आता, तब भी यह १० वीं शती के पूर्व का अवश्य माना जा सकता है। वामनपुराण (वेंक० प्रेस संस्करण)--मत्स्य, वायु, वराह आदि की तुलना में यह एक छोटा पुराण है। वेंकटेश्वर प्रेस के संस्करण में ५४५१ श्लोक हैं। अध्याय २६, ४४ एवं ९३ गद्य में हैं। इसके विस्तार के लिए इसमें बहुत-सी कथाएँ हैं, यथा--शंकर द्वारा ब्रह्मा का एक सिर काट लेना; प्रह्लाद एवं उसके पौत्र बलि तथा उसके (बलि के) अधःपतन की कथा; देवी की महत्ता एवं उसके वीरोचित कार्य; देवों की प्रार्थना पर शिव एवं उमा का विवाह; कार्तिकेय का जन्म एवं उनके विभिन्न नामों की व्याख्या; बलात्कार करने के अपराधी एवं शुक्र द्वारा शापित दण्ड की कथा; वसिष्ठ एवं विश्वामित्र का वैमनस्य'; गजेन्द्रमोक्ष आदि। इसमें सामान्य धर्मशास्त्रीय विषयों की संक्षिप्त चर्चा है, यथा-तीर्थ, सदाचार, आश्रमधर्म, सामान्य धर्म, व्रत, कर्मविपाक आदि। कल्पतरु ने तीर्थ पर ८८ श्लोक, व्रत पर ८०, दान पर १४ श्लोक और अपरार्क ने नियतकाल पर ११ श्लोक उद्धृत किये हैं। ___ वामनपुराण ने कामशास्त्रों (९१७३) एवं मंगलवार (४१।२४) का उल्लेख किया है। इसने स्पष्ट रूप से मत्स्य को सर्वोत्तम पुराण माना है। उस दण्ड की कथा, जिसने शुक्र की कन्या के साथ बलात्कार करना चाहा था और जो अपने राज्य के साथ नाश को प्राप्त हुआ लगता है, कौटिल्य के अर्थशास्त्र की प्रतिध्वनि है (दाण्डक्यो नाम भोजः कामाद् ब्राह्मणकन्याम् अभिमन्यमानः सबन्धुराष्ट्रो विननाश ।' ११६, पृ० ११)। इसमें आया है कि राजा को राजा ('राजन्') इसलिए कहा जाता है कि वह प्रजा का रंजन करता है। यही बात कालिदास ने भी कही है। इसमें आया है कि उमा को 'उमा' इसलिए कहा गया क्योंकि उसे 'उ, मा' कहकर तप करने से मना किया गया था। यह कहा गया है कि शिव ने ज घास की मेखला पहन कर एवं आषाढ़ (पलाश) का दण्ड धारण कर वैदिक विद्यार्थी का रूप धारण किया था। यह भी कुमारसम्भव (५) की प्रतिध्वनि-सा है। स्मृतिचन्द्रिका (१, पृ० १६८) ने १५. ततो राजेति शब्दोस्य पृथिव्यां रञ्जनादभूत् । वामन (४७।२४); मिलाइए 'राजा प्रकृतिरञ्जनात् ।' रघु० (४११२); राजा प्रजारञ्जनलब्धवर्णः परन्तपो नाम यथार्थनामा । रघु० (६।२१)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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