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धर्मशास्त्र का इतिहास
रेकर्डस आव हिन्दू राइट्स एण्ड कस्टम्स' में व्यक्त किया है कि पद्म के दो पाठ हैं, जिनमें एक उत्तर भारतीय है। और दूसरा दक्षिण भारतीय । पहला ५ खण्डों में और दूसरा ६ खण्डों में है। आनन्दाश्रम एवं वेंक० प्रेस में केवल दक्षिण भारतीय संस्करण ही प्रकाशित है, यद्यपि दोनों प्रेसों के पाठों की व्यवस्था में अन्तर है । ह० का कथन है कि पद्म का उत्तर-काण्ड ९०० ई० के उपरान्त का, किन्तु १५०० ई० के पूर्व का है। एक बात द्रष्टव्य है कि मत्स्य एवं पद्म के सैकड़ों श्लोक एक समान हैं और हेमाद्रि जैसे कुछ लेखक वही बात कभी मत्स्य की और कभी पद्म की कहते हैं । मत्स्य में स्मृति विषयक बहुत-सी बातें पायी जाती हैं तथा मध्यकालीन निबन्धों ने उससे बहुत से उद्धरण लिये हैं, अतः प्रस्तुत लेखक की ऐसी धारणा है कि पद्म ने ही मत्स्य से उधार लिया है। ऐसा पद्म ने कब किया, इस विषय में कोई निश्चित तिथि नहीं दी जा सकती, किन्तु यह कार्य १००० ई० के पूर्व ही हो गया होगा । पद्म ( ४ । १०२ ।४० - ४१ एवं ४ । ११० । ४८३ ) ने कूर्म का उल्लेख किया है तथा ४।५ । ३२-४३ में श्लेष एवं परिसंख्या जैसे अलंकार आये हैं । कल्पतरु, अपरार्क एवं स्मृतिच० ने पद्म को उद्धृत किया है | आनन्दाश्रम ग्रेस के संस्करण में ६२८ अध्याय एवं ४८, ४५२ श्लोक हैं। इसमें अश्वत्थ को बोधिसत्त्व ( सृष्टिखण्ड ५५।१६ ) कहा गया है और गुर्जरदेश (२१५१।३६-३७ ) के वनस्थल नामक स्थान का उल्लेख हुआ है ।
ब्रह्मपुराण – आनन्दाश्रम वाला प्रकाशन पश्चात्कालीन संकलन-सा लगता है । देखिए ह० ' एपॉक्रिफल ब्रह्मपुराण' (इण्डियन कल्चर, जिल्द २, पृ० २३५-२४५ एवं पुराणिक रेकर्ड्स आदि, पृ० १४५ - १५७) । ह० का कथन है कि प्रकाशित ब्रह्म में जीमूतवाहन, अपरार्क, बल्लालसेन, देवण्णभट्ट एवं हरदत्त में पाये जाने वाले उद्धरण नहीं मिलते हैं, इसमें महाभारत, विष्णु, वायु एवं मार्कण्डेय के पूरे अध्याय तक उद्धृत हो गये हैं, और यह १० वीं शती एवं १२ वीं शती के बीच में कहीं प्रणीत हुआ होगा । एच० ओट्टी श्रेडर का कथन है कि प्रस्तुत ब्रह्म के २२६२४४ अध्याय, जिनमें सांख्य एवं योग का विवेचन हुआ है, महाभारत से लिये गये हैं (इण्डि० कल्चर, जिल्द २, पृ० ५९२-९३) । दानसागर ने दो ब्रह्मपुराणों की चर्चा की है और एक का उसने उपयोग नहीं किया है। कल्पतरु ब्रह्मपुराण से १५०० श्लोक लिये हैं ( ६०० नियतकाल पर, ६६ तीर्थ पर, ६० मोक्ष पर, ७८ राजधर्म पर, २१ गृहस्थ पर, २२ व्यवहार पर, १५ व्रतों पर, १५ ब्रह्मचारी पर ) । कल्पतरु ने वायु एवं मत्स्य से भी उद्धरण लिये हैं, किन्तु ब्रह्म वाले उद्धरण सब से अधिक हैं। श्राद्ध की चर्चा में कल्पतरु ने ब्रह्मपुराण कुछ ऐसे श्लोक उद्धृत किये हैं जो बुद्ध एवं बौद्ध साधुओं के लिए किसी विशिष्ट तिथि पर सम्मान की बात चलाते हैं । प्रकाशित ब्रह्म में २४५ अध्याय एवं १३, ७८३ श्लोक हैं । ७० से १७५ तक के अध्यायों के ४६४० श्लोकों में कतिपय तीर्थों का उल्लेख है, अध्याय २८ से ६९ तक कोणादित्य, एकाग्र अवन्ती, पुरुषोत्तम तीर्थ जैसे तीर्थों का वर्णन है । सम्पूर्ण पुराण अथवा कम-से-कम एक विभाग १७५ वें अध्याय तक समाप्त-सा दृष्टिगोचर होता है और १७६ वें अध्याय से वासुदेवमाहात्म्य का आरम्भ होता है जो २१३ वें अध्याय तक चला जाता है । यहाँ वर्णनकर्ता व्यास हैं न कि ब्रह्मा जो प्रथम अध्याय से लेकर १७५वें अध्याय तक वर्णनकर्ता रहे हैं । ४२वें तथा उसके आगे के अध्यायों से बहुत-से श्लोक तीर्थचिन्तामणि द्वारा उद्धृत किये गये हैं । वाचस्पति १५ वीं शती के उत्तरार्ध में हुए थे, अतः आज के ब्रह्मपुराण का प्रथम भाग १३ वीं शती के पश्चात् नहीं रखा जा सकता। आज के ब्रह्म के कतिपय श्लोक ब्रह्माण्ड एवं वायु में पाये जाते हैं । यह सम्भव है कि जिस ब्रह्मपुराण को बल्लालसेन ने छोड़ दिया था वह आज वाला ही संस्करण हो और कल्पतरु एवं बल्लालसेन के समक्ष कोई अन्य संस्करण था, जो अपेक्षाकृत पुराना था । आज का ब्रह्म सम्भवतः ऐसे भूमिभाग में संगृहीत हुआ था जहाँ से गोदावरी (गौतमी) दण्डकारण्य में बहती है। ऐसा आया है कि दण्डकारण्य परम पुनीत देश है (८८/१८, १२३।११७ एवं १२९।५५ ) और वहाँ से गोदावरी बहती है ( १२९/६३, ६६ ) । ऐसा कहा गया (८८।२२-२४) है कि 'जनस्थान' गौतमी पर वह स्थान है जहाँ जनक वंश के राजा ने यज्ञ किया था।
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