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________________ ३४८ धर्मशास्त्र का इतिहास रोगों में तिथि एवं सप्ताह-दिन की शान्ति नक्षत्रशान्ति; जन्म काल के ९ उग्र नक्षत्रों एवं शेष की शान्तियाँ; अमावास्या, मल या आश्लेषा या ज्येष्ठा नक्षत्रों में जन्म पर शान्तियाँ; पिता या बड़े भाई के नक्षत्र पर जन्म होने पर शान्ति; गण्ड, वैधृति, व्यतीपात योग, संक्रान्ति, विषनाड़ी, ग्रहणों पर जन्म होने पर शान्तियाँ ; गोमखप्रसव नामक शान्ति'; गर्भाधान से एक मास तथा उसके आगे के मासों के भ्रूण की रक्षा के लिए घोषित शान्तियाँ ; बलि ; भ्रूणपीड़ा के मार्जन के लिए ओषधि; सरलता से जनन के साधन; जन्म के उपरान्त रक्षा के लिए; मन्त्रों के साथ प्रथम दिन पर बलि, नीराजन आदि; पवित्र जल से शिशु पर छिड़काव, देवों एवं पितरों का जल-तर्पण, होमों, यन्त्रों द्वारा देवों एवं पितरों को सन्तुष्ट करना; जन्मोपरान्त पहली तिथि से १२ वीं तिथि तक के कृत्यों के सामान्य नियम तथा प्रथम मास तथा आगे के एक वर्ष के मासों के कृत्य-नियम; दुष्ट आत्मा द्वारा पकड़े जाने पर मन्त्रों के साथ शिशु का लेप, वासना, स्नान; दूर्वा से होम, लम्बी आयु के लिए होम; अद्भुतों के लिए शान्ति तथा मूर्तियों, अग्नि, वृक्षों, वर्षा, जलाशयों के विषय में विचित्र घटनाओं, विचित्र जननों, जुड़वाँ उत्पत्ति, हथियारों, पशुओं, मन्दिर-ध्वंस एवं गह-ध्वंस के विषय में विचित्र उपस्थितियों के बारे में शान्तियाँ ; कतिपय उत्पातों एवं अद्भुतों की शान्तियाँ ; कपोत पक्षी एवं कौओं की मैथुन-क्रिया दर्शन पर शान्तियाँ; शरीर पर गिरगिट एवं छिपकली गिरने पर शान्तियाँ ; जनन-मरण के अशीचों पर शान्तियाँ ; हाथी-घोड़ों के विषय की शान्तियाँ; सप्ताह-दिनों की शान्तियाँ; महाशान्ति; नवग्रहमख ; अयुतहोम और उसकी विधि तथा नरसिंह०, देवी० एवं भविष्य में वर्णित लक्षहोम एवं कोटिहोम के नियम; देवीपुराण में वर्णित वसोर्धारा । कण्डिका संख्या ९३ (कौशिक सूत्र) में वर्णित अद्भुत ये हैं-- (घृत, मधु, मांस, सोना, रक्त आदि की भयंकर) वर्षा; यक्ष (बन्दर, पशु, कौए आदि जो मानव आकृति में प्रकट होते हैं); दो मेढ़कों की टर्रटरी; कुल के सदस्यों का झगड़ा-फसाद (कलह); भूचाल ; सूर्य-ग्रहण; चन्द्र-ग्रहण; औषसी (प्रातः ? या उषः काल) जब ऊपर नहीं जाती; जब वर्ष भयंकर हो जाता है, जब बाढ़ का भय होता है; जब ब्राह्मण अस्त्र-शस्त्र ग्रहण करते हैं; जब देव-प्रतिमाएँ नाचने लगती हैं, नीचे गिर जाती हैं, हँसती हैं, गाती हैं और अन्य रूप धारण करती हैं; जब दो हल-साथी उलझ पड़ते हैं; जब दो रस्सियाँ या धागे एक-दूसरे से उलझ जाते हैं; जब एक अग्नि दूसरी के स्पर्श में आ जाती है। जब कौआ जुड़वाँ बच्चा पैदा करता है; जब घोड़ी या गदही या नारी दो बच्चे जनती हैं; जब गाय से रक्त-दूध निकलता है। जब बैल गाय का दूध (थन से) पीने लगता है; जब एक गाय दूसरी गाय का थन पीने लगती है; जब गाय, घोड़ा, खच्चर या मानव आकाशफेन सूंघने लगते हैं; जब चींटियाँ अप्राकृतिक ढंग से व्यवहार करने लगती हैं; जब नीली मधु-मक्खियाँ अप्राकृतिक ढंग से व्यवहार करने लगती हैं; जब कोई अपूर्व अद्भुत प्रकट होता है; जब गाँव, घर, अग्नि-शाला, सभा-स्थल में कोई वस्तु टूट-फूट जाती है; जब शुष्क स्थान से पानी चलने लगता है; जब तिल से उतना ही तेल (?) निकलता है; जब यज्ञिय सामग्री पक्षियों, द्विपदों, चतुष्पदों के स्पर्श से अपवित्र हो जाती है; जब वेणी (लड़के या लड़की की) बायीं ओर हो सप्ताह-दिनों एवं नक्षत्रों की कुछ घटियों (नाड़ियों या घटिकाओं) को विषनाड़ी या विषघटी (जिनसे अशुभ फल मिलते हैं) कहा है। किन्तु ज्योतिषीय ग्रन्थों में केवल नक्षत्रों की कुछ घटियों को ही यह उपाधि दी गयी है और इन घटियों में उत्पन्न व्यक्ति माता, पिता, मन एवं अपनी हानि का कारण बताया गया है (धर्मसिन्धु, पृ० १८४)। मदनरत्न ने शान्तिक में २७ नक्षत्रों के विषय में विशद वर्णन उपस्थित किया है, यथा प्रत्येक नक्षत्र की विषघटी, अश्विनी में ५० वीं घटिका के उपरान्त तीन घटिका विषनाडी, भरणी में २४के उपरान्त एक ोटका, पुनर्वतु एवं पुष्य में क्रम से ३० एवं २० घटिकामों के उपरान्त एक घटिका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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