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________________ अध्याय १३ व्रतों एवं उत्सवों की सूची इस अध्याय में व्रतों एवं उत्सवों की जो सूची प्रस्तुत की जा रही है वह पूर्ण नहीं है, किन्तु अब तक की प्रकाशित सभी सूचियों से यह बड़ी है। व्रतों एवं उत्सवों में बहुत कम अन्तर पाया जाता है। बहुत-से व्रतों में उत्सवों के तत्त्व पाये जाते हैं और बहुत-से उत्सवों में भी कम या अधिक धार्मिक तत्त्व पाया जाता है, यहाँ तक कि सभी उत्सव आरम्भ में धार्मिक थे, किन्तु आगे चलकर वे धर्मनिरपेक्ष हो गये। यह द्रष्टव्य है कि ‘एशियाटिक रिसर्चेज' (जिल्द ३) में सर विलियम जोंस ने तिथितत्त्व (पृ० २५७-२९३) के आधार पर हिन्दू उत्सव-दिनों की एक सूची प्रकाशित की थी और प्रो० कीलहान ने भी अधिकांश में धर्मसिन्धु पर आधारित उत्सव-दिनों की एक सूची उपस्थित की (इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द २६,पृ० १७७-१८७)। ये दोनों सूची बहुत स्वल्प हैं। इण्डियन ऐफिमेरिस (जिल्द १, भाग १,पृ० ५५-६९) में एक लम्बी विवरणात्मक सूची है और तिथियों से सम्बन्धित एक संक्षिप्त किन्तु ठीक उत्सव-सूची पायी जाती है। किन्तु यह भी प्रस्तुत सूची से छोटी है। स्व० डा० मेघनाथ शाहा की अध्यक्षता में गठित 'कलेण्डर रिफार्म कमेटी' की रिपोर्ट (१९५३) में चान्द्र उत्सवों (चैत्र से आगे के) एवं सौर उत्सवों एवं कुछ महत्त्वपूर्ण तिथियों (पृ० १०१-१०८) तथा उत्सवों की, वर्णमाला के अनुसार बनायी हुई, सूची (पृ० १११११५) प्रकाशित है, जो विस्तृत अवश्य है, किन्तु उसमें मासों, पक्षों एवं तिथियों के अतिरिक्त ग्रन्थों की ओर संकेत नहीं पाया जाता है। वॅगला तथा कुछ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में व्रतों की सूचियाँ पायी जाती हैं, किन्तु प्रस्तुत लेखक उन भाषाओं से अनभिज्ञ है। हमारी इस सूची में व्रतों एवं उत्सवों के अतिरिक्त कुछ अन्य विषय एवं पारिभाषिक शब्दों का उल्लेख किया गया है। यह सूची संस्कृत की वर्णमाला के अनुसार व्यवस्थित है। कुछ नामों को सांकेतिक रूप में रख दिया गया है, जिससे व्यर्थ में पृष्ठ-वृद्धि न हो। प्रत्येक व्रत के साथ उसका समय या काल दे दिया गया है, यथा--तिथिव्रत या वारव्रत, संवत्सर-व्रत या नक्षत्रव्रत या प्रकीर्णक व्रत, केवल वहीं पर इसका उल्लेख नहीं हआ है जहाँ नाम से ही बात प्रकट हो जाती है। अधिष्ठाता देवता के नाम भी दे दिये गये हैं, कुछ विषयों में कुछ अन्य बातें भी जोड़ दी गयी हैं, और कहीं-कहीं उन ग्रन्थों का हवाला भी दे दिया गया है, जहाँ इनका उल्लेख या विवरण मिलता है। व्रतों एवं उत्सवों से उत्पन्न फलों एवं पुण्यों का उल्लेख सामान्यतः नहीं किया गया है, क्योंकि उनकी संख्या बहुत अधिक है और यहाँ स्थानाभाव है। इसी प्रकार युगादि या युगान्त या मन्वादि या कल्पादि नामक तिथियों का भी उल्लेख नहीं हुआ है, क्योंकि उनकी संख्या अधिक है, उन्हें एक ही स्थान पर युगादि आदि नामक शब्दों में द्योतित कर दिया गया है। अधिकांश व्रत दिव्य विभूतियों द्वारा उद्घोषित हैं, यथा--शिव ने पार्वती से, कृष्ण ने युधिष्ठिर से उनके विषय में कहा है या वे मार्कण्डेय, नारद, धौम्य, याज्ञवल्क्य, वसिष्ठ आदि ऋषियों द्वारा वर्णित हैं और ऐसा कहा गया है कि व्रत एक महान् रहस्य है जो देवों एवं देवियों को भी अज्ञात है, यथा शिवरात्रि व्रत (हेमाद्रि, व्रत खण्ड, २, ८८)। बहुत-से व्रतों एवं उत्सवों का प्रचलन कई कारणों से अब समाप्त हो गया है। कुछ ऐसे व्रत एवं उत्सव हैं जिनकी परिसमाप्ति २०वीं शती में भी नहीं हो सकती है और न इसके लिए किसी प्रकार की योजना की आवश्यकता ही है। दीवाली एवं होलिका जैसे व्रतों एवं उत्सवों का प्रचलन ठीक ही है, किन्तु उनके साथ चलने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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