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... अब मैं कृतज्ञता ज्ञापन का पावन कर्तव्य भी पूरा कर देना चाहता हूँ। अन्य खण्डों की भाँति इस खण्ड में भी ब्लूमफील्ड के 'वेदिक कान्कार्डेन्स', मैकडॉनल एवं कीथ के 'वेदिक इण्डेक्स' तथा 'सेक्रेड बुक्स ऑफ दि ईस्ट' से प्रचुर सहायता मिली है। वाई के परमहंस स्वामी केवलानन्द सरस्वती मेरे पथप्रदर्शक रहे हैं और शंकाओं एवं कठिनाइयों का त्वरित समाधान देकर उन्होंने मुझे सदैव ही अनुगृहीत किया है। प्रूफ शोधन के कार्य में सहायता करने के लिए मैं भण्डारकर इन्स्टीट्यूट, पूना के श्री एस० एन० सावदी का बहुत अधिक आभारी हूँ तथा पुस्तक के मुद्रित अंशों को पढ़ने एवं बहुमल्य सुझावों के लिए श्री पी० एम० पुरन्दरे, एडवोकेट (ओ० एस० ) बम्बई हाईकोर्ट तथा लोणावाला के तर्कतीर्थ रघुनाथ शास्त्री कोकजी के प्रति कृतज्ञ हूँ ।
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प्रस्तुत खण्ड के लेखन - काल के छः वर्षों के मध्य जिन महानुभावों के औदार्य से मैं लाभान्वित हुआ है, उन सभी का नामोल्लेख यहाँ संभव नहीं, तथापि कुछ विशिष्ट नामों का उल्लेख करना आवश्यक है -- प्रो० के० वी० रंगस्वामी आयंगर, श्री ए० एन० कृष्ण आयंगर, डा० ए० एस० अल्तेकर, डा० एस० के० वेलवेल्कर, प्रो० जी० एच० भट्ट, श्री भवतोष भट्टाचार्य, श्री एन० जी० चापेकर, डा० आर० एन० दाण्डेकर, श्री बी० डी० दिस्काल्कर, डा० जी० एस० गाय, प्रो० पी० के० गोडे, तर्कतीर्थ लक्ष्मण शास्त्री जोशी, श्री जी० एच० खरे, पण्डित बालाचार्य खुपेरकर, डा० उमेश मिश्र, डा० वी० राघवन, प्रो० एल० रेनू, प्रो० एच० डी० वेलणकर । इस खण्ड के तैयार करने में इन विद्वानों ने जो सहयोग दिया है और जो रुचि दिखायी है उसके लिए सभी धन्यवाद के पात्र हैं। इतने अधिक विद्वानों की कृपादृष्टि के पश्चात् भी इस खण्ड में बहुत-सी त्रुटियाँ हैं जिनके लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदायी हूँ। असंख्य उद्ध रणों एवं संदर्भों से भरे हुए प्रस्तुत खण्ड में कुछेक का यथास्थान उल्लेख नहीं हो पाया है, इसे मैं भली भाँति जानता हूँ । इसके लिए और पुस्तक के मुद्रण की त्रुटियों के लिए मैं अपने पाठकों से क्षमायाचना करता हूँ ।.
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--पाण्डुरंग वामन काणे
बम्बई १०-१०-१९५३
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