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________________ उपपातकों एवं गोवष का प्रायश्चित्त १०६९ स्मृतियों एवं निबन्धों ने कहा है कि यदि गाय किसी विद्वान् ब्राह्मण की हो या केवल-ब्राह्मण (जाति से ब्राह्मण, अर्थात् ओ पढ़ा-लिखा न हो) की हो, या क्षत्रिय या वैश्य या शूद्र की हो तो उसी के अनुसार प्रायश्चित्त भिन्न होना चाहिए। उदाहरणार्थ, देवल (प्राय० वि०, पृ० २०२) के अनुसार यदि ब्राह्मण की गाय की हत्या हुई हो तो हत्यारे को छ: मास तक उस गाय की खाल उत्तरीय रूप में धारण करनी चाहिए, गायों के लिए चारा लाना चाहिए, गायों का अनुकरण करना चाहिए, केवल जो की लपसी खानी चाहिए, गायों के साथ ही विचरण करना चाहिए ; तभी उसे पाप से छुटकारा मिल सकता है। शातातप (प्राय० वि०, पृ. २०३) का कथन है कि वैश्य को गाय के हत्यारे को एक मास तक पंचगव्य पर रहना चाहिए, गोमती-विद्या का पाठ करना चाहिए और एक मास तक गोशाला में रहना चाहिए। विश्वामित्र (प्राय० वि०, पृ० २०३) ने कहा है कि शूद्र को गाय की हत्या ज्ञान या अज्ञान में हो जाने पर हत्यारे को क्रम से चार कच्छ या दो कच्छ करने चाहिए। गोमती-विद्या (अपराक,प०११०२: मदनपारिजात, प० ८६२; प्रायश्चित्ततत्त्व,प०५२२) में गौओं की स्तुति की गयी है-"गौएँ सदैव सुरभित होती हैं, उनमें गग्गल की गंध होती है, वे प्राणियों का आधार होती हैं, वे प्रभूत स्वस्तिमती होती हैं, वे दूध के रूप में सर्वोत्तम भोजन देती हैं, देवों के लिए सर्वोत्तम आहुतियाँ देती हैं, वे सभी प्राणियों को पवित्र करनेवाली होती हैं, उनसे हविर्द्रव्य निकलते हैं, उनसे जो दूध या धी प्राप्त होता है उस पर मन्त्रों का उच्चारण होता है और वह देवों को चढ़ाया जाता है, अतः वे (इन वस्तुओं के द्वारा) देवों को प्रसन्न करती हैं। ऋषियों के अग्निहोत्र में गौएँ उन्हें होम की उत्पत्ति के लिए सहायता देती हैं, गौएँ सभी प्राणियों के लिए पवित्र हैं और सबको शरण देनेवाली हैं। वे परम पवित्र एवं उत्तम मंगल हैं, वे स्वर्ग की सीढ़ी हैं और हम उन्हें.जो धन से परिपूर्ण हैं और सौरभेयी कही जाती हैं, प्रणाम करते हैं। उन पवित्र एवं ब्रह्मा की पुत्रियों को हम प्रणाम करते हैं। ब्राह्मण एवं गौएँ एक ही कुल के हैं और दो भागों में बँटे हैं, जिनमें एक (ब्राह्मणों) में वैदिक मन्त्र निवास करते हैं और दूसरी (गायों में) में देवों के लिए (घृत आदि रूप में) आहुतियाँ रहती हैं।" प्रायश्चित्तप्रकरण (पृ. ३३) का कहना है कि कात्यायन, गौतम, संवर्त, पराशर एवं अन्य ऋषियों ने गोवध के लिए विभिन्न प्रायश्चित्तों की व्यवस्था दी है जो निम्न बातों पर निर्भर है-गोवध ज्ञान में किया गया या अज्ञान में, वह गाय सोमयाजी ब्राह्मण की थी या उस ब्राह्मण की जिसने षडंग वेद का अध्ययन कर लिया था, वह गाय अच्छे गुण वाले ब्राह्मण द्वारा किये जानेवाले होम के लिए थी या गर्भवती थी या कपिला (भूरी या पिंगला) थी। इस ग्रन्थ ने एक महत्त्वपूर्ण बात यह कही है कि उसके काल में ऐसी गाय साधारण जीवन में नहीं उपलब्ध थी, अतः उपर्युक्त वचनों के विषय में अधिक लिखना आवश्यक नहीं है। याज्ञ० (३।२८४), संवर्त (१३७), अग्नि० (१६९।१४), ने कहा है कि यदि कोई गाय या बैल दवा करते समय, या बच्चा जनने में सहायता देते समय या दवा के रूप में दागते समय मर जाय तो पाप नहीं लगता। ब्राह्मणों, गायों एवं अन्य पशुओं की इसी प्रकार की मृत्यु के विषय में प्रायश्चित्त-सम्बन्धी अपवाद हैं। पराशर (९।४) एवं अंगिरा (प्राय० त०, पृ० ५२६-५२७) ने गायों या बैलों को नियन्त्रित करते या बाँधते समय या हल में जोतते समय उनके मर जाने पर क्रम से प्रायश्चित्त का १/४, १/२ एवं ३/४ भाग निर्धारित किया है। ब्रह्मपुराण एवं पराशर (प्राय० त०, पृ० ५१३) के अनुसार गोवध का प्रायश्चित्त करने के पूर्व पापी को पशु का मूल्य चुका देना पड़ता था। ____ सामविधानब्राह्मण (११७३८) ने कहा है कि किसी भी पशु (गाय या बैल के अतिरिक्त) की हत्या करने पर अपराधी को एक रात उपवास करना चाहिए और सामवेद (१।१।३।२) का पाठ करना चाहिए। आप० घ० सू० (१।९।२५।१४) के अनुसार कौआ, गिरगिट, मोर, चक्रवाक, हंस, मास, मेढक, नेवला, गंधमूषक (छुडूंदर) एवं कुत्ता को मारने पर शूद्र-हत्या का प्रायश्चित्त करना पड़ता है। गौतम (२२।१९-२२), मनु (११।१३३-१३७), याज्ञ० (३१२६९-२७४), विष्णु (५०।२५-३२), पराशर (६।१-१५) आदि ने हाथी, घोड़ा, व्याघ्र, वानर, बिल्ली, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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