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धर्मशास्त्रीय प्रन्यसूची की पुत्री के पुत्र थे। लग० १६६०-१६८० ई०। स्मृतिकदम्ब-कञ्च येल्लुभट्ट द्वारा । हुल्श (सं० बी० बी० आर० ए० एस० (पृ० २३८, सं० ७४५)। ६५७)। । स्मार्तप्रायश्चित्तविनिर्णय-वेंकटाचार्य द्वारा। स्मृतिकल्पद्रुम-शुक्ल ईश्वरनाथ द्वारा। टीका लेखक स्मार्तप्रायश्चित्तोसार-यह दिवाकरकृत स्मार्तप्राय- द्वारा, स्टीन, पृ० १०८।
श्चित्तप्रयोग एवं प्रायश्चित्तोद्धार ही है। स्मृतिकोशदीपिका-तिम्मणभट्ट द्वारा (बड़ोदा, २००८, स्मार्तमार्तण-प्रयोग-मार्तण्ड सोमयाजी द्वारा। केवल आह्निक पर) स्मार्तव्यवस्थार्णव--मथुरेश के पुत्र रघुनाथ सार्वभौम स्मृतिकौमुदी-देवनाथ ठक्कुर द्वारा । चातुर्वर्ण्य, आचार, द्वारा। शक संवत् १५८३ (१६६१-६२ ई०) में आह्निक, संस्कार, श्राद्ध, आशौच, दायभाग, व्रत, राजा रत्नेश्वरराय के आदेश से प्रणीत। तिथि, दान एवं उत्सर्ग पर एक निबन्ध (नो०, ५, १० संक्रान्ति, आशौच, द्रव्यशुद्धि, अधिकारी, प्रायश्चित्त, २३७) । उद्वाह एवं दाय नामक प्रकरणों में विभक्त (इ० का०, स्मृतिकौमुदी-मदनपाल द्वारा। प्रक० ९३ (पृ० पाण्डु० सं० ३०५, १८८६-९२, तिथि पर; नो० २, ३८३-३८४) इसे शूद्रधर्मोत्पलद्योतिनी भी कहते पृ०७६, उद्वाह पर एवं नो० २, पृ० २८४, दाय हैं। पर)।
स्मृतिकौमुदी-रामकृष्ण भट्टाचार्य द्वारा। नो० (६, स्मार्तसमुच्चय-देवशर्मा के पुत्र नन्दपण्डित द्वारा। पृ० १४०) ।
दे० प्रक० १०५। इन्होंने दत्तकमीमांसा को अपना स्मृतिकौमुदीटीका-कृष्णनाथ द्वारा। . ग्रन्थ माना है।
स्मृतिकौस्तुभ-अनन्तदेव कृत। दे० प्रक० १०९। स्मास्फुिटपति-नारायणदीक्षित द्वारा (से० प्रा०, १२ दीधितियों में विभक्त। सं० ६७१७)।
स्मृतिकौस्तुभ-वेंकटाद्रि द्वारा। दे० आशौचनिर्णय । स्मार्तधानपति-गोविन्द द्वारा।
स्मृतिग्रन्थराज-सार्वभौम द्वारा। स्मार्ताषानप्रयोग-काश्यपाचार्य के पुत्र पीताम्बर द्वारा स्मृतिचन्द्र-सिद्धेश्वर के संस्कारमयूख में व० ।
(बी० बी० आर० ए० एस०, पृ० २३९, सं०७४७)। स्मृतिचन्द्र--हरिहर के पुत्र भवदेव न्यायालंकार द्वारा। मदनरल का उल्लेख है। दे० धर्मार्णव। १५०० १७२०-२२ ई० में प्रणीत । १६ कलाओं में विभाजित, एवं १६७५ ई. के बीच में।
यथा-तिथि, व्रत, संस्कार, आह्निक, श्राद्ध, आचार, स्मानुष्ठामपाति-विश्वनाथ के पुत्र अनन्तभट्ट द्वारा। प्रतिष्ठा, वृषोत्सर्ग, परीक्षा, प्रायश्चित्त, व्यवहार,
इसे अनन्तभट्टी भी कहा गया है। दे० प्रयोगरत्न के गृहयज्ञ, बेश्मभू, मलिम्लुच, दान एवं शुद्धि। श्रीदत्त अन्तर्गत । आश्वलायन के आधर पर (इ० आ० एवं संवत्सरप्रदीप का उल्लेख है। रघुनन्दन का पृ० ५१६)।
अनुकरण है। स्मातोपासनपदति-प्रयोगरत्न से।
स्मृतिचन्त्रिका-आपदेव मीमांसक द्वारा। काल मलस्मार्तोल्लास-पुष्करपुर के श्रीनिवास-पुत्र शिवप्रसाद मास, व्रत, आह्निक, विवाह एवं अन्य संस्कार, स्त्रीधर्म, द्वारा (बड़ोदा, ११९५८) । पाण्डु० की तिथि शक आश्रमधर्म, अन्त्येष्टि, आशौच, श्राद्ध पर (नो० ६, १६१०1 मदनरल, टोडरानन्द का उल्लेख है। ३०१)। १५८०-१६८० ई० के बीच में। आधानकाल, स्मृतिचन्द्रिका-कुबेर द्वारा। दत्तकचन्द्रिका में व०॥ महर्तविचार, अग्निहोत्री के कर्तव्यों एवं रजस्वला स्मतिचन्द्रिका-केशवादित्य भद्र द्वारा (बीकानेर, ४६५, पर्म जैसे कठिन विषयों पर।
यह भ्रामक अंकन है, क्योंकि आरम्भिक एवं अन्त के
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