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________________ १६०४ धर्मशास्त्र का इतिहास पर। लेखक के आश्रयदाता काशीस्थ नागार्जुन के विष्णुधर्मसूत्र-दे० प्र० १०। जीवानन्द (भाग १, पुत्र धन्य या धन्यराज थे। मुञ्ज, धारेश्वर, मेधातिथि पृ० ६०-१७६) । टी. वैजयन्ती, नन्दपण्डित द्वारा। एवं विज्ञानेश्वर की ओर संकेत है। हेमाद्रि (३।२, दे० प्र० १०५ । नटवल्लभविलास में व० । पृ० १०२, जो विश्वादर्श ३।३७ की टीका में आया विष्णुधर्मोत्तरामृत--जीमूतवाहन के कालविवेक में व०। है) एवं स्मृतिचन्द्रिका (आशौच, मैसूर संस्करण, विष्णुपूजाक्रमवीपिका-शिवशंकर द्वारा। टी० सदानन्द प० १६४--'पतिव्रता स्वन्यदिनेनुगच्छेद्या स्त्री पति द्वारा। चित्यधिरोहणेन। दशाहतो भतरघस्य शुद्धिः श्राद्धद्वयं विष्णुपूजापद्धति । स्यात्पथगेककाले ॥') द्वारा व०। ११०० ई० के विष्णुपूजाविधि-शुकदेव द्वारा। बड़ोदा (सं० ५४८७, पश्चात् एवं १२०० ई० के पूर्व। दे० भण्डारकर पाण्डुलिपि लेखक की कही गयी है, संवत् १६९२, संग्रह की । पाण्डुलिपियाँ। टी० लेखक द्वारा अर्थात् १६३५-६ ई०)। (बी० बी० आर० ए० एस०, भाग २ पृ० २२९. विष्णुप्रतिष्ठापद्धति। २३१)। विष्णुप्रतिष्ठाविधिवर्पण--माधवाचार्य के पुत्र नरसिंह विश्वामित्रकल्प-ब्राह्मणों के आह्निक कृत्यों पर। सोमयाजी द्वारा। विश्वामित्रकल्पतः। विष्णुभक्तिचन्द्र-निर्णयदीपक में व० । विश्वामित्रसंहिता-श्रीधर द्वारा। विष्णुभक्तिचन्द्रोदय-नृसिंहारण्य या नृसिंहाचार्य द्वारा। विश्वामित्रस्मृति--दे० प्रक० ५७। १९ कलाओं में; द्रव्यशुद्धिदीपिका में पुरुषोत्तम विश्वेश्वरनिबन्ध-संस्कारमयूख में ब०। सम्भवतः द्वारा व० । मुख्य वैष्णव व्रतों, उत्सवों, कृत्यों पर। __ मदनपारिजात या विश्वेश्वर की सुबोधिनी टीका। पाण्डु० तिथि संवत् १४९६ (१४४० ई०), विश्वेश्वरपडति-संन्यास पर विश्वेश्वर द्वारा। संस्कार- भण्डारकर (१८८३-८४, पृ० ७६)। मयूख में व०। विष्णुभक्तिरहस्य-रामानन्द द्वारा व०। विश्वेश्वरस्मति-हुल्श (सं० ६९)। विष्णुमूर्तिप्रतिष्ठाविधि--रामाचार्य के पुत्र कृष्णदेव विश्वेश्वरस्मृतिभास्कर--हुल्श (सं० १४४)। द्वारा। वैष्णवधर्मानुष्ठानपद्धति या नृसिंहपरिचर्याविश्वेश्वरीपति--(या यतिधर्मसंग्रह) चिदानन्दाश्रम पद्धति नामक बृहत् ग्रन्थ का एक अंश। पाण्डु० । के शिष्य अच्युताश्रम द्वारा। ज्ञानार्णव का उल्लेख है। संवत १६७५ में उतारी गयी। विश्वेश्वरीस्मृति-अच्युताश्रम द्वारा। विष्णुयागपति-आपदेव के पुत्र अनन्तदेव द्वारा। विषषटिकाजननशान्ति-(या विषनाड़ीजननशान्ति, दे० प्रक० १०९। पुत्र की इच्छा रखनेवाले व्यक्ति वृद्धगार्यसंहिता से) विषघटिका नामक चार कालों द्वारा किये जानेवाले कृत्यों पर। अलवर (सं० में जन्म होने से उत्पन्न दुष्ट प्रतिफलों के निवारणार्थ १४५८); बड़ोदा (सं० २२६४, शक १६०४) । कृत्यों पर। विष्णुरहस्य-अपरार्क, दानसागर एवं जीमूतवाहन के विष्णतत्त्वप्रकाश-वनमाली द्वारा। माध्व अनुयायियों कालविवेक द्वारा व०। के लिए स्मार्त कृत्यों पर एक निबन्ध। विष्णुधाड-गोभिलगृह्य में नारायणबलि का एक विष्णुतत्त्वविनिर्णय-आनन्दतीर्थ द्वारा। भाग। विष्णुतीर्थीयव्याख्यान--सुरोत्तमाचार्य द्वारा। विष्णुपादपद्धति-(या वीरपूजापद्धति)। विष्णुधर्ममीमांसा-सोमभट्ट के पुत्र नृसिंहभट्ट द्वारा। विष्णुप्राडपति-रामेश्वर के पुत्र नारायण द्वारा। अलवर (सं० १४५७)। बड़ोदा (सं० ८१७१) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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