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________________ धर्मशास्त्रीय प्रन्यसूची अन्यत्र हरिनारायण नाम आया है) की प्रशंसा गजपति के आदेश पर भारतीभूषण वर्षमान है (दे० इण्डि० ऐण्टी०, जिल्द १४, पृ० १९३)। द्वारा। लग०१४३८; कलकत्ता में, सन् १९०९ में प्रका०। दुर्गोत्सवतस्व--रघुनन्दन द्वारा। दे० प्रक० १०२। रत्नाकर का उल्लेख है। दुर्गोत्सवनिर्णय-गोपाल द्वारा। नो० (जिल्द ६, पृ० मिक्तितरंगिणी-माधव कृत। २१०)। दुर्गाभक्तिप्रकाश----दुर्गोत्सवतत्त्व में रघुनन्दन द्वारा दुर्गोत्सवनिर्णय--न्यायपंचानन द्वारा (नाम नहीं दिया २०। हुआ है)। मित्र ने इसे उपर्युक्त से भिन्न, किन्तु दुर्गाभक्सिलहरी--रघूत्तम तीर्थ द्वारा। . औफेरूट ने वही माना है। नो० (जिल्द ७, पृ०७)। दुर्बिनकल्पतक। दुर्गोत्सवपद्धति--दे० 'दुर्गाभक्तितरंगिणी'। दुर्गानामृतरहस्य---मथुरानाथ शुक्ल द्वारा। दुर्गोत्सवप्रमाण--रघुनन्दन द्वारा। कलकत्ता सं० का. दुर्गा कालनिष्कर्ष--मधुसूदन वाचस्पति द्वारा। पाण्डु० (जिल्द २, पृ० ३१०-३११ सं० ३३७) । नो० न्यू० (जिल्द १, पृ० ८१)। दुर्गोत्सवविवेक--शूलपाणि द्वारा। दे० प्रक० ९५ । दुर्गाकोमुबी--परमानन्द शर्मा।। दुर्गोत्सवविवेक--श्रीनाथ आचार्यचूड़ामणि द्वारा। दुर्गा मकर--कालीचरण द्वारा। दो खण्डों में, प्रयम दुष्टरजोदर्शनशान्ति--(नारायण भट्ट के प्रयोगरल से)। में जगद्धात्रीपूजा और द्वितीय में कालिका पूजा है। दूतयोगलक्षण। इसने दुर्गापूजा को कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन माना दूतलक्षण। है, किन्तु प्रसिद्ध दुर्गापूजा आश्विन में होती है। दूलालीय--दूलाल द्वारा। दुर्गार्णव-धर्मप्रवृत्ति में व०। देवजानीय--नि० सि०, विवानपारिजात, आचाररत्न दुर्गावतीप्रकाश--(समयालोक) बलभद्र के पुत्र पद्मनाभ (लक्ष्मणकृत) में व०। १६०० ई० के पूर्व । द्वारा। सात आलोकों में। नर्मदा पर स्थित राज्य देवतावारि के शासक एवं वीरसाहि के पिता दलपति की रानी देवतिलकपद्धति-- (लक्ष्मी के संग विष्णु की मूर्ति का दुर्गावती के आश्रय में प्रणीत। दे० बीकानेर (पृ० विवाह) । नो० न्यू० (१, पृ० १७९)। ४५०) एवं इण्डि० आ० (पृ० ५३६, सं० १६८०)। देवदासप्रकाश-(या सद्ग्रन्थचूड़ामणि) गौतमगोत्रीय द्वैतनिर्णय में शंकरभट्ट द्वारा व० एवं निर्णयामृत, अर्जुनात्मज नामदेव के पुत्र देवदास मिश्र द्वारा। मदनपारिजात एवं मदनरत्न का उल्लेख है। श्राद्ध, आशौच, मलमास आदि पर विशद निबन्ध । १४६०-१५५० ई. के बीच। तिथियों, संक्रान्ति, लेखक के अनुसार कल्पतरु, कर्क, कृत्यदीप, स्मृतिसार, मलमास आदि पर निर्णयों में विवेचन है। क्या यह मिताक्षरा, कृत्यार्णव पर आधृत। १३५०-१५०० दलपति नसिंहप्रसाद का लेखक है? सात प्रकरण ई० के बीच। बड़ोदा (सं० ५५८)। हैं, गथा-समय, वत, आचार, व्यवहार, दान, शुद्धि, देवदासीय--नि० सि०, विधानपारिजात, श्राद्धमयूख में ईश्वराराधन (या पूजा)। व० (सम्भवतः यह उपर्युक्त ही है)। दुर्गोत्सवकृत्यकौमुदी-शम्भुनाथ सिद्धान्तवागीश द्वारा। देवपद्धति-अनन्तदेव के रुद्रकल्पद्रुम में व०। सम्भवतः संवत्सरप्रदीप एवं वर्षकृत्य का उल्लेख है। लेखक अनन्तदीक्षित की महारुद्रपद्धति। . कामरूप के राजा की सभा का पण्डित था। लग० देवप्रतिष्ठातस्व-(या प्रतिष्ठातत्त्व) रघुनन्दन कृत। १७१५ ई.। दे० प्रक० १०२। दुर्गोत्सवमनिका-उड़ीसा के राजकुमार रामचन्द्रदेव देवप्रतिष्ठापति। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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