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________________ धर्मशास्त्रीय प्रन्यसूची श्राद्धविवेक में व० । टी० प्रकाश, गोण के पुत्र एवं नहीं है-'वानानबाणक्षिति (? रत्नाक्षबाणक्षिति, उमापति (बड़े प्रभाकर एवं जयपाल राजा द्वारा संर- १५५९) विक्रम सं०। लग० १५०० ई०। इसमें क्षित) के पौत्र। दे० 'कर्मप्रदीप'। टीका की टीका कालनिर्णय, कालादर्श, प्रासाददीपिका का उल्लेख है। सारमंजरी, श्रीनाथ (श्रीकराचार्य के पुत्र) द्वारा। जनिदोषप्रतिकार-पाण्डु० बड़ोदा (सं० २३६५), टी० की टी० हरिराम द्वारा। टी० की टी० हरिहर तिथि १५६५ सं० (१५०८-९ ई०)। द्वारा। टी० चक्रधर के पुत्र आशाधर या आशार्क जन्मदिनकृत्यपाति। द्वारा। जन्मदिवसपूजापति। छन्दोगप्रायश्चित्त। जन्ममरणविवेक--वाचस्पति द्वारा (बड़ोदा, सं० छन्दोगश्राद। १२७७४) । इसमें आशौच एवं श्राद्ध का वर्णन है। छान्दोगनासतस्व--रघुनन्दन द्वारा। टी० रामकृष्णा- जन्माष्टमीतत्त्व-(या जन्माष्टमीवततत्त्व) रघुनन्दन स्मज राधावल्लभ के पुत्र काशीराम द्वारा। द्वारा। छन्दोगबाहदीपिका-श्रीकर के पुत्र श्रीनाथ द्वारा। जन्माष्टमीनिर्णय-विट्ठलेश्वर द्वारा। छन्दोगानीयाह्निक-विश्राम के पुत्र शिवराम द्वारा। जयतुंग-निर्णयसिन्धु में व० । इण्डि० आ० (१, प० ९५, पाण्ड० सं० १८१०, जयन्तकारिका। १७५३-४ ई०)। लग० १६४० में प्रणीत। जयन्तीनिर्णय- (कृष्णजन्माष्टमी पर) आनन्दतीर्थ छन्वोगालिक-सदानन्द द्वारा। द्वारा। छन्दोगाहिकपद्धति--रामकृष्ण त्रिपाठी द्वारा। जयन्तीनिर्णय-रामानुज योगीन्द्र के शिष्य एवं आत्रेय छन्दोगाह्निकोबार---भवनाथ मिश्र के पुत्र शंकरमिश्र कृष्णार्य के पुत्र गोपाल देशिक द्वारा। द्वारा। दे० 'प्रायश्चिनप्रदीप।' जयमाधवमानसोल्लास---गोरक्षपुर (आधुनिक गोरखछन्दोपहारावलि। पुर) के जयसिंहदेव द्वारा। ये नारायण के भक्त छागलेयस्मृति--गिताक्षरा, हेमाद्रि, माधवाचार्य में व०। थे। ग्रन्थ में सभी धार्मिक कृत्यों (नित्य, नैमित्तिक जगद्वल्लभा--भारद्वाजगोत्र के श्रीवल्लभाचार्य द्वारा। एवं काम्य) का वर्णन है। ड. का० (सं० २४१, २४ से अधिक प्रकरणों में। १८८१-८२) के अन्त में हरिदास राजपण्डित द्वारा जगन्नाथप्रकाश-सूरमिश्र द्वारा। जगन्नाथ की आज्ञा प्रशस्ति है। से प्रगीत (जगन्नाथ काम्बोज कुल के थे)। दे० जयसिंहकल्पद्रुम---वाराणसी के पण्डित श्रीदेवभट्ट के मित्र०, नो० (जिल्द ५, पृ० १०९)। पाण्डु० स० पुत्र, शाण्डिल्यगोत्रीय रत्नाकर द्वारा (यह एक १८३८ (१७८२-३ ई०) में उतारी गयी। दस विशाल ग्रन्थ है, ९००प० में, १९२५ ई० में लक्ष्मीप्रभाओं में लिखित है। वेंकटेश्वर प्रेस कल्याण में, मुद्रित)। काल, व्रत, जटमल्लविलास---श्रीधर द्वारा जटमल्ल के आदेश से श्राद्ध, दान आदि पर १९ स्तवकों में। काल- स्तवक संगृहीत । जटमल्ल दिल्ली के राजा के एक मात्र मन्त्री की रचना जयसिंह के आश्रय में हुई, जिसने ढोल के पुत्र बालचन्द्र चायमल्ल के छोटे भाई थे। उज्जयिनी में ज्योतिष्टोम किया, पौण्डरीक भी। उसकी यह कुल कोसल देश के मन्दिर से निकला था और अम्बिका नगरी का भी वर्णन है। वि० सं० १७७० इसकी राजधानी स्वर्णपुरी थी। इस ग्रन्थ में आचार, (१७१३ ई०)। इसमें जयसिंह (जो शिवाजी को काल, श्राद्ध, संक्रान्ति, मलमास, संस्कार, आशौच दिल्ली ले गया था) की वंशावली दी हुई है-रामएवं शुद्धि का वर्णन है। इण्डि० आ० में तिथि ठीक सिंह- कृष्णसिंह- विष्णुसिंह- जयसिंह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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