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________________ धर्मशाला का इतिहास गोपालरत्नाकर--गोपाल द्वारा। गोषप्रायश्चित्त। गोपालसिद्धान्त--आचाररत्न में व०। गोविन्दमानतोल्लास-एकादशीतत्त्व एवं मलमासतत्व गोपालार्चनचन्द्रिका। में व०। अतः १५०० ई० के पूर्व। गोपालार्चनचन्द्रिका-लक्ष्मीनाथ द्वारा। गोविन्दानचन्द्रिका--(बम्बई में प्रका०) । गोभिलगृह्यसूत्र-बिब्लि० इण्डि० सी० द्वारा प्रकाशित; गोविन्दार्णव-(या स्मृतिसागर या धर्मतत्त्वावलोक) डा०क्नौयेर द्वारा एवं एस० बी० ई० (जिल्द ३०) रामचन्द्र के पुत्र शेष नृसिंह द्वारा। काशी के महामें अनूदित। टी० (भाष्य) महाबल के पुत्र भट्ट राजाधिराज गोविन्दचन्द्र की आज्ञा से संगृहीत। नारायण द्वारा; रघुनन्दन के श्राद्धतत्त्व में व०। छ: वीचियों (लहरों) यथा संस्कार, आह्निक, श्राद्ध, ल० सं० ४३१ (१५४९-५० ई०) में प्रतिलिपि की शुद्धि, काल एवं प्रायश्चित्त में विभाजित। कल्पतरु, गयी। टी० (भाष्य) यशोधर द्वारा, गोविन्दानन्द अपरार्क, माधवाचार्य, विश्वेश्वर भट्ट के उद्धरण को दानक्रियाकौमुदी में एवं श्राद्धतत्त्व में व०; आये हैं और निर्णयसिन्धु, आचाररत्न (लक्ष्मणभट्ट १५०० ई. के पूर्व । टो० 'सरला', तिथितत्त्व एवं कृत) द्वारा उ० है। १४०० एवं १४५० के बीच श्राद्धतत्त्व में व०; १५०० के पूर्व । टी० सायण संगृहीत। दे० अलवर (उद्धरण ३०४), जहाँ बनारस द्वारा। टी. सुबोधिनीपद्धति, विश्राम के पुत्र के पास ताण्डेतिका नामक नगर का विशद वर्णन है, शिवराम द्वारा (लेखक की कारिकार्थबोधिनी से जिसे दिल्ली एवं काल्पी से बढ़कर कहा गया है। भिन्न); लग० १६४० ई० (स्टीन, पृ० ८६)। राजाओं के श्रीवास्तक कुल एवं शेष कुल का भी टो० पद्धति, मथुरा के अग्निहोत्री विष्णु द्वारा। वर्णन है। अलवर (पाण्डु०, श्लोक ८५) में केवल टो० कारिकार्थबोधिनी, विश्राम के पुत्र शिवराम पांच वीचियों का उल्लेख है, 'प्रायश्चित्त' छोड़ दिया द्वारा (स्टीन, १० १५ एवं २५०)। गया है। लगता है, शेष कृष्ण ने गोविन्दार्णव को अपने बोभिलपरिशिष्ट--(टीका के साथ बिब्लि• इण्डि० ग्रन्थ शूद्राचारशिरोमणि में अपना ग्रन्थ कहा है। सी० में प्रकाशित) संध्यासूत्र, स्नानसूत्र एवं श्राद्ध- दे. इण्डि० ऐण्टी० (१९१२, पृ० २४८)। कल्प पर। टो० प्रकाश, नारायण द्वारा। रघुनन्दन गौडमिबन्ध--श्रीदत्त की पितृभक्ति में व०। द्वारा व०। गौरनिबन्धसार-नि० सि० में व० (संभवतः यह गोभिलायसूत्रभाष्य-तिथितत्त्व एंव श्राद्धतत्त्व में कुल्लूकभट्ट का श्राद्धसागर है)। रघुनन्दन द्वारा व०। सम्भवतः यह महायशा का गौरमाहकांमुवी-नि० सि० में व०। (सम्भवतः यह भाष्य ही है। __ गोविन्दानन्द की श्राद्धकौमुदी है)। गोभिलसंध्यासूत्र। गौडसंवत्सरप्रदीप---गदाधर के कालकार में व०। गोभिलस्मृति-कात्यायन का कर्मप्रदीप। आनन्दाश्रम गोडीयचिन्तामणि-गदाधर के कालसार में वर्णित । प्रेस में मुद्रित, स्मृति०, पृ० ४९-७१)। गौतमवर्मसूत्र-दे० प्रक० ५; बनारस सं० सी० एवं गोमिलीयपरिशिष्ट-(अनिष्टकारी ग्रहों की शान्ति, जीवानन्द (भाग २,१०४०३-४३४) द्वारा प्रका। __ ग्रहयाग आदि पर) नो०(जिल्द १०,१०२०१-२०२)। टी० कुलमणि शुक्ल द्वारा। टी० (भाष्य) मस्करी कल्प--(भाष्य) महायशा द्वारा। रघु० द्वारा (मैसूर में प्रका०)। टी० मिताक्षरा, हरदत्त के श्राद्धतत्त्व में व०। सम्भवतः यह महायशा द्वारा (आनन्दा० प्रे०) । उपर्युक्त यशोधर ही हैं। टी० समद्रकर द्वारा; गौतमस्मति। भवदेव के स्मृतिचन्द्र की श्राद्धकला में व०। प्रत्यराज-(या स्मृतिग्रन्थराज)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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