________________
१५२६
धर्मशास्त्र का इतिहास पुरुषोत्तम के पुत्र कृष्णभट्ट द्वारा; कलिवर्ण्य, कर्मफलों पर नारद को शिक्षा दी है (अलवरं, आह्निक, संस्कार, श्राद्ध पर; माधवीय, वामनभाष्य, २९३)। चन्द्रिका, जयन्त, कालादर्श, मदनपारिजात को कर्मविपाक-भरत द्वारा, जिसमें भृग ने शिक्षा दी है। उद्धृत किया गया है। लग० १४००-१५५० ई० कर्मविपाक-भृगु द्वारा, जिसमें वसिष्ठ ने शिक्षा दी है। (स्टीन, पृ० ३०४)।
कर्मविपाक-माधवाचार्य द्वारा। कर्मदीप-त्रिकाण्डमण्डन में उ०।
कर्मविपाक--मान्धाता द्वारा। दे० महार्णवकर्मविपाक । कर्मदीपिका-रघुरामतीर्थ द्वारा। एक विशाल ग्रन्थ। कर्मविपाक-मौलुगि भूपति द्वारा। कर्मविपाकसारसंग्रह वर्णाश्रमवर्म, व्यवहार, प्रायश्चित्त पर ७३ अध्यायों एवं नृसिंहप्रसाद द्वारा व०। सन् १३८९ ई० से अधिक । विज्ञानेश्वर का उल्लेख है। पाण्डु० अपूर्ण के पूर्व।।
(बी० बी० आर० ए. एस्, पृ. २११-२१३)। कर्मविपाक--अरुण के प्रति रवि द्वारा (अलवर, सं० कर्मदीपिका-भूधर के पुत्र हरिदत्त द्वारा (बड़ोदा, १२७८ एवं भाग २९३)। सं० ६८९२)। कुण्ड, वेदि, मधुपर्क, कन्यादान, कर्मविपाक-रामकृष्णाचार्य चतुर्थीकर्म पर।
कर्मविपाक-विश्वेश्वर भट्ट द्वारा। दे. महार्णवकर्मकर्मनिर्णय-आनन्दतीर्थ द्वारा। टी. जयतीर्थ द्वारा। विपाक ; शुद्धितत्त्व (पृ० २४२) द्वारा व०। टी० पर टी०, राघवेन्द्र द्वारा।
फर्मविपाक-नीलकण्ठ भट्ट के पुत्र शंकरभट्ट द्वारा कर्मपति--चिद्घनानन्द द्वारा।
(इण्डि० आ०, ३, पृ० ५७५) कम्पीयूष--अहल्याकामधेनु में व० ।
कर्मविपाक-पद्मनाभात्मज कान्हडदेव के ज्येष्ठ पुत्र कमप्रकाश-कलायखञ्ज द्वारा।
द्वारा। दे० 'सारग्राहकर्मविपाक ।' कर्मप्रकाश--ज्योतिस्तत्त्व में रघुनन्दन द्वारा व०। कर्मविपाक-ज्ञानभास्कर के प्रति। कर्मप्रकाशिका-पञ्चाक्षर गुरुनाथ द्वारा (पाकयज्ञ, कर्मविपाक-सूर्यार्णव के प्रति।
कूष्माण्डहोम, पुत्रस्वीकारविधि, शूलगव पर)। कर्मविपाक-शातातपस्मृति से (जीवानन्द २,पृ०४३५) कर्मप्रदीप--कात्यायन या गोभिल का कहा गया है। कर्मविपाकचिकित्सामतसागर--पण्डित देवीदास द्वारा। 'छन्दोगपरिशिष्ट' नाम भी है। शूलपाणि, माधव, कर्मविपाकपरिपाटी। रघुनन्दन, कमलाकर द्वारा उ०। टी० चक्रवर के पत्र कर्मविपाकप्रायश्चित्त। आशादित्य या आशार्क द्वारा। टी० परिशिष्ट-प्रकाश, कर्मविपाकमहार्णव-दे० महार्णवकर्मविपाक । गोण के पुत्र नारायणोपाध्याय द्वारा (बिब्लि० कर्मविपाकरत्न--रामकृष्ण के पुत्र कमलाकर द्वारा। इण्डि०, १९०९)। टी० विश्राम के पुत्र शिवराम कर्मविपाकसंहिता--(वेंकटेश्वर प्रेस द्वारा मुद्रित)। द्वारा।
ब्रह्मपुराण का एक भाग।। कर्मप्रदीपिका--कामदेव द्वारा पारस्करगृह्यसूत्र पर एक कर्मविपाकसंग्रह---महार्णवकर्मविपाक से। कर्मविपाक में पद्धति।
शंकर द्वारा एवं मदनरत्न में उ०। कर्मप्रायश्चित्त--वेंकटविजयी द्वारा।
कर्मविपाकसमुच्चय-मदनपाल के पुत्र मान्धाता कृत कर्मम जरी--(अलवर कैटलाग, सं० १२७७)। महार्णव में एवं नित्याचारप्रदीप में व०। सन् १३५० कर्मलोचन--गृहस्थों के कर्मों पर १०८ श्लोक। ई. के पूर्व। कर्मविपाक।
कर्मविपाकसार-कर्मविपाक में शंकर द्वारा एवं नित्याकर्मविपाक-ब्रह्माजी द्वारा, जिन्होंने १२ अध्यायों में चारप्रदीप (पृ० १४० एवं २०७) में उ०॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org