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धर्मशास्त्र का इतिहास
उपनयनकारिका-अज्ञात ।
ऋतुलक्षण। उपनयनचिन्तामणि-शिवानन्द द्वारा।
ऋतुशान्ति। उपनयनतन्त्र --गोभिल द्वारा।
ऋत्विग्वरणनिर्णय-.--.अनन्तदेव द्वारा। उपनयनतन्त्र--रामदत्त द्वारा!
ऋषितर्पण। उपनयनतन्त्र----लौगाक्षिारा।
ऋषितर्पणकारिका। उपनयनपद्धति--रामदत्त द्वारा (वाजसनेयियों के ऋषिभट्टी--दे० संस्कारभास्कर।
ऋष्यशृंगविधान--(वर्षा के लिए कृत्य) बड़ोदा, उपनयनपद्धति-विश्वनाथ दीक्षित द्वारा।
सं० ११०४७। उपस्थान।
ऋष्यशृंगस्मति--दे० प्रक० ४०। उपाकर्म निर्णय।
एकदण्डिसंन्यासविधि--शौनक द्वारा। उपाकर्मकारिका--(स्टीन, पृ० १२) ।
एकनक्षत्रजननशान्ति--गर्ग द्वारा (बड़ोदा, सं० उपाकर्मपद्धति--(कात्यायनीय) वैद्यनाथ द्वारा। उपाकर्मप्रमाण--बालदीक्षित द्वारा।
एकवस्त्रस्नानविधि-शंकरभट्टात्मज नीलकण्ठ के पुत्र उपाकर्म प्रयोग--(आपस्तम्बीय)।
भानुभट्ट द्वारा। लग० १६४०-१६८० ई०। उपाकर्मप्रयोग--(आश्वलायनीय)।
एकाग्निकाण्ड--(यजुर्वेदीय) मन्त्रपाठ, मन्त्रप्रपाठक उपाकर्मप्रयोग--टीकाभट्ट के पुत्र द्वारकानाथ द्वारा।। एवं मन्त्रप्रश्न भी नाम हैं (मैसूर, १९०२)। दे० उपाकर्म विधि।
आपस्तम्बीयमन्त्रपाठ। उपाकृतितत्त्व--बालम्भट्ट, उर्फ बालकृष्ण पायगुण्डेद्वारा; एकाग्निकाण्डमन्त्रव्याख्या---हरदत्त द्वारा। प्रति० सं० १८४८ (१७९२ ई०); स्टीन, पृ० एकाग्निदानपद्धति---श्रीदत्त मिश्र द्वारा। ल• संवत् ३०२।
२९९-१४१८ ई० में मिथिला के देवसिंह के संरक्षण उपाकर्मविधि---दयाशंकर द्वारा।
में पाण्डु० उतारी गयी। उपांगिरःस्मृति।
एकादशाहकृत्य । ऊर्ध्वपुण्डनिर्णय----पुरुषोत्तम द्वारा, काल १७६४ संवत्, एकादशिनीप्रयोग--(११ बार रुद्राध्याय का पाठ)। बड़ोदा, सं० ३८६२।
एकादशीतत्त्व--रघुनन्दन द्वारा। टी० काशीराम वाचऊर्ध्वपुण्डधारण।
स्पति द्वारा। टी० 'दीप', राधामोहन गोस्वामी ऊर्ध्वमल।
द्वारा। शान्तिपुर के वासी एवं कोलबुक के भित्र । ऋग्वेदाह्निक-काशीनाथ द्वारा। ऋग्वेदाह्निकचन्द्रिका चैतन्यदेव के साथी अद्वैत के वंशज थे। नाम भी है।
एकादशीनिर्णय-इस नाम के कई ग्रन्थ हैं और कैटलागों ऋग्वेदाह्निक-शिरोमणि द्वारा।
में लेखक के नाम नहीं दिये हुए हैं। ऋग्वेदाह्निकचन्द्रिका काशीनाथ द्वारा।
एकादशीनिर्णय-(या निर्णयसार) मुरारि के पुत्र ऋजुप्रयोग--विश्वनाथ होसिंग के पुत्र भट्ट राम द्वारा धरणीधर द्वारा। श० सं० १४०८ (१४८६ ई०)
(तोर्यदर्पण के आधार पर)। बड़ोदा, सं० ८५१५, में प्रणीत। महाराजाधिराज बीसलदेव का नाम शक सं० १६७६ ।
उल्लिखित है। अनन्तभट्ट, वोपदेव पण्डित, विश्वरूप ऋजुमिताक्षरा---यह मिताक्षरा ही है।
(शुद्धा एवं विद्धा एकादशी के प्रकारों पर श्लोक), ऋणमोक्षण।
विज्ञानेश्वर (एकादशी पर तीन स्रग्धरा श्लोकों) का
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