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धर्मशास्त्रीय अन्वसूची
१५१७ आचारार्क--बालकृष्णात्मज महादेव के पुत्र दिवाकर आतुरसंन्यासपति-(वड़ोदा, सं० ५८०३) । के धर्मशास्त्रसुधानिधि का एक भाग; अपने नाना आतुरसंन्यासविधि। एव मयूखों के प्रणेता नीलकण्ठ का उल्लेख किया आतुरसंन्यासविधि-आंगिरस द्वारा। है। सन् १६८६-८७ में प्रगीत । तकनलाल द्वारा आतुरसंन्यासविधि-कात्यायन द्वारा । टोका।
आतुरादिपद्धति-ड० का० पाण्डु०, सं० १८८८६आचारार्कक्रम--आचारार्क की अनुक्रमणिका। लेखक ९२ की १३८। के पुत्र वैयनाय द्वारा, जिसने दानहारावलि एवं आत्रेयधर्मशास्त्र--१ अध्यायों में (इण्डि० आ०, जिल्द श्राद्धचन्द्रिका पर अनुक्रमणिका लिखी।
३, पृ. ३८०, सं० १३०५)। ६ अध्यायों में आचारार्क-मयुरानाथ कृत।
एक अन्य भी है (वही, जिल्द ३, पृ० ३८१, सं० आचारार्क-रामचन्द्र भट्ट कृत।
१३०८)। आचारेनु-नारायण के पुत्र एवं 'माटे' उपाधि वाले आत्रेयधर्मशास्त्र--(बम्बई विश्वविद्यालय पुस्तकाश्यम्बक द्वारा। सप्तर्षि (आधुनिक सतारा) में लय में पाण्डुलिपि) १४ अध्यायों एवं १४१ खण्डों
सन् १८३८ में प्रगोत। आनन्द प्रेस में मुद्रित। में; अनध्याय (पाठशाला की छुट्टी के दिन) के साथ आधारेन्दुशेखर-शिवभट्ट एवं सती के पुत्र नागेश भट्ट अन्त । नीतिमयूख में व०।। द्वारा। दे० प्रक० ११०।
आथर्वणगृह्यसूत्र-विश्वरूप एवं हेमाद्रि द्वारा व०। आचारोद्योत--टोडरानन्द कृत।
आत्रेयस्मृति---(३६९ श्लोकों में) इण्डि० आ०, आचारावयोत-मदनसिंहदेव के मदनरत्नप्रदीप का जिल्द ३, पृ० ३८१ । एक भाग।
आयर्वणप्रमिताक्षरा-श्रीपति के पुत्र वासुदेव द्वारा आधारोल्लास--बनारस में परशुराम मिश्र की आज्ञा से, (बड़ोदा, सं० ७६०३। हेमाद्रि एवं त्रैविक्रमी (जो शाकद्वीपीय होलिल (र) मिश्र के पुत्र थे पद्धति की चर्चा की है। ओर जिन्हें बादशाह द्वारा वाणीरसालराय की आदिधर्मसारसंग्रह-तुलाजिराज (१७६५-८८ ई०) पदवी मिली थी) नारायण पण्डित धर्माधिकारी रचित कहा गया है। के पुत्र खण्डेराव द्वारा कृत परशुरामप्रकाश का आविस्मृत्यर्थसार-दे० स्मृत्यर्थसार। प्रथम भाग। १५वें मयूख में शाकद्वीपीय ब्राह्मणों आनन्दकरनिबन्ध-विश्वम्भर के स्मृतिसारोद्धार में की उत्पत्ति का उल्लेख है। नो० न्यू० (जिल्द व०। २, पृ० १०-१२)।
आपस्तम्ब-प्रायश्चित्तशतद्वयी-दे० प्रायश्चित्तशतद्वयी। आचारोल्लास-मथुरानाथ शुक्ल कृत।
आपस्तम्बयल्लाजीय। आचार्यगुणादर्श---शतक्रतु ताताचार्य के पुत्र वेंकटाचार्य आपस्तम्बसूत्रध्वनितार्थकारिका या त्रिकाण्डमण्डनद्वारा (वैष्णव०)।
कुमारस्वामी के पुत्र भास्कर मिश्र द्वारा। इसमें आचार्यचूगमणि-शूलपाणि के श्राद्धविवेक पर टीका; अधिकार, प्रतिनिधि, पुनराधान एवं आधान पर चार
रघुनन्दन द्वारा एवं शूद्रकमलाकर में उ०।। काण्ड हैं (बिब्लियोथिका इण्डिका सीरीज, कलकत्ता) अतिथ्येष्टि।
टी०, दे० स्टीन (पृ० १२)। टी० पदप्रकाशिका आदरसंन्यास-देखिए बी० बी० आर० ए० एस्. या त्रिकाण्डमण्डनविवरण। जिल्द २, पृ० २४१।
आपस्तम्बगृह्यसूत्र-विण्टरनित्ज द्वारा सम्पादित मातुरसंन्यासकारिका।
एवं एस्० बी० ई० (जिल्द ३०) में अनूदित।
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