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________________ तीर्यसूची हिरण्यगर्भ - ( वारा० के अन्तर्गत एक लिङ्ग ) कूर्म० १।३५।१३, लिंग० १।९२।७६, पद्म० १।३५।१६, लिंग० (ती० क०, पृ० ४८ ) । हिरण्यद्वशेष-- (नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९३।६८, पद्म० ११२०/६६ । हिरण्यबाहु -- ( यूनानी लेखकों की एरनोबोअस, शोण नदी) देखिए ऐं० इण्डिया, पृ० ६८ । यह बाँकीपुर के पास गंगा में मिल जाती है। एरियन (ऐं० इण्डि०, पृ० १८६ ) ने एरन बोअस एवं सोनोस को पृथक्-पृथक् माना है । यह सुनहले हाथों वाली सम्भवतः इसलिए कही गयो है कि इसकी बालू सुनहरे रंग की है और इसमें सोने के कग भो पाये जाते हैं। हिरण्यबिन्दु -- (कालिंजर में एक पर्वत) वन० ८७।२१, अनु० २५।१०। हिरण्यवती - (नदी, जिस पर मल्लों का शालकुञ्ज एवं कुशोनारा का उपवत्तन उपस्थित था ) एस० बी० ई०, जिल्द ११, पृ० ८५ । यह गण्डकी नदी है। देखिए ऐं० जि०, पृ० ४५३ । हिरण्यवाह-- वही शोण एवं एरियन की एरन्नबोअस. जो तीसरी बड़ी नदी थी और अन्य दो सिन्धु एवं गंगा थीं। (ऐं० जि०, पृ० ४५२) । Jain Education International १५०५ हिरण्याक्ष -- मत्स्य० २२/५२ ( यहाँ दान कर्म अत्यंत फलदायक होता है) । हिरण्यासंगम -- ( साभ्रमती के अन्तर्गत ) पद्म० ६। १३५११ । हिरण्यतो-- ( एक लड़की इसे कोसल ले गयो ) वाम ० ३४।८ ( सात या नौ पवित्र नदियों में ), ६४।११ एवं १९, ९०/३२, अनु० १६६।२५, उद्योग ० १५२७ ( कुरुक्षेत्र में जहाँ पाण्डवों ने अपने शिबिर खड़े किये थे ), १६० १, भीष्म० ९।२५ । हेतुकेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ९२ ) । हेमकूट --- ( कैलास का दूसरा नाम ) भीष्म० ६१४, ब्रह्माण्ड ० २।१४।४८ एवं १५।१५ ( यहाँ हिमवान् एवं हेमकूट भिन्न भिन्न वर्णित हैं ) । हृषीकेश -- ( हरिद्वार के उत्तर में लगभग १४ मील दूर गंगा पर ) वराह० १४६।६३-६४ ( कहा जाता है कि यहाँ विष्णु का निवास है ) । होमतीर्थ - ( वारा० के अन्तर्गत ) कूर्म ० १ ३५।११ । ह्रादिनी -- (नदी) रामा० २०७१।२ ( केकय देश से आते हुए भरत ने पहले इसको पार किया तब शतद् पर आये ) 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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