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तीर्थसूची
१४८१ पारणेश्वर-(१) (वारा के अन्तर्गत) लिंग० (ती. विजयलिङ्ग-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती. क०, पृ०१०३); (२) (नर्मदा के अन्तर्गत) पय० कल्प०, पृ० ११२) । १।१८।६।
विजयेश--(कश्मीर में) नीलमत० १२४०, 'राज बार्बनी--(नदी, जो पारियात्र से निकलकर समुद्र में ११३८, स्टीनस्मृति पृ० १७३-कश्मीर के अन्तर्गत गिरती है) पद्म० ६।१३११५६, ६८, ६।१६४।१ प्रसिद्ध तीर्थों में एक। यह चक्रधर के ऊपर दो मील एवं ७१, मार्क० ५७।१९; वायु० (४५।९७) ने से कम ही दूर है। इसे 'वृत्रघ्नी' पढ़ा है और ब्रह्म (२७।२८) ने विजयेश्वर--(१) (कश्मीर में) राज० १११०५ एवं 'वातघ्नी'।
११३; (२) (वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० बासुक-(उड़ीसा में विरज के अन्तर्गत) ब्रह्म० ४२।६। क०, पृ०७६)। वासुकितीर्थ-(१) (वारा० के अन्तर्गत) पद्म० १॥ विज्वरेश्वर-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती.
३९।७९ लिंग० (ती० क०, पृ० ४८); (२) (प्रयाग कल्प०, पृ० ४३)। के अन्तर्गत) वन० ८५।८६ (इसे भोगवती भी विटङ्का--(नर्मदा के साथ संगम) पद्म० २।९२।कहा जाता है)।
२३॥ पासुकीश्वर- (वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० वितंसा--(हिमालय से निकलने वाली दस महान् नदियों क०, पृ० ४८)।
में एक)मिलिन्द-प्रश्न में उल्लिखित (एस० बी० ई०, वासुप्रद- मत्स्य० २२।७२ (यहाँ के श्राद्ध से परम पद जिल्द ३५, पृ० १७१) । दे (पृ०४२) ने बिना किसी मिलता है)।
तर्क के इसे वितस्ता कह दिया है। वासिष्ठी-वन० ८४।४८, पद्म० १॥३२॥१२ (दोनों वितस्ता--(कश्मीर में एक नदी जो अब झेलम के नाम
ही श्लोक, किन्त पद्म० में 'वासिष्ठम' पाठ से प्रसिद्ध है। ऋ० १०७५५, देखिए 'कश्मीर' एवं आया है)।
'तक्षक नाग' के अन्तर्गत, वन०८२१८८-९० (वितस्ता ब्राहा-वामन० ५७१७८ ।
तक्षक नाग का घर है), १३९।२०, कूर्म० २।४४।४, बाहिनी-भीष्म० ९॥३४॥
वामन० ९०।७, नीलमत० ४५।३०५-३०६ (उमा बासिष्ठ-कुण्ड - -(लोहार्गल के अन्तर्गत) वराह० १५१।। वितस्ताहो गयीं),३०६-३४१ । शंकर ने अपने त्रिशूल
४०। देवप्रयाग में अलकनन्दा पर एक वसिष्ठकूण्ड से एक वितस्ति अर्थात् बारह अंगुल का छेद कर है। देखिए इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द ११, पृ० दिया और सती नदी के समान बुलबुला छोड़ती हुई २७४ ।
निकल आयी। इसी लिए वितस्ति शब्द से वितस्ता विकीर्ण तीर्थ-(साभ्रमती के अन्तर्गत पद्म०६।१३३।७।। नाम पड़ा। राज० (५।९७-१००) में आया है कि विजय--(एक लिङ्ग) मत्स्य० २२।७३, कूर्म स्वयं ज्ञान ग्रहण करने वाले एवं महान् अभियन्ता २।३५।२१।
(इन्जीनियर) सूर्य ने कश्मीर के राजा अवन्तिवर्मा विजयेश्वर--(कश्मीर के परगने वुलर में आधुनिक के राज्यकाल में वितस्ता का बहाव एवं सिन्धु से इसके विजब्रोर) ह. चि० १०।१९१-१९५ (इसे' यहाँ मिलन का स्थल परिवर्तित कर दिया। देखिए स्टीन महाक्षेत्र कहा गया है) आइने अकबरी (जिल्द २, द्वारा अनूदित राज० (जिल्द २, पृ० ३२९-३३६)एवं ५०३५६) ने इसकी ओर संकेत किया है। वितस्ता जे० सी० चटर्जी की टिप्पणी 'कान्फ्लुएन्स आव दि इसके पूर्व और उत्तर है, गम्भीरा इसके पश्चिम और विस्तता ऐण्ड दि सिन्धु' (१९०६ ई०) जिसमें स्टीन विश्ववती दक्षिण की ओर।
का मत खण्डित किया गया है।
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