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________________ १४७२ मार्जार -- ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० ८४ । १९ । मार्तण्ड - ( कश्मीर में सूर्य का मन्दिर ) इस्लामाबाद के धर्मशास्त्र का इतिहास माहेश्वरपुर - ( जहाँ वृषभध्वज अर्थात् शिव की पूजा होती थी ) वन० ८४ । १२९-१३० । मित्रपद -- (गंगा पर एक तीर्थ ) मत्स्य० २२।११। मित्रबन - ( उड़ीसा में कोणार्क या साम्बपुर ) स्कन्द ०, प्रभासखण्ड १ । १० । ३ ( आदित्य के स्थान तीन हैंमित्रवन, मुण्डीर एवं साम्बादित्य ) । मित्रावरुण - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ४७) । मित्रावरुणयोराश्रम - (कारपवन के पास यमुना पर एक नदी) शल्य ० ५४ । १४-१५ । मिरिकावन- ( मेकल के पास ) ब्रह्माण्ड ० ३।७० ३२ । मिश्रक -- ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ) पद्म० ११२६।८५८६, (व्यास ने यहाँ सभी तीर्थों को मिला दिया ) वन ० ८३।९१-९२, सम्भवतः पाणिनि ( ६ | ३ | ११७ ) का कोटरादिगण मिश्रक वन की ओर संकेत करता है । मार्तण्डपादमूल - ( गया के अन्तर्गत ) ब्रह्म० (तीर्थ- मीनाक्षी - ( मदुरा में मुख्य मन्दिर की देवी ) देवी भाग कल्प०, पृष्ठ १६६) । वत० ७१३८।११ । माला -- (नदी) सभापर्व २०१२८ । मालार्क -- ( साभ्रमती के अन्तर्गत सूर्य का तीर्थस्थल ) मुकुटा - ( ऋष्यवन्त से निर्गत नदी) मत्स्य० ११४ / २६, १३।५०, ( यहाँ देवी 'सत्यवादिनी' के रूप में पूजित होती है) । मुक्तिक्षेत्र - ( शालग्राम के अन्तर्गत ) वराह० १४५ । उत्तर-पूर्व पाँच मील दूर आधुनिक मार्तन या मटन । इसका विख्यात नाम 'बबन' (भवन) है । यहाँ से कश्मीर की अत्यन्त सुन्दर शोभा दृष्टिगत होती है। ८वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में राजा ललितादित्य द्वारा निर्मित मन्दिर आज भग्नावशेष है। इस मन्दिर की अनुकथा के अनुसार विमला एवं कमला नामक दो धाराएँ एक मील ऊपर से निकलती हैं। देखिए राज० ४।१९२, नीलमत० १०७३ (विमल नाग), स्टीन द्वारा अनूदित राजतरंगिणी, जिल्द १, पृ० १४१ एवं जिल्द २, पृष्ठ ४६५-४६६ । आइने अकबरी ( जिल्द २, पृष्ठ ३५८-३५९ ) ने मटन का उल्लेख किया है । यह तीर्थ अब तक कश्मीर के सर्वोत्कृष्ट तीर्थों में गिना जाता रहा है। पद्म० ६।१४१।१ एवं १४२ । १ । मालिनी -- ( नदी, जिस पर कण्वाश्रम था ) आदि० ७०1 २१ एवं ७२ । १० । ह्वेनसांग के मत से इसी नदी पर रोहिलखण्ड के पश्चिम में मड़ावर नामक जिला अवस्थित था । देखिए ऐ० जि०, पृष्ठ० ३४९-३५० । माल्यवान् - ( तुंगभद्रा पर अनेगुण्डी नामक पहाड़ी ) रामा० ३।४९।३१, ४।२७।१-४ ( इसके उत्तर प्रस्रवण नामक गहरी गुफा में राम ने वर्षा ऋतु में चार मासों तक निवास किया था ), वन० २८०/२६, २८२ ।१ (किष्किन्धा से बहुत दूर नहीं ) । माल्यवती - (चित्रकूट के पास ) रामा० २।५६।३८ । मासेश्वर -- ( नर्मदा के अन्तर्गत ) पद्म० १११८ ७७ । माहेश्वर -- ( नर्मदा के उत्तरी तट पर इन्दौर के पास आज का नगर ) मत्स्य० १८८ २, पद्म० १|१५|२| इम्मी० गजे० (जिल्द १७, पृष्ठ ७ ) के अनुसार यह प्राचीन माहिष्मती है । Jain Education International १०५ । मुक्तिमान् - - ( एक पर्वत) ब्रह्माण्ड० ३।७० ३२ ( क्या यह शुक्तिमान् का नामान्तर है ? ) । मुक्तिस्थान -- ( यथा -- प्रयाग, नैमिष, कुरुक्षेत्र, गंगाद्वार, कान्ती, त्रियम्बक, सप्त गोदावर आदि २६ हैं ) स्कन्द ० ( काशीखण्ड ६।२१-२५) । मुचुकुन्द - ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५८|२८| मुचुकुन्देश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, पृष्ठ ११४) । मुंजवान् -- ( हिमालय की श्रेणी में एक पर्वत) आश्वमेधिक पर्व ८1१ ( जहाँ शिव तपस्या करते हैं), ब्रह्माण्ड ० २।१८।२०- २१ ( जहाँ शिव रहते हैं और जहाँ से शैलोद झील एवं शैलोदा नदी निकलती है), वराह० २१३।१३ (मन्दर के उत्तर में ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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