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तीर्थसूची
मातलीश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प ०, पृ० ७६ ) ।
मातंगक्षेत्र -- (कोकामुख के अन्तर्गत ) वराह० १४० १ ५८-५९ ( कौशिकी में मिलने वाली एक धारा ) । माता -- शल्य० अ० ४६, जहाँ बहुत-सी माताओं का वर्णन है ।
मातृगृह -- ( जहाँ श्राद्ध से आनन्त्य प्राप्त होता है) मत्स्य० २२।७६ ।
मातृतीर्थ --- (१) (कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत) वन० ८३३५८, पद्म० १।२६।५४; (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) कूर्म ० २।४१।४० ; ( ३ ) ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० ११२।१ ।
माधवतीर्थ -- (श्रीशैल पर ) पद्म० ६।१२१।१२ । माधववन -- मत्स्य ० १३ । ३७ ( यहाँ पर देवी सुगन्धा कही जाती है) ।
मानस -- (१) (हिमालय में एक झील जो कैलास के उत्तर एवं गुरला मान्धाता के दक्षिण, बीच में अवस्थित है)
वन० १३०।१२, ब्रह्माण्ड० २।१८।१५ एवं मत्स्य० १२२।१६।१७ ( जिससे सरयू निकलती है), वाम० ७८ ३ ९०११ ( जहाँ विष्णु मत्स्य रूप में प्रकट हुए थे ) । देखिए 'कैलास' के अन्तर्गत । स्वेन हेडिन ने 'ट्रांस- हिमालय' (१९१३, जिल्द ३, पृष्ठ १९८) में लिखा है--' पृथ्वी पर उस क्षेत्र से बढ़कर कोई अन्य स्थान नहीं है जो मानसरोवर कैलास एवं गुरला मान्धाता के नामों से व्यक्त है, जो हीरों के बीच वैदू (हरे रत्नों) का गुम्फन है।' मानस झील समुद्र से १४,९५० फुट ऊंची है; (२) (कुब्जाम्रक के अन्तर्गत ) वराह० १२६ । २९ ( ३ ) ( मथुरा के पश्चिम ) वराह० १५४। २५; (४) (गंगा के उत्तर प्रयाग के पास) मत्स्य० १०७ । २; ( ५ ) ( कश्मीर
आधुनिक मानसवल) विक्रमांकदेवचरित १८/५५, कश्मीर रिपोर्ट, पृष्ठ ९ (६) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य० १९४।८, पद्म० १ २११८ ( ७ ) ( गया के अन्तर्गत उत्तर मानस एवं दक्षिण मानस कुण्ड ) वायु० १११।२, ६, ८ एवं २२ ।
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मनुलिङ्ग- ( वारा० के अन्तर्गत) लिङ्ग० (ती० करुप० पृ० ११४) ।
मानुष --- ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ) पद्म० ११२६ । ६०-६३, वाम० ३५/५०-५७ ।
मायापुरी -- (गंगाद्वार या हरिद्वार) मत्स्य० १३।३४ ( यहाँ देवी को कुमारी कहा जाता है), २२।१०, वायु० १०४/७५, गरुड़ ० ११८११७, स्कन्द ० ४।७।११४ (केचिदूचुर्हरिद्वार मोक्षद्वारं ततः परे । गंगाद्वारं च
केचिन्मायापुरं पुनः ।। ) । माया नन्द्यादिगण में आया है (पाणिनि ४/२/९७), यह भारत की सात तीर्थ नगरियों में एक है। ह्वेनसांग ने इसे मोयुलो (मायुर) कहा है। अब गंगा नहर के तट पर मायापुर का अवशेष रह गया है। देखिए ऐं० जि०, पृष्ठ ३५१-३५४ ।
मायातोर्थ - - ( कुब्जाम्रक के अन्तर्गत एवं गंगा पर )
वराह० १२५।११०, १२६।३३ । मारुतालय --- ( नभदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९११८६, कूर्म० २।४१।४१ (मातृतीर्थ के पश्चिम), पद्म ० १।१८।८१ ।
मार्कण्डेयतीर्थ -- ( १ ) ( गोमती एवं गंगा के संगम पर
वाराणसी जिले में) वन० ८४।८१, पद्म० ११३२/४१-४२ । प्रो० आयंगर (ती० कल्प०, पृ० २९१ ) का यह कथन कि यह सरयू-गंगा के संगमपर है, ठीक नहीं है; (२) (गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १४५ । १ । मार्कण्डेयहव-- ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प ०, पृ०६७); (२) ( पुरुषोत्तमतीर्थ के पास ) ब्रह्म० ५६।७३, ७३१२, ६० ९ (विशेषत: चतुर्दशी पर स्नान करने से सब पाप कट जाते हैं), नारद० २१५५/२०-२२ । मार्कण्डेयेश्वर -- ( १ ) ( वाराणसी के अन्तर्गत ) स्कन्द० ४।३३।१५४-१५५; (२) ( गया के अन्तर्गत ) अग्नि० ११६ ११; (३) ( पुरुषोत्तम के अन्तर्गत ) नारद०
२।५५।१८-१९ । मारीचेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) ती० कल्प०, पृ० ७१ ।
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