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________________ तीर्थ सूची १४३५ चित्रगुप्तेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० दे (पृ० ५१) ने ४ च्यवनाश्रमों का उल्लेख किया क०, पृ० १०२।। है। च्यवन भृगु के पुत्र थे और भृगु लोग नर्मदा चिदम्बर--(देखिए 'मीनाक्षी' के अन्तर्गत) देवीभाग० के मुख के पास की भूमि से बहुधा सम्बन्धित किये ७।३८।११, यह महान् शिव मन्दिर के लिए विख्यात जाते हैं। है, परन्तु यहाँ कोई वास्तविक लिंग नहीं दिखाई च्यवनेश्वर-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० पड़ता। क्योंकि दीवार पर एक आवरण पड़ा रहता क०, पृ० ६६) । है और जब दर्शनार्थी प्रवेश करते हैं तो आवरण हटा दिया जाता है तथा दीवार दिखा दी जाती है। मन्दिर के बाहरी कक्ष में एक हजार से अधिक छागलाण्ड--(श्राद्धतीर्थ) मत्स्य० १३।४३ (यहाँ पाषाण-स्तम्भ हैं। देवी को प्रचण्डा कहा गया है), २२।७२। चिन्ताङ्गदेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) पद्म० १।३७।- छागलेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, १४। पृ० ११९)। चोरमोचन-तीर्थ--(कश्मीर में) राज. ११४९- छायाक्षेत्र--(ललिता का तीर्थ) ब्रह्माण्ड० ४।१४।१०० १५० (कनकवाहिनी, नन्दीश एवं यह तीर्थ एक साथ (महालक्ष्मीपुर की नगरवाटिका इसी नाम से वर्णित हैं), यह कनकवाहिनी एवं सिन्धु का संगम प्रसिद्ध है)। है, नोलमत० १५३८-१५४५ (इसका नाम इसलिए छिन्नपापक्षेत्र--(गोदा० पर) पद्म० ६।१७५।१५। पड़ा है कि सप्तर्षि गण यहाँ अपने वल्कल वस्त्रों को त्याग कर स्वर्ग को चले गये थे), स्टीनस्मति, पृ० २११। जगन्नाथ---देखिए गत अध्याय का प्रकरण पुरुषोत्तमचैत्रक-मत्स्य ० ११०।२। तीर्थ। चैत्ररय--(एक वन) वायु० ४७६ (अच्छोदा जटाकुण्ड--(सानन्दूर के अन्तर्गत) वराह० १५०।नदो के तट पर), ब्रह्माण्ड ० २११८७ (यहाँ देवी ४७ (मलय पर्वत के दक्षिण एवं समुद्र से उत्तर)। महोत्कटा हैं), मत्स्य० १३।२८। जनककूप---(गया के अन्तर्गत) पद्म० ११३८।२८, ध्यवनस्थाश्रम--- (१) (गया के अन्तर्गत) नारदीय० वन० ८४३१११। २।४७१७५, वायु० १०८१७३। ऋ० (१।११६।- जनकेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० १०) में कहा गया है कि अश्विनी ने च्यवन का क०, पृ० ११९)। कायाकल्प किया था और उन्हें पुनः युवा बना दिया जनस्थान---देखिए गत अध्याय का प्रकरण गोदावरी, था। शतपथ ब्रा० ११५।१-१६ (एस० बी० ई०, वन० १४७।३३, २७७।४२, शल्य० ३९।९ (दण्डजिल्द २६, पृ. २७२-२७६), उन्होंने शर्यात की कन्या कारण्य), वायु० ८८।१९४, ब्रह्म० ८८।१ (विस्तार सुकन्या से विवाह किया और इस ह्रद या कुण्ड में में चार योजन), रामा० ६।१२६।३७-३९, ३।२१।स्नान करके युवा हो गये; (२) (नर्मदा के अन्त- २०, ३।३०।५-६।। र्गत) वन० ८९।१२, १२१।१९-२२; वन० (अ० जनेश्वर--(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १११३।११ १२२-१२४) में च्यवन, सुकन्या एवं अश्विनी की (पितृतीर्थ)। गाथा है। वन० (१०२।४) ने वर्णन किया है कि जन्मेश्वर--मत्स्य० २२।४२। कालेयों ने यहाँ १०० मुनियों का भक्षण किया। जामदग्न्य-तीर्थ-(१) (जहाँ नर्मदा समुद्र में गिरती १०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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