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________________ १४३० धर्मशास्त्र का इतिहास टिप्पणी को है। सभा० २११२-३ (यह वैहार, विपुल, सहायतार्थ गये थे। देखिए एपि० कर्नाटिका, वराह, वृषभ एवं ऋषिगिरि नामक पांच पहाड़ियों जिल्द ७, शिकारपुर, संख्या ९९ (१११३ ई०), से घिरा हुआ एवं रक्षित है)। देखिए 'राजगृह' के जहाँ चालक्य त्रिभवनमल्ल के राज्य को 'गोकर्णपूर अन्तर्गत। रामा०(२३२१७) में आया है कि यह ब्रह्मा के स्वामी' का करद कहा गया है। कूर्म० (२।३५।के पौत्र एवं कुश के पुत्र वसु द्वारा स्थापित हुआ था। ३१) ने उत्तर-गोकर्ण एवं वराहपुराण (२१३।गुरुकुल्यतीर्थ--(नर्मदा पर) स्कन्द० १११११८।- ७) ने दक्षिणी एवं उत्तरी गोकर्ण का उल्लेख किया १५३ (जहाँ पर बलि ने अश्वमेधयज्ञ किया)। है। (२) (सरस्वती तट पर) वराह० १७०।११; गुहेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (तो० क०, (३) (मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १७१पृ० १०२)। १७३; (४) (वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती. गृध्रकूट-(१) (गया के अन्तर्गत एक पहाड़ी) क०, पृ० ११३) । मत्स्य० (१३।३०) ने गोकर्ण वायु० ७७।९७, १०८।६१, १११२२, अग्नि में देवी को भद्रकणिका कहा है। ११६।१२, नारदीय० २।४५।९५ एवं ४७१७८; गोकर्ण-हद-वन० ८८।१५-१६ । (२) (सरस्वती और शुद्धा के संगम पर , जहाँ गोकर्णेश्वर--(हिमालय की एक चोटी पर) वराह० परशुराम के रक्तरंजित हाथ स्वच्छ हुए थे) २१५।११८। नीलमत० १३९४-१३९५ । गोकामुख-(पर्वत) भाग० ५।१९।१६ । गृध्रवन--कूर्म० २।३७१३८ । गोकुल-(एक महारण्य) देखिए 'बज', पद्म० ४।गृध्रवट-(१) (गया में गृध्रकूट पर) वन० ८४।- ६९।१८, भाग० २।७।३१ । ९१, अग्नि० ११६।१२, पद्म० ११३८।११ (यहाँ गोग्रह--(उड़ीसा में, विरज के अन्तर्गत) ब्रह्म० ४२।६। भस्म से स्नान होता है), नारदीय० २।४४१७२, गोपन-(पर्वत) ब्रह्माण्ड० २।१६।२२। वायु० १०८।६३; अब वृक्ष नहीं है; (२) (सूकर- गोतीर्ष-(१) (नैमिष वन में) वन० ९५।३; क्षेत्र में, जहाँ गृध्र मानव हो गया था) वराह० (२) (प्रयाग में) मत्स्य० ११०।१; (३) १३७१५६। (वारा० के अन्तर्गत) कूर्म० १।३३।१३; (४) गुज्रेश्वर-लिंग-(गृध्रकूट पर गया के अन्तर्गत) (नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य. १९३॥३, पद्म० अग्नि० ११६।११, नारदीय. २१४७१७८। १।२०।३; (५) (साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० गोकर्ण--(१) (उत्तरी कनारा जिले के कुमटा तालुका ६१५६।१। में गोआ से ३० मील दक्षिण, समुद्र के पश्चिमी तट गोचरमेश्वर--(श्रीपर्वत के अन्तर्गत) लिंग० ११९२॥ पर शिव का पवित्र स्थल) वन० ८५।२४, ८८।१५, १५२। २७७१५५; आदि० २१७१३४-३५ ('आद्यं पशुपतेः गोदावरी--देखिए इस ग्रन्थ के खण्ड ४ का अध्याय १५। स्थानं दर्शनादेव मुक्तिदम्'), वायु० ७७१९, मत्स्य० गोनिष्क्रमण-(इसे गोस्थलक भी कहते हैं) वराह० २२।३८, कूर्म० २।३५।२९-३२, ब्रह्माण्ड० ३।५६।- १४७।३-४ एवं ५२। ७-२१ (श्लोक ७ में इसका विस्तार डेढ़ योजन है), गोपादि-(कश्मीर में श्रीनगर से दक्षिण में स्थित एक वाम० ४६।१३ (रावण ने यह लिंग स्थापित किया पहाड़, जिसे अब तख्तए सुलेमान कहते हैं) स्टीनथा)। ब्रह्माण्ड० (३१५७-५८) एवं नारदीय. स्मृति (पृ० १५७); राज० (११३४१) ने गोपाद्रि (२।७४) ने वर्णन किया है कि यह समुद्र की बाढ़ का उल्लेख किया है, जो हाल झील के पास आज का में डूब गया था और यहां के लोग परशुराम के पास गोपकार है। देखिए काश्मीर रिपोर्ट, १७ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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