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कालिका - संगम - वन० ८४।१५६, पद्म० १|३८|६३, अग्नि० १०९।२० ।
कालिन्दी - ( यमुना के अन्तर्गत देखिए) पद्म०
१।२९।१ ।
धर्मशास्त्र का इतिहास
कालिहद -- ( शालग्राम के अन्तर्गत) बराह० १४५।४५ । कालियद - ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० (ती० क०,
पृ० १९२), तीर्थप्रकाश, पृ० ५१५ ।
काली -- (१) ( उ० प्र०, सहारनपुर से बहने वाली नदी) मत्स्य ० २२ २०, वाम० ५७ ७९; यह नेपाल एवं सहारनपुर की विभाजक रेखा थी (इम्पि० गजे ० sus०, जिल्द २२, पृ० १०२ ); (२) (काली सिन्धु, जो चम्बल में मिलती है) ।
कालेश-- ( गया के अन्तर्गत) अग्नि० ११६।२३ । कालेश्वर -- (१) ( वाराणसी के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ४५ एवं ७२), १।९२।१३६; (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य० १९११८५ । ब्रह्माण्ड० ( ४/४४/९७) में आया है कि यह ललिता के ५० पीठों में एक है ।
कालोदक --- (झील) (१) वि० ध० सू० ८५।३५ (वैजयती टीका के अनुसार), अनु० २५|६०; (२) ( समुद्र से १३००० फुट ऊँचे हरमुकुट पर्वत के पूर्व भाग में एक झील) नीलमत० १२३१-१२३३ । कालोवका -- ( कश्मीर में एक नदी ) अनु० २५/६०, नीलमत० १५४५ ।
कावेरी-संगम -- ( नर्मदा के साथ) अग्नि० ११३१३ एवं निम्नोक्त (२) ।
कावेरी -- (१) (सह्य पर्वत से निकनेवाली दक्षिण भारत की एक नदी ) वन० ८५। २२, अनु० १६६।२०, वायु०४५।१०४, ७७ २८, मत्स्य० २२/६४, कूर्म ० २३७/१६-१९, पद्म० १।३९ २०, पद्म० ६।२२४१३, ४ एवं १९ ( मरुद्द्धा कही गयी है ) । नृसिंह० (६६) ७) का कथन है कि कावेरी दक्षिण गंगा है, तमिल महाकाव्य 'शिलप्पदिकारम्' (१०।१०२, पृ० १६०, प्रो० दीक्षितार के अनुवाद) में इसका सुन्दर वर्णन है; (२) ( राजपीपला पहाड़ियों से निकलनेवाली एक
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नदी, जो शुक्ल तीर्थ के सम्मुख नर्मदा में इसके उत्तरी तट पर मिल जाती है) मत्स्य० १८९।१२- १४, कूर्म ० २/४०/४०, पद्म० १।१६।६-११ ( यहाँ कुबेर को यक्षाधिपत्य प्राप्त हुआ), अग्नि० ११३१३ । काशी - देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १३ । यह
सम्भवत : टॉलेमी (१०२२८) का 'कस्सिद' है । अभिधानचिन्तामणि ( श्लोक ९७४) में आया है कि काशी, वराणसी, वाराणसी एवं शिवपुरी पर्याय हैं। काश्यपतीचं - (१) (कालसर्पिः नामक ) वायु० ७७ । ८७, ब्रह्माण्ड० ३।१३।९८६ (२) ( साभ्रमती के अन्तर्गत ) पद्म० ६ । १५७ १ । fafeणीकाश्रम - अनु० २५।२३ | किन्दान-पद्म० १।२६।७४, वन० ८३।७९ । कियज्ञ पद्म० १।२६।७४ । किदत्तकूप - वन० ८४ ९८ ।
किरणा - (नदी) वाम० ८४|५, देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १३ ।
किरणेश्वर लिंग- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) स्कन्द ० ४।३३।१५५ ।
किलिकिलेश - ( गया के अन्तर्गत) अग्नि० ११६।३१ । किशुकवन-वायु० ३८।२७-३२ ( वसुधारा एवं रत्नधारा के बीच में ) ।
किशुल्क - ( पाणिनि ६।३।११७ के अनुसार एक पर्वत) काशिका ने कोटरावन आदि पाँच वनों एवं किंशुक आदि गिरियों का उल्लेख किया है, जिन्हें निश्चितता के साथ पहचाना नहीं जा सकता । किष्किन्धा - ( पम्पासर के उत्तर-पूर्व दो मील) वन०
२८०।१६, रामा० ४/९/४, ४।१४। १ आदि । महाभाष्य (जिल्द ३, पृ० ९६, पाणिनि ६।१।१५७ ) ने forforan - गुहा का उल्लेख किया है। 'सिन्ध्वादिगण' ( पाणिनि ४ । ३ । ९३ ) में भी यह शब्द आया है। यह आधुनिक विजयनगर एवं अनेगुण्डि कहा गया है । देखिए इम्पी० गजे ० ( जिल्द १३, पृ० २३५) । बृहत्संहिता ( १४ । १०) ने उत्तर-पूर्व में किष्किन्धा को एक देश कहा है।
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