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________________ तीर्थसूची १४१५ (गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० १४१।१ एवं करपाद--(शिव का तीर्थ) वाम० (ती० क०, पृ० २८-२९। २३५)। कपिलेश लिंग-(वारा० के अन्तर्गत) स्कन्द० करवीर--(१) (आधुनिक कोल्हापुर) मत्स्य० ४।३३।१५८। १३।४१ (करवीरे महालक्ष्मीम् ), पद्य० ५।१७।कपिलेश्वर लिंग-(१) (वारा० के अन्तर्गत) लिंग० २०३, मत्स्य० २२१७६, अनु० २५।४४, पद्म० (ती० क०, पृ० ५७ एवं १०७); (२) (नर्मदा ६।१०८।३; एपि० इण्डि०, जिल्द ३, पृ० २०७, के अन्तर्गत) पद्म० २।८५।२६ । २१०, वही, जिल्द २९, पृ० २८०; (२) (दृषकपिशा--(उत्कल, अर्थात् उड़ीसा की एक नदी) द्वती पर ब्रह्मावर्त की राजधानी) कालिका० रघुवंश ४।३८। मेदिनीपुर में बहनेवाली कसाई ४९।७१, नीलमत० १४७; (३) (गोमन्त पहाड़ी से इसकी पहचान की जा सकती है। के पास सह्य पर एक नगरी) हरिवंश (विष्णुपर्व) कपोतेश्वर--(श्रीपर्वत के अन्तर्गत) लिंग० १९२।१५६ । ३९।५०-६५। कमलालय-मत्स्य० १३।३२ (यहाँ देवी का नाम करवीरकतीर्थ-(१) (वारा० के अन्तर्गत) लिंग. कामला है)। (ती० क०, पृ०७०); (२) (कुब्जाम्रक के अन्तकमलाक्ष--(यहाँ देवी ‘महोत्पला' के नाम से विख्यात गत) वराह० १२६१४८-५१। हैं) मत्स्य० १३।३४। करञ्जतीर्थ-(नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १०९।कम्पना-(नदी) वन० ८४। ११५-११६, भीष्म० ९।२५। करहाटक-कृष्णा एवं कोयना के संगम पर सतारा कम्बलाश्वतर नाग--(१) (प्रयाग के अन्तर्गत) जिले में आधुनिक करद) सभा० '३११७०, विक्र मत्स्य० १०६।२७, ११७८, कूर्म ० ११३७।१९।। मांकदेवचरित ८।२। ई० पू० दूसरी शताब्दी से (यमुना के दक्षिण तट पर), अग्नि० ११११५; इसका नाम शिलालेखों में आया है। दे० कनियम (२) दो नाग (अर्थात् धाराएँ या कुण्ड) ये कश्मीर का लेख 'भरहुतस्तूप', क्षत्रपों के सिक्के यहाँ मिले हैं। में हैं, नीलमत० १०५२। बम्बई गजे०, जिल्द १, भाग १, पृ० ५८ एवं एपि० कम्बलाश्वतराक्ष--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग इण्डि०, जिल्द १३, पृ० २७५ । (ती० का, प. १०२)। कर्कोटकेश्वर--(नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९१।कम्बूतीर्थ-(साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६- ३६ । १३६।१। कर्कन्ध-वाम० ५११५२ कम्बोतिकेश्वर-(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० ६।१३६।१। कर्णप्रयाग-देखिए अलकनन्दा के अन्तर्गत। यू० पी० करतोया--(बंगाल के रंगपुर, दिनाजपुर एवं बोग्रा गजे० (जिल्द ३६, गढ़वाल, पृ० १७२ । जिलों से बहती हुई नदी, यह कामरूप की पश्चिमी कर्णहद--(गंगा-सरस्वती के संगम के पास) पद्म० सीमा है) वन० ८५।३, सभा० ९।२२, अनु० ११३२।४। २५।१२। अमरकोश के अनुसार करतोया एवं कर्दमिल-वाम० १३५।१ (जहाँ पर भरत को राजसदानीरा एक ही हैं। मार्क० (५४।२५) के मत मुकुट पहनाया गया था)। से यह विन्ध्य से, किन्तु वायु० (४५।१००) के कर्दमाश्रम--(बिन्दुसर के पास) भाग० ३।२१।मत से ऋक्षपाद से निकलती है। और देखिए स्मृति- ३५-३७। च० (१, पृ० १३२)। कर्दनाल--(१) (गया के अन्तर्गत) मत्स्य० २२।७७, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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