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________________ तीर्पसूची १४१३ नारदीय० २।४४।६२, वायु० ७७।१०५ (कनक नन्दी), कूर्म० २।३७।४१-४३ (यहाँ ब्रह्मपृष्ठ ककुद्मती-(सह्य से निकलनेवाली एक नदी) आया है)। पद्म० ६।११३।२५ (सतारा जिले में कोयना)। कनकवाहिनी-(कश्मीर में एक नदी, जो अब कंकनाई देखिए 'कृष्णा' के अन्तर्गत एवं तीर्थसार, पृ० ७९।। कही जाती है, और भूतेश्वर अर्थात् बूथसेर से बहती कोयना सतारा में करद के पास कृष्णा से मिलती है) नीलमत० १५४५, राज० ११४९-१५० (सिन्धु में मिलती है)। देखिए स्टीन-स्मृति, पृ० ककुभ-(एक पर्वत) भाग० ५।१९।१६ । २११ । नीलमत० (१५३९-४२) का कथन है कलिंग-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, कि सिन्धु एवं कनकवाहिनी का संगम वाराणसी पृ० ११२)। के बराबर है। कठेश्वर--(चन्द्रभागा के पास) मत्स्य० १९११- कनका-(गया के अन्तर्गत एक नदी) वायु० १०८/६३-६४। ८०। कणावेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कनकेश्वर-(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० ___ क०, पृ० ९२)। __क०, पृ०-१०४)। कण्वाश्रम---(१) (सहारनपुर जिले में मालिनी नामक कनखल-(१) (हरिद्वार से लगभग दो मील दूर नदी पर) वन० ८२।४५, ८८।११, वि० ध० गंगा पर) वन० ८४१३०, अनु. २५।१३, वि० सू० ८५।३०, अग्नि० १०९।१० । अभि० शाकुंतल ध० सू० ८५।१४, कूर्म० २।३७।१०-११, स्कन्द० (अंक १) में कण्वाश्रम मालिनी के तट पर कहा १।१२।११ (जहाँ रुद्र ने दक्षयज्ञ को नष्ट किया गया है। शतपथब्राह्मण (१३।५।४।१३) में प्रयुक्त था)। वायु० ८३।२१, वाम० ४१५७, देखिए 'नाड्पित्' शब्द को टीकाकार हरिस्वामी ने तीर्थप्रकाश (पृ० ४३७); (२) (गया में उत्तर कण्वाश्रम माना है; (२) (राजस्थान में कोटा एवं दक्षिण मानस के बीच) वायु० ११११७, से चार मोल दक्षिण-पूर्व चर्मण्वती पर) देखिए दे अग्नि० ११५।२३, नारदीय० २।४६।४६; (३) (पृ० ८९)। (नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १८३।६९, पद्म० कदम्ब--(द्वारका के अन्तर्गत) वराह० १४९।५२ (जहाँ १।२०।६७ (जहाँ गरुड़ ने तप किया था) (४) पर वृष्णि लोग पवित्र हुए थे)। (मथुरा के अन्तर्गत) वराह० १५२।४०-४९, कदम्बखण्ड---(मथुरा के अन्तर्गत एक कुण्ड) वराह (जहाँ पंचाल देश के काम्पिल्य नामक नापित १६४।२६ । ने यमुना में स्नान किया और ब्राह्मण होकर जन्म कदम्बेश्वर--(श्रीपर्वत के अन्तर्गत) लिंग० ११९२।- लिया। १६१ (यहाँ स्कन्द ने लिंग स्थापित किया कन्या--(दक्षिण समुद्र पर, कुमारी या केप कामोरिन्) था)। भाग० १०७९।१७। देखिए 'कुमारी' के कदलोनवी--(जहाँ का दान पुण्यकारक है) मत्स्य० अन्तर्गत। २२१५२। कन्याकूप-अनु० २५।१९। कनक--(मथुरा के अन्तर्गत) वराह० (ती० क०, कन्यातीर्व-(१) (समुद्र के पास) वन० ८३१पृ० १८९)। ११२, ८५।२३, कूर्म० २।४४।९, पद्म० ११३९।२१; कनकनन्दा--(गया में मुण्डपृष्ठ से उत्तर एक नदी) (२) (नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९३१७६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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