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________________ तीर्यसूची १४०९ उज्जयिनी से भद्रबाहु की संरक्षकता में जैनों का बाहर जाना वर्णित है, देखिए एस० बी० ई० (जिल्द १०, भाग २, पृ० १८८ ) । उत्पलावर्तक - ( एक वन ) नारदीय० २२६० २५, वनपर्व ( ती० क०, पृ० २४४ ) । उत्पलिनी -- ( नदी, नैमिषवन में) आदि० २१५।६ । उत्पातक-- अनु० २५/४१ । उज्जनक - - ( जहाँ स्कन्द एवं वसिष्ठ को मन की शान्ति प्राप्त हुई) वन० १३०।१७, अनु० २५।५५ । सम्भवतः यह 'उद्यन्तक' या 'उद्यानक' का अशुद्ध रूप है । उड्डियान -- कालिका० १८।४२ ( जहाँ पर सती की दोनों जांघें गिरी थीं) । उदपान - वन० ८४।११०, पद्म० ११३८१२७ । उदभाण्ड - - यहाँ साही राजाओं का निवास था । स्टीन ने इसे गन्धार की राजधानी कहा है; राज० ५/१५१-१५५, ६।१७५ । यह अलबरूनी का वेहण्ड एवं आज का ओहिन्द या उण्ड है। अटक के ऊपर १८ मील पर सिन्धु के दाहिने तट पर । उदीचीतीर्थ - - ( गया के अन्तर्गत ) वायु० ११११६ । देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १४ । उत्कोचक तीर्थ -- वन० १८३।२ । उसमेश्वर-- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० १०२ ) । उसर - ( वारा० के अन्तर्गत) कूर्म ० ११३५/१४, उद्दालकेश्वर - ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग० (तो० पद्म० १|३७|१७ । उत्तर- गंगा -- ( कश्मीर में, लार परगने में गंगबल) ह० चि० ४।५४ | इसे हरमुकुट गंगा एवं मानसोत्तर गंगा भी कहते हैं । उत्तर- गोकर्ण -- वराह० २१६।२२, कूर्म० २।३५।३१ । उत्तर- जाह्नवी - ह० चि० १२।४९ । जब वितस्ता उत्तर की ओर घूम जाती है तो उसे इसी नाम से पुकारा जाता है । उत्तर- मानस - (१) (कश्मीर में) अनु० २५/६०, नीलमत० १११८; ( कश्मीर के उत्तर का रक्षक नाग ) यह गंगबल नामक सर द्वारा विख्यात है । स्टीन ( राज० ३।४४८ ) एवं ह० च० ४ ८७ ; ( २ ) ( गया के अन्तर्गत ) वायु ० ७७ १०८, १११२, वि० ध० सू० ८५/३६, शान्ति० १५२1१३, मत्स्य० १२१।६९, कूर्म ०२१३७।४४, राज० ११५ १० | देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १४ । उत्पलावती- ( मलय पर्वत से निकलनेवाली एक नदी ) वायु० ४५।१०५, मत्स्य० ११४।३० उत्पलावन --- वन० ८७।१५ (पंचाल देश में) अनु० २५।३४ । दे ( पृ० २१३ ) के मत से यह बि है, जो उ० प्र० में कानपुर से १४ मोल दूर है । Jain Education International क०, पृ० ५९ ) । उद्यन्त-- ( पर्वत, काठियावाड़ में सोमनाथ के पास ) स्कन्द० ६१२।११।११ । उद्यन्त पर्वत - (ब्रह्मयोनि पहाड़ी, गया में, शिला के बायें) वन० ८४ ९३, वायु० १०८।४३-४४, नारदीय० २।४७ । ५१, पद्म० १|३८|१३ । देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १४ । उपजला - (यमुना के पास एक नदी ) वन० १३०/२१ । उपमन्युलिंग -- ( वारा० के अन्तर्गत ) पद्य ० १ ३७१७, लिंग० ११९२ १०७ । उपवेणा -- ( अग्नि की माताओं के नाम से प्रसिद्ध नदियों में एक ) वन० २२२।२४ । उमाकुण्ड --- (लोहार्गल के अन्तर्गत ) वराह० १५१/ ६४ । उमावन -- उमातुंग - कूर्म० २।३७।३२-३३, वायु० ७७१८१-८२ ( श्राद्ध, जप, होम के लिए सर्वोत्तम स्थल) । -- ( जहाँ शंकर ने अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया था ) वायु० ४१।३६, दे ( पृ० २११) के मत से यह कुमायूँ में कोटलगढ़ है। अभिधानचिन्तामणि ( पृ० १८२) का कथन है कि यह देवीकोट भी कहा जाता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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