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________________ १३। १४०८ धर्मशास्त्र का इतिहास ७।७२, विष्णु० ३८६३४ (कृष्ण के देहावसान के ईशान-शिखर--(केदार के अन्तर्गत) देवीपुराण उपरान्त अर्जुन ने यहाँ यादव वज को राजमुकुट (ती० क०, पृ० २३०)। दिया), पा० ६।१९६।५, ६०।७५-७६, (यह ईशानाध्युषित--वाम० ८४१८ । यमुना के दक्षिण विस्तार में चार योजन था) २००५, (यह खाण्डववन में था) भाग० १०५८।१, ११।३०।४८, ११।३१।२५ । इन्द्रप्रस्थ पाँच प्रस्थों उप-(वारा० के अन्तर्गत) पम० ११३७.१५ । इसे में एक है, अन्य हैं सोनपत, पानीपत, पिलपत एवं केदार भी कहते हैं। बाघपत। उमेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, इनमार्ग-अनु० २५।९ एवं १६, पद्म० ११२७।६८। पृष्ठ ७०)। इन्द्रलोक-(बदरी के अन्तर्गत) वराह० १४१।१०- उज्जयन्त-(सौराष्ट्र में द्वारका के पास) वन० ८८।२१-२४, वायु० ४५।९२ एवं ७७१५२, वाम० इन्द्राणीतीर्थ--नारदीय० २।४०।९३ । १३।१८, स्कन्द० ८।२।११।११ एवं १५ (वस्त्राइन्दिरा-(नदी) वायु० १०८७९ । पथ-क्षेत्र की दक्षिणी सीमा)। देखिए ऐं. जि०, इन्द्रेश्वर--(१) (श्रीपर्वत पर) लिंग० ११९२११५२; पृ. ३२५ । (२) (वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (तीर्थक०, उज्जयिनी-(मध्य प्रदेश में आधुनिक उज्जैन) ब्रह्म० ४३।२४ (अवन्ती), ४४।१६ (मालवा की इरावती-(पंजाब की आधुनिक नदी, रावी, जिसे राजधानी)। देखिए 'अवन्ती' एवं 'माहिष्मती'। यूनानी लेखकों ने हाइड्रोएट्स कहा है) निरुक्त अशोक के धौली प्रस्तराभिलेख (सी० आई० आई०, (९।२६) में आया है कि ऋ० (१०७५।५) वाली जिल्द १, पृ० ९३) में 'उजेनी' का उल्लेख है। परुष्णी का नाम इरावती भी था। वि. घ. सू० महाभाष्य (जिल्द २, पृ० ३५, पाणिनि' ३।१।२६, ८५।४९, मत्स्य० २२।१९ (श्राद्ध-तीर्थ), वायु वार्तिक १०) में इसका उल्लेख है। यहाँ १२ ज्योति४५।९५ (हिमालय से निकली), वाम० ७९७, लिङ्गों में एक, महाकाल का मन्दिर है जो शिप्रा ८१११, नीलमत० १४९। लाहौर नगर इसके नदी पर अवस्थित है। कालिदास ने मेघदूत एवं तट पर अवस्थित है। महाभाष्य (जिल्द १, रघुवंश (६।३२-३५) में इसे अमर कर दिया है। पृ० ३८२, पाणिनि २।१।२०)। और देखिए ऐं. जि. (पृ० ४८९-४९०) ने सातवीं शताब्दी 'चन्द्रभागा'। की उज्जयिनी की सीमाएँ दी हैं। अभिधानचिन्ताइरावती-नवला-संगम-वाम० ७९।५१। मणि (पृ. १८२) ने विशाला, अवन्ती एवं पुष्पइलातीर्य- (गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० १०८।१। करंडिनी को उज्जयिनी का पर्याय कहा है। इलास्पद-पद्म० ११२६१७३ । मृच्छकटिक में भी पुष्पकरण्डकजीर्णोद्यान का उल्लेख इल्वलपुर--(यह मणिमती पुरी है) वन० ९६।४ । हुआ है। पेरिप्लस एवं टॉलेमी ने इसे 'आजेने' कहा है। देखिए टॉलेमी (पृ० १५४-१५५)। देखिए जे० ए० ओ० एस० (जिल्द ६६, १९४६, पृ० ईशतीर्थ--(नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० शे२०६९।। २९३), जहाँ उदयन एवं वासवदत्ता के विषय में ईशान-लिंग--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० ११९२- चर्चा है। इण्डियन ऐण्टीक्वेरी (जिल्द ३, पृ० १०६ एवं १३७ (तीर्थक०, पृ० १०५) । १५३) में श्रवण वेलगोला का विवरण है, जिसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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