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१४०२
अदितितीर्थ - ( गया के अन्तर्गत ) नारदीयपुराण
२।४०।९० ।
अनन्त - बार्हस्पत्य सूत्र ( ३।१२० ) के मत से यह वैष्णव क्षेत्र है । ब्रह्माण्ड० ३।१३।५८ |
धर्मशास्त्र का इतिहास
अनन्ततीर्थ -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५५१ | अनन्तनाग - ( पुण्योदा से दूर नहीं) नीलमत० १४०१
२। आजकल यह इस्लामाबाद के नाम से प्रसिद्ध है और कश्मीर में मार्तण्ड पठार के पश्चिमी भाग पर स्थित है। स्टीन की स्मृति, पृ० १७८ । अनन्तशयन - ( त्रावणकोर में पद्मनाभ ) पद्म० ६ |
११०१८, ६।२८०।१९।
अमन्तभवन --- इसे अनन्तहृद भी कहा जाता है। हरचरितचिन्तामणि १०।२५३ एवं २५६ । अब यह कश्मीर में वितस्ता के मध्य में माण्डवावर्तनाग से एक कोस पर अनन्तनाग के नाम से विख्यात है। अनरक - (१) (कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ) वाम० ४१ । २२-२४; (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य ० १९३।१-३, कूर्म० २।४१।९१-९२; ( ३ ) ( यमुना के पश्चिम ) धर्मराजतीर्थं भी इसका नाम है। कूर्म०
३९/५, पद्म० १ २७१५६ ।
अनरकेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० अप्सरेश - (नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९३।१६, पद्म० १।२१।१६, कूर्म० २।४२।२४ ।
कल्प०, पृ० ११३) ।
अनसूयालिङ्ग — (गोप्रेक्ष के उत्तर, वाराणसी के अन्तर्गत) अप्सरोयुगसंगम - ( गोदा० के अन्तर्गत) ब्रह्म० १४७। १ । लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ४२ ) । अब्जक - - ( गोदा० में) ब्रह्म० १२९ । १३७ ( यह गोदावरी का हृदय या मध्य है) ।
अमरक हब - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती०
अनाशक - वराह० २१५१८९ । अनिता - (नदी) ऋ० ५१५३।९।
अनूपा - (ऋक्षवान् पहाड़ से निकली हुई नदी) ब्रह्माण्ड ०
२११६१२८१
अन्तिकेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) नारदीय० २१४९।६-९।
अन्ध - ( एक नद) भागवत० ५।१९।१८, देवीभागवत ८।११।१६ ( अन्धशोणी महानदी ) । दे० ( पृ० ७ एवं ४७) का कहना है कि यह चान्दन या अन्धेला नदी है जो भागलपुर में गंगा में मिलती है। अन्धकेश- ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंगपुराण (ती० कल्प ० ) ।
अन्धोन - ( नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १।१९।११०-११३ । अन्नकूट --- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १६४।१० एवं
२२- ३२ ( गोवर्धन को अन्नकूट कहा जाता था ) । अन्यतः - प्लक्ष -- ( कुरुक्षेत्र में एक कमल की झील का नाम )
शतपथ ब्रा०, सैक्रेड बुक आव दि ईस्ट, जिल्द ४४, पृ० ७० ।
अपरनन्दा - (हेमकूट के पास) आदि० २१५।७, ११०११, अनु० १६६।२८ | दे ( पृ० ९) का कथन है कि यह अलकनन्दा ही है । अपांप्रपतन-- अनु० २५|२८| अप्सरस् - कुण्ड - ( मथुरा एवं गोवर्धन के अन्तर्गत ) वराह० १६४।१९ ।
अन्तकेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० ७५) ।
अन्तर्वेदि - (गंगा और यमुना के मध्य की पवित्र भूमि ) स्कन्द० १|१|१७|२७४ - २७५ ( जहाँ वृत्र को मारने के कारण ब्रह्महत्या गिरी ) । अन्तशिला - ( विन्ध्य से निकली हुई नदी) वायु० ४५/२०३ ।
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कल्प०, पृ० ५३ ) ।
अमरकण्टक - (मध्यप्रदेश के विलासपुर जिले में पर्वत ) देखिए पूर्व अध्याय, नर्मदा तीर्थ । वायु० ७७।१०-१६ एवं १५-१६, वि० ० सू० ८५। ६ ने इस पर्वत पर श्राद्ध की बड़ी प्रशंसा की है। मत्स्य० १८८।७९, पद्म० १।१५/६८-६९ का कथन है कि शिव द्वारा जलाये गये बाण के तीन पुरों में दूसरा इसी पर्वत पर गिरा था । कूर्म० २/४०/३६ ( सूर्य और चन्द्र के ग्रहणों के समय यहाँ की यात्रा पुण्यदायिनी समझी जाती है) ।
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