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________________ तीर्थसूची स्वती पर ) शल्य० ४७।१३-१४, पद्म० ११२७/२७; (५) ( साभ्रमती के उत्तरी तट पर ) पद्म० ६ । १३४।१; (६) ( कुब्जाम्रक के अन्तर्गत ) वराह० १२६ । ६३ । अग्निधारा - ( गया के अन्तर्गत ) वन ० ८४११४६, अग्नि० ११६।३१ । अग्निपुर - अनु० ३५१४३ | दे ( पृ० २) के मत से यह माहिष्मती है। देखिए रघुवंश ६।४२ । अग्निप्रभ -- ( गण्डकी के अन्तर्गत ) वराह० १४५ १५२५५ (इसका जल जाड़े में गर्म और ग्रीष्म में ठण्डा रहता है) । अग्निशिर - ( यमुना पर ) वन० ९०।५-७ । अग्निसत्यपद -- ( बदरी के अन्तर्गत ) वराह० १४१।७ । अग्निसर -- (१) (कोकामुख के अन्तर्गत ) वराह० १४०।३४-३६; (२) ( लोहार्गल के अन्तर्गत ) वराह० १५१।५२ । अग्नीश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (तीर्थकल्प०, पृ० ६६, ७१) 1 अघोरेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (तीर्थ कल्पतरु, पृ० ६० ) । अकुशेश्वर - ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९४। १ । अकोला -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० (१९११११८ १२२) द्वारा अति प्रशंसित । सम्भवतः भडोच जिले का आधुनिक नगर अंकलेश्वर । ऐं० जि० ( पृ० ३२२ ) ने नर्मदा के बायें तट पर अंकलेसर को अक्रूरेश्वर कहा है। देखिए इण्डियन एण्टीक्वेरी, जि० ५४, पृ० ११-१२ । अङ्गभूत- ( पितरों का एक तीर्थ) मत्स्य० २२।५१ । अङ्गारकुण्ड - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) ती० क०, पृ० ५६ अङ्गारवाहिक - मत्स्य० २२।३५ । अङ्गारकेश्वर - (१) ( गया के अन्तर्गत) अग्नि० ११६ । २९; (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) कूर्म ० २।४१।६। अङ्गारेश्वर – (१) (वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० ॥ कल्प ० ) पृ० ५५ एवं ९८; (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य० १९०१९, पद्म० १।१७।६ । अङ्गारेश - ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९१।१ ( सम्भवतः ऊपर वाला)। Jain Education International १४० १ अचला - ( कश्मीर में नदी) ह० चि० १० २५६ (अनन्तहृद एवं कर्कोटहद के पास ) । अचलेश्वर - लिंग० १।९२।१६५ । अचिरवती - ( सरयू में मिलने वाली नदी ) मिलिन्दप्रश्न में वर्णित दस महान् नदियों में एक (सं० बु० ई०, जि० ३५, पृ० १७१) । अवध में यह राप्ती के नाम से विख्यात है और इस पर श्रावस्ती अवस्थित थी, वराह० २१४।४७ । अच्छोदक - ( चन्द्रप्रभा पहाड़ी की उपत्यका में एक झील) वायु० ४७।५-६ एवं ७७-७६, मत्स्य० १४।३ एवं १२१७, ब्रह्माण्ड ० ३।१३ । ७७ । अच्छोदा -- ( अच्छोदक झील से निकली हुई नदी ) मत्स्य० १२१७, वायु० ४७।६, ब्रह्माण्ड० २११८/६ एवं ३।१३।८० । अच्युतस्थल --- वाम० ३४।४७ | देखिए युगन्धर । अजतुङ्ग — वायु० ७७१४८ ( यहाँ श्राद्ध अति पुण्यकारी माना जाता है और यहाँ पर्व के दिनों में देवों की छाया देखी जाती है) । अजबिल - (श्रीपर्वत के अन्तर्गत) लिंग० १।९२।१५३ । अजिरवती - ( एक नदी ), पाणिनि ६ । ३ । ११९ । सम्भवतः यह अचिरवती नदी है । अजेश्वर - ( वाराणसी में एक लिंग) लिंग ० १ ९२ । १३६ । अञ्जलिकाश्रम - अनु० २५।५२ । अञ्जन--- (ब्रह्मगिरि के पास एक पर्वत, गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० ८४|२| देखिए पैशाच तीर्थ के अन्तत; बृहत्संहिता ( १४/५ ) का कथन है कि अञ्जन पूर्व में एक पर्वत है। अञ्जसी (नदी) ऋ० १।१०४|४| अट्टहास -- (१) (हिमालय में ) वायु० २३ । १९२; (२) ( पितरों का तीर्थ) मत्स्य० २२/६८; (३) ( वाराणसी में एक लिंग) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० १४७) । अतिबल - ( सतारा जिले में महाबलेश्वर ) पद्म० ६।११३।२९ । अनीश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) ती० कल्प०, पृ० ४३। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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