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________________ १३८४ धर्मशास्त्र का इतिहास के विषय में (जे० ए० एस० वी०, १८९८ की जिल्द ६७, भाग १, ५० ३२८-३३१) चर्चा करते हुए गंग-वंश के ताम्रपत्रों से दो श्लोकों को उदधृत करके कहा है कि गंगेश्वर ने, लिसका दूसरा नाम चोडगंग था. पुरुषोत्तम के महामन्दिर का निर्माण कराया था। चोडगंग का राज्याभिषेक शक संवत ९९९ (सन १०७८ ई०) में हआ था अतः एम० एम० . चक्रवर्ती में मत प्रकाशित किया है कि जगन्नाथ का प्रासाद लगभग १०८५-१०९०ई० में निर्मित हआ। डा० डी० सी० सरकार ('गॉड पुरुषोत्तम एट पुरी', जे० ओ० आर०. मद्रास. जिल्द १७, पृ० २०९-२१५) का कथन है कि उड़िया इतिहास. 'मादला-पजी के अनुसार पुरुषोत्तम जगनाथ का निर्माण चोडगंग ने नहीं प्रत्यत उसके प्रपौत्र अनग-भीम तृतीय ने कराया, जिसने वाराणसी (कटक) के मन्दिर में पुरुषोत्तम की प्रतिमा स्थापित करायी थी, जिसे सुलतान फीरोज शाह ने भ्रष्ट कर दिया (इलियट एवं डाउसन, हिस्ट्री आव इण्डिया, जिल्द ३, पृ० ३१२-३१५)। इन गंग राजाओं ने भुवनेश्वर, कोणार्क एवं पुरी के भव्य एवं विशाल मन्दिरों का निर्माण कराया जो उत्तर भारत की वास्तुकला के उच्चतम जीते-जागते उदाहरण हैं। डा. मित्र (ऐण्टीक्विटीज आव उड़ीसा, जिल्द २,१०१०९-११०) एवं हण्टर (उड़ीसा, जिल्द १, पृ० १००-१०२) का कथन है कि अनंग-भीम ने भुवनेश्वर के शिखर से बढ़कर अति सुन्दर जगन्नाथ-शिखर बनवाया था (शक संवत् १११९ अर्थात् सन् ११९८ ई० में)।" __ जगन्नाथ-मन्दिर मृत्यों (सेवकों) की सेना से सुशोभित है। ये मृत्य या सेवक या चाकर ३६ क्रमों एवं ९७ वर्गों में विभाजित हैं। सबके नेता हैं राजा खुर्घ, जो अपने को जगन्नाथजो का 'झाडू देने वाला' कहते हैं (देखिए हण्टर का ग्रन्थ 'उड़ीसा', जिल्द १, पृ० १२८)। यहाँ प्रति वर्ष लाखों-लाख यात्री आते हैं। मुख्य मन्दिर, तीर्थों तथा महामन्दिर के आसपास के मन्दिरों के अग्रहार-दान आदि लाखों रुपयों तक पहुँच जाते हैं। जो कुछ दानादि से सम्पत्ति प्राप्त होती है और पुरी में जो कुछ धार्मिक कृत्य किये जाते हैं, इन सभी बातों के प्रबन्ध आदि के विषय में महान् असंतोष प्रकट किया जाता है। उड़ीसा राज्य ने सन् १९५२ में एक कानून बनाया है (पुरी, श्री जगन्नाय मन्दिर प्रबन्ध कानून संख्या १४) जो सेवकों, पुजारियों तथा उन लोगों के, जो सेवा-पूजा एवं देवस्थान के प्रबन्ध से सम्बन्धित हैं, कर्तव्यों एवं अधिकारों पर प्रकाश डालता है। किन्तु यह केवल कुछ निरीक्षण-मात्र की व्यवस्था के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकता-जैसा कि भक्त लोगों का कथन है। बनारस की भाँति यहाँ पाँच महत्त्वपूर्ण तीर्थ हैं, यथा-मार्कण्डेय का सरोवर, वट-कृष्ण, बलराम, महोदधि (समुद्र) एवं इन्द्रद्युम्न-सर। मार्कण्डेय की गाथा ब्रह्मपुराण (अध्याय ५२-५६) एवं नृसिंहपुराण (१०।२१, संक्षेप ) में आयी है। ब्रह्म० (५६।७२-७३) में आया है कि विष्णु ने मार्कण्डेय से जगन्नाथ के उत्तर शिव के एक मन्दिर एवं एक सर २८. प्रासादं पुरुषोत्तमस्य नृपतिःको नाम कतुं क्षमस्तस्येत्याचनृपरुपेक्षितमयं चक्रेऽथ गंगेश्वरः॥इन श्लोकों से पता चलता है कि शिलालेख की तिथि के बहुत पहले से पुरुषोत्तम का मन्दिर अवस्थित था और चोडगंग के पूर्ववर्ती राजाओं ने किसी सुन्दर मन्दिर के निर्माण की चिन्ता नहीं की थी। ऐसा प्रतीत होता है कि चोडगंग ने केवल भीतरी प्रकोष्ठ का और जगमोहन अर्थात प्रथम मण्डप का ही निर्माण कराया था (देखिए रालालदास बनर्जी, हिस्ट्री आव उड़ीसा, जिल्ब १, पृ०२५१)। २९. 'शकाग्दे रन्ध्रेशुभाशुरूपनक्षत्रनायके । प्रासादं कारयामासानंगभीमेन धीमता ॥ देखिए ग. मित्र का ग्रन्थ, जिल्ब २, पृ० ११०, एवं राखालदास बनर्जी काग्रंथ, जिल्द १, १०२४८, जहाँ चोडगंग के राज्याभिषेक की तिथि उसके शकसंवत् १००३ वाले शिलालेख से सिद्ध की गयी है। ३०. मार्कण्डेयं वटं कृष्णं रोहिणेयं महोदधिम् । इन्द्रद्युम्नसरश्चैव पञ्चतीर्थीविषिःस्मृतः ॥ब्रह्मपुराण (६०।११)। Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.or
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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