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धर्मशास्त्र का इतिहास मिता याज्ञ० ३।२३३) या कुछ अनुपातक कहे गये हैं (विष्णु ३६।८)।" गौतम (२१११-२) ने पतितों की सूची में कुछ और नाम जोड़ दिये हैं, यथा-माता या पिता की सपिण्ड नारियों या बहिनों एवं उनकी संततियों से योनि-सम्बन्ध करनेवाला, सोने का चोर, नास्तिक, निन्दित कर्म को बार-बार करनेवाला, पतित का साथ नहीं छोड़नेवाला या निरपराध सम्बन्धियों का परित्याग करनेवाला, या दूसरों को पातक करने के लिए उकसाने वाला, ये सब पतित कहे गये हैं।" पातक अपनी गुरुता में महापातकों से अपेक्षाकृत कम एवं उपपातकों से अपेक्षाकृत अधिक गहरे हैं।
उपपातक (हलके पाप) उपपातकों की संख्या विभिन्न युगों एवं स्मृतियों में भिन्न-भिन्न है। वसिष्ठ (११२३) ने केवल पाँच उपपातक गिनाये हैं; अग्निहोत्र के आरम्भ के पश्चात् उसका परित्याग, गुरु को कुपित करना, नास्तिक होना, नास्तिक से जीविकोपार्जन करना एवं सोम लता की बिक्री करना। शातातप (विश्वरूप, याज्ञ० ३।२२९-२३६) ने केवल आठ उपपातक गिनाये हैं। बौधायन० (२।१।६०-६१) ने बहुत कम उपपातक गिनाये हैं। गौतम (२१।११) का कथन है कि उनको उपपातक का अपराध लगता है, जो श्राद्ध भोजन के समय पंक्ति में बैठने के अयोग्य घोषित होते हैं, यथा-पशुहन्ता, वेदविस्मरणकर्ता, जो इनके लिए वेदमन्त्रोच्चारण करते हैं, वे वैदिक ब्रहाचारी जो ब्रह्मचर्य व्रत खण्डित करते हैं तथा वे जो उपनयन-संस्कार का काल बिता देते हैं। शंख (विश्वरूप, याज्ञ० २।२२९-२३६) ने केवल १८ उपपातक गिनाये हैं और उन्हें उपपतनीय संज्ञा दी है। मनु (१११५९-६६), याज्ञ० (३।२३४-२४२), वृद्ध हारीत (९।२०८-२१०), विष्णु०५० सू० (३७) एवं अग्निपुराण (१६८-२९-३७) में उपपातकों की लम्बी सूचियाँ हैं। प्राय० वि० (पृ० १९५) ने मन-कथित ४९ उपपातक गिनाये हैं। याज्ञवल्क्य द्वारा वर्णित ५१ उपपातक ये हैं (विश्वरूप, याज्ञ०३।२२९-२३६)-- गोवध, व्रात्यता (निश्चित अवस्था में उपनयन न किया जाना), स्तेय (चोरी, महापातक वाला स्वर्णस्तेय छोड़कर) ऋणों का न चुकाना (देवऋण, ऋषिऋण एवं पितृऋण को छोड़कर), अग्निहोत्र न करना (यद्यपि कोई उसे करने के लिए समर्थ है), जो बिक्री करने योग्य न हो उसे बेचना (यथा नमक), परिवेदन (बड़े भाई के रहते छोटे भाई द्वारा विवाह सम्पादन या श्रौत अग्नियों की उसके पहले स्थापना), वृत्ति लेनेवाले शिक्षक से वेदाध्ययन, शुल्क के लिए वेदाध्ययन, व्यभिचार (गुरुतल्पगमन या उसके समान अन्य दुष्कर्मों के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों के साथ व्यभिचार), छोटे भाई के विवाहित हो जाने पर बड़े भाई का अविवाहित रूप में रहना, अधिक ब्याज ग्रहण (स्मृतियों द्वारा निर्धारित मात्रा से अधिक सूद लेना), लवणक्रिया (नमक बनाना),नारीहत्या (आत्रेयी को छोड़कर किसी अन्य जाति की नारी की हत्या), शुद्रहत्या, (श्रौत यज्ञ के लिए न दीक्षित) क्षत्रिय या वैश्य की हत्या, निन्दित धन पर जीविकोपार्जन, नास्तिकता
१७. एतानि गुर्वषिक्षेपादितनयागमनपर्यन्तानि महापातकातिदेशविषयाणि सद्यःपतनहेतुत्वात्पातकान्युच्यन्ते। मिता० (याश० ३।२३३)।
१८. ब्रह्महसुरापगुरुतल्पगमातृपितृयोनिसम्बन्धागस्तेननास्तिकनिन्दितकर्माभ्यासिपतितात्याग्यपतितत्यागिनः पतिताः। पातकसंयोगकाश्च । गौतम (२१११-२)। गौतम (२०११) ने त्याज्य लोगों के नाम भी लिखे हैं"त्यजेत् पितरं राजघातकं शूद्रयाजकं चूद्रार्थयाजकं वेदविप्लावकं भ्रूणहर्न यश्चात्यावसायिभिः सहः संवसेवन्त्यावसायिन्यां वा।"
१९. अपंक्त्यानां प्राग्दुर्वालाद् गोहन्तुब्रह्मघ्नतन्मंत्रकृववकीणिपतितसावित्रीकेषूपपातकम् । गौतम (२१।११) ।
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