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धर्मशास्त्र का इतिहास
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अब हम वाराणसी के पुनीत स्थलों की चर्चा करेंगे। पुराणों में ऐसा आया है कि काशीक्षेत्र में पद-पद पर तीर्थ हैं, एक तिल भी स्थल ऐसा नहीं है जहाँ लिंग ( शिव का प्रतीक) न हो । २ केवल अध्याय १० में ही काशीखण्ड ने ६४ लिंगों का उल्लेख किया है। किन्तु हम विशिष्ट रूप से उल्लिखित तीर्थों का ही वर्णन करेंगे। ह्वेनसांग का कथन है कि उसके काल में बनारस में एक सौ मन्दिर थे। उसने एक ऐसे मन्दिर का उल्लेख किया है जिसमें देव महेश्वर की ताम्र-प्रतिमा १०० फुट से कम ऊँची नहीं थी । अभाग्यवश सन् १९९४ से लेकर १६७० ई० तक मुसलमानी राजाओं ने विभिन्न कालों में अधिकांश में सभी हिन्दू मन्दिरों को तोड़-फोड़ दिया। इन मन्दिरों के स्थान पर मसजिद एवं मकबरे खड़े कर दिये गये । मन्दिरों की सामग्रियाँ मसजिदों आदि के निर्माण में लग गयीं । कुतुबुद्दीन ऐबक ने सन् १९९४ ई० में एक सहस्र मन्दिर तुड़वा दिये (इलिएट एवं डाउसन की 'हिस्ट्री आव इण्डिया', जिल्द २, पृ० २२२ ) । अलाउद्दीन खिलजी ने गर्व के साथ कहा कि उसने केवल बनारस में ही एक सहस्र मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट करा दिया (शेरिंग, पृ० ३१ एवं हैवेल, पृ० ७६) राजा टोडरमल की सहायता से सन् १५८५ ई० में नारायण भट्ट ने विश्वनाथ के मन्दिर को पुनः बनवाया । किन्तु यह मन्दिर भी कालान्तर में ध्वस्त कर दिया गया । म आसिर-ए-आलमगीरी का निम्न अंश (इलिएट एवं डाउसन, 'हिस्ट्री आव इण्डिया', जिल्द ७, पृ० १८४) पढ़ने योग्य है-- "धर्म के रक्षक शाहंशाह के कानों में यह पहुँचा कि थट्ट, मुलतान एवं बनारस के प्रान्तों में, विशेषतः अन्तिम (बनारस) में मूर्ख ब्राह्मण लोग अपनी पाठशालाओं में तुच्छ पुस्तकों की व्याख्या में संलग्न हैं और उनकी दुष्ट विद्या की जानकारी प्राप्त करने के लिए दूरदूर से हिन्दू एवं मुसलमान वहाँ जाते हैं। धर्म के संचालक ने फलतः सभी सूवों के सूबेदारों को यह फ़रमान (आदेश) भेजा कि काफिरों के सारे मन्दिर एवं पाठशालाएँ नष्ट कर दी जायँ; उन्हें आज्ञा दी गयी कि मूर्ति पूजा के आचरण एवं शिक्षा को वे बड़ी कठोरता से बन्द कर दें । १५वीं रबिउ - लाखिर (दिसम्बर, १६६९ ) को यह सूचना धार्मिक शाहंशाह को, जो एक खुदा के मानने वालों के नेता थे, दी गयी कि उनकी आज्ञा के पालनार्थ राजकर्मचारियों ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर को तोड़ दिया है।"
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विश्वेश्वर मन्दिर के स्थल पर औरंगजेब ने एक मसजिद बनवायी, जो आज भी अवस्थित है । औरंगजेब ने बनारस का नाम मुहम्मदाबाद रख दिया। शेरिंग ( पृ० ३२ ) का कथन है कि इसका परिणाम यह हुआ कि औरंगजेब के काल (सन् १६५८-१७०७ ) के बीस मन्दिरों को भी बनारस में पाना कठिन है । बाद में मराठे सरदारों ने बहुत-से मन्दिर बनवाये और अंग्रेजी शासन काल में बहुत से अन्य मन्दिर भी बने। प्रिंसेप ने सन् १८२८ में गणना करायी जिससे पता चला कि बनारस नगर में १००० मन्दिर एवं ३३३ मसजिदें हैं। आगे की गणना से पता चला कि कुल मिलाकर १४५४ मन्दिर एवं २७२ मसजिदें हैं ( शेरिंग, पृ० ४१-४२ ) कि १५०० मन्दिर हैं और दीवारों में लगी हुई प्रतिमाएँ असंख्य हैं।
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हैवेल ( पृ० ७६ ) का कथन है
विश्वेश्वर या विश्वनाथ वाराणसी के रक्षक देव हैं और इनका मन्दिर सर्वोच्च एवं परम पवित्र है । ऐसी व्यवस्था दी गयी है प्रत्येक काशीवासी को प्रति दिन गंगा में स्नान करना चाहिए और विश्वनाथ मन्दिर में जाना चाहिए (देखिए त्रिस्थलसेतु, पृ० २१४) । विश्वनाथ मन्दिर जब औरंगजेब द्वारा नष्ट करा दिया गया तो एक सौ वर्षों से
संप्रकीर्तिता । वरणा नाम सा ज्ञेया केशवो यत्र संस्थितः ॥ आभ्यां मध्ये तु या नाडी सुषुम्ना सा प्रकीर्तिता ॥ मत्स्योदरी च सा ज्ञेया विषुवं तत्प्रकीर्तितम् ॥ लिग० (तीर्थचि०, पृ० ३४१, त्रिस्थली०, पृ० ७८-७९ ) ।
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१२. तीर्थानि सन्ति भूयांसि काश्यामत्र पदे पदे । न पञ्चनदतीर्थस्य कोट्यंशेन समान्यपि ॥ स्कन्द० ( काशी०, ५९।१८ ) ; तिलान्तरापि नो काश्यां भूमिलिङ्ग विना क्वचित् । काशी० (१०।१०३) ।
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