SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्च महापातक १०२५ असत्य है, विपन्नता है और अन्धकार है।" ऐसा लगता है कि काठकसंहिता (१२।१२) के बहुत पहले से ब्राह्मण लोग सुरापान को पापमय समझते रहे हैं; "अतः ब्राह्मण सुरा नहीं पीता (इस विचार से कि) उससे वह पापमय हो जायगा।"५ छान्दोग्योपनिषद् (५।१०१९) ने सुरापायी को पतित कहा है। राजा अश्वपति कैकेय ने आत्मा वैश्वानर के ज्ञानार्थ समागत पाँच विद्वान् ब्राह्मणों के समक्ष गर्व के साथ कहा है कि उसके राज्य में न तो कोई चोर है और न कोई मद्यप।" जब कि मनु (१११५४) ने सुरापान को महापातकों में गिना है, याज्ञ० (३।२२७) ने मद्यप को पंच महापापियों में गिना है, तब हमें यह जानना है कि सुरा का तात्पर्य क्या है और सुरापान कब महापातक हो जाता है। मनु (११।९३) के मत से सुरा भोजन का मल है और यह तीन प्रकार की होती है-(१) जो गुड़ या सीरा से बने, (२) जो आटे से बने एवं (३) जो मधूक (महुआ) या मधु से बने (मनु १११९४)। बहुत-से निबन्धों में सुरा के विषय में सविस्तर वर्णन हुआ है और निम्न प्रतिपत्तियाँ उपस्थित की गयी हैं-(१) सभी तीन उच्च वर्णों को आटे से बनी सुरा का पान करना निषिद्ध है और उनको इसके सेवन से महापातक लगता है; (२) सभी आश्रमों के ब्राह्मणों के लिए मद्य के सभी प्रकार वजित हैं (गौतम २।२५; मद्यं नित्यं ब्राह्मणः । आप० ध० सू० ११५।१७-२१)। किन्तु गौड़ी एवं माध्वी प्रकार की सुरा के सेवन से ब्राह्मण को उपपातक लगता है महापातक नहीं, जैसा कि विष्णु का मत है; (३) वैश्यों एवं क्षत्रियों के लिए आटे से बनी सुरा के अतिरिक्त अन्य सुरा-प्रकार निन्द्य नहीं हैं; (४) शूद्र किसी भी प्रकार की सुरा का प्रयोग कर सकते हैं; (५) सभी वर्गों के वेदपाठी ब्रह्मचारियों को सभी प्रकार की सुरा निषिद्ध है। विष्णु० (२२।८३-८४) ने खजूर, पनसफल, नारियल, ईख आदि से बने सभी मद्य-प्रकारों का वर्णन किया है। पौलस्त्य (मिता०, याज्ञ० ३।२५३; भवदेवकृत प्रायश्चित्तप्रकरण, पृ० ४०), शूलपाणि के प्रायश्चित्तविवेक (पृ० ९०) एवं प्रायश्चित्तप्रकाश ने सुरा के अतिरिक्त ११ प्रकार की मद्यों के नाम दिये हैं। देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ३, अध्याय ३४, जहाँ मद्यों के विषय में चर्चा की गयी है। मिताक्षरा (याज्ञ० ३।२५३) ने सुरापान का निषेध उन बच्चों के लिए, जिनका उपनयन संस्कार नहीं हुआ रहता तथा अविवाहित कन्याओं के लिए माना है, क्योंकि मनु (१११९३) ने सुरापान के लिए लिंग-अन्तर नहीं बताया है और प्रथम तीन उच्च वर्गों के लिए इसे वयं माना है। भविष्यपुराण ने स्पष्ट रूप से ब्राह्मण-नारी के लिए सुरापान वर्जित किया है। किन्तु कल्पतरु का अपना अलग मत है। उसके अनुसार स्त्री एवं अल्पवयस्क को हलका प्रायश्चित्त करना पड़ता है, जैसा कि हम आगे देखेंगे। वसिष्ठ (२१।११) एवं याज्ञ० (३६२५६) का कथन है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य की सुरापान करने वाली पत्नी पति के लोकों को नहीं जाती और इस लोक में कुक्कुरी या शूकरी हो जाती है। मिताक्षरा (३६२५६) का कथन है कि यद्यपि शूद्र को मद्य-सेवन मना नहीं है, किन्तु उसकी पत्नी को ऐसा नहीं करना चाहिए। सुरापान का तात्पर्य है सुरा को गले के नीचे उतार देना। अतः यदि किसी व्यक्ति के ओष्ठों ने केवल सुरा का स्पर्श मात्र किया हो या यदि सुरा मुख में चली गयी हो किन्तु व्यक्ति उसे उगल दे, तो यह सुरापान नहीं कहा जायगा १५. तस्माद् ब्राह्मणः सुरां न पिबति पाप्मना नेत्संसृज्या इति । काठक० (१२।१२) । देखिए तन्त्रवातिक (जैमिनि ११३७, पृ० २१०) एवं शंकराचार्य (वेदान्तसूत्र ३।४॥३१)। १६. स ह प्रातः सजिहान उवाच-न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः। नानाहिताग्नि विद्वान्न स्वरी स्वरिणी कुतः॥ छान्दो० उप० (५।११।५)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy