________________
आम-श्राव एवं हेम-बार
१२७७
आमधार का सम्पादन दिन के प्रथम भाग में होता है, एकोद्दिष्ट का मध्याह्न में, पार्वण श्राद्ध का अपराह में और वृद्धिश्राद्ध का दिन के प्रथम भाग में (जब कि दिन पाँच भागों में बाँटा जाता है)।१०।
यदि बिना पका अन्न भी न दिया जा सके तो हेमश्राव (धन के साथ श्राद्ध) करना चाहिए। हेमबाट भोजनाभाव में, प्रवास में, पुत्रजन्म में या ग्रहण में किया जाता है, या स्त्री या शूद्रों के लिए इसके सम्पादन की अनुमति मिली है, या यह तब किया जाता है जब कि पत्नी रजस्वला हो। भोजन में जितना अन्न लगता है उसका दूना आमश्राद्ध में दिया जाना चाहिए और हेमश्राद्ध में चौगुना (भोजन देने में जितना अन्न लगता है उसकी लागत का मूल्य दिया जाता है)। निबन्धों में ऐसे नियम भी आये हैं जिनका पालन धन न रहने पर किया जाता है। देखिए वराह० (१३।५७-५८=विष्णुपुराण ३।१४।२९-३०); मदनपारिजात (पृ० ५१५-५१६); निर्णयसिन्धु (३, पृ०४६७)। बृहत्पराशर (अध्याय ५, पृ० १५२) में भी ऐसी ही व्यवस्था है।
११७. आमश्रा तु पूर्वाह्ने एकोद्दिष्टं तु मध्यतः। पार्वणं चापराहे तु प्रातद्धिनिमित्तकम् ॥ हारीत एवं शातातप (अपरार्क, पृ० ४६८)।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org